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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019
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जुमलेबाज सरकार का जुमला बजट आमजनों ने ठुकराया; भाकपा
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने केन्द्र सरकार के अंतिम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त
करते हुये कहाकि यह जुमलेबाज सरकार का जुमला बजट है जो उसका अंतिम संस्कार कर देने
को काफी है। सूट बूट वाले लोग इसकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं जबकि किसान, कामगार, बेरोजगार नौजवान और आम लोग इससे ठगा महसूस कर
रहे हैं।
किसानों से इस सरकार ने चलते चलते भी वही छलाबा किया
जो वह उनके साथ पाँच साल से करती आरही है। उनकी आमदनी दोगुना करने के जुमले के पूरी
तरह उजागर होने के बाद और किसानों की आत्महत्याओं के लगातार जारी रहने के बाद सरकार
ने उन्हें रु॰ 17 प्रतिदिन का लालीपाप थमाया है जिसको किसान जले पर नमक छिड़कने के समान
मान रहे हैं। कई राज्य सरकारों द्वारा किसानों को दी जारही राहत के मुक़ाबले ये ऊंट
के मुंह में जीरा है।
2017- 18 में
बेरोजगारों की संख्या में बेतहाशा व्रध्दी हुयी है मगर रोजगार देने के मोर्चे पर यह
बजट एकदम फ्लाप है। मनरेगा के बजट में जितनी कटौती पूर्व के बजटों में की गयी थी उसको
इस बजट में भी पूरा नहीं किया गया। मजदूरों व अन्य वर्गों की भलाई के लिए कीगयी घोषणाएँ
बजट आबंटन से मेल नहीं खातीं। उनके लागू होने के बारे में भी तमाम संशय बने हुये हैं।
गरीब मजदूरों को इसे पाने के लिये 100 रुपये साल अदा करने पड़ेंगे।
सामान्य गरीबों को दिये आरक्षण का लाभ देने की सीमा
8 लाख निर्धारित होने के बाद आयकर दाताओं को उम्मीद बंधी थी कि उन्हें भी आयकर में
8 लाख आमद तक पर छूट मिलेगी लेकिन सरकार ने उन्हें भी हताश- निराश किया है। बजट भाषण
में 5 लाख तक की आमद पर छूट के भ्रम से उल्लसित लोगों का उल्लास 10 मिनट में ही आसमान
से जमीन पर आगया जब उन्हें पता लगा कि यह छूट तो केवल 5 लाख तक की आमदनी वालों के लिये
है। समाज के अन्य सामान्य तबके भी ठगा ही महसूस कर रहे हैं।
डा॰ गिरीश ने कहाकि यह सरकार मूंगफली देकर बादाम देने
का प्रचार करने में माहिर है। वह उसने आज के बजट में भी किया है। बजट पेशी के दौरान
मोदी और उनकी मायावी मंडली द्वारा सैकड़ों बार मेजें थपथपा कर और मोदी मोदी के नारे
लगा कर पैदा किया गया क्रत्रिम जोश 10 मिनट भी नहीं ठहर पाया जब टीवी चैनलों पर किसानों
और आमजनों ने इसका पर्दाफाश कर दिया। चुनावी लाभ की गरज से कागजी घोषणाओं से सजाया
संवारा गया बजट वजूद में आने से पहले ही निर्वस्त्र होगया।
यह अन्तरिम बजट था लेकिन सरकार ने सारी नैतिकता और संवैधानिक
मर्यादाएं लांघ कर पूर्ण बजट पेश कर दिया। चुनावी लाभ के लिये सरकार सारी सीमाएं लांघने
पर आमादा है।
कुल मिला कर यह कार्पोरेट्स के हितों का रक्षक बजट है
इसीलिए औद्योगिक संगठन उसकी प्रशंसा के पुल बांध रहे हैं। पूंजीवाद से अवाम की बढ़ रही
नाराजी को कम करने को कुछ खैरातें बांटने का नाटक किया गया है। पर रिश्वतख़ोरी और अफसरशाही
के चलते ये सारी योजनाएं जमीन पर पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देतीं हैं यह हर कोई जानता
है। डा॰ गिरीश ने कहाकि आजादी के 71 साल में आये हर बजट से जनता अपने जीवन की बेहतरी
की उम्मीद लगाये रही पर जनता की हालत आज भी
जस की तस बनी हुयी है। जनता का उत्थान समाजवाद में ही संभव है पूंजीवाद में नहीं। यह
इन 71 सालों में स्पष्ट होगया है।
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