भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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शुक्रवार, 13 मई 2016

इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र आंदोलन और भाकपा/ ए.आई.एस.एफ,

अपनी एकजुटता और संघर्ष के बल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक बढी जंग जीत ली है. करीब हफ्ते भर तक चले इस आंदोलन के द्वारा छात्र अपनी मांगों को मनबाने में पूरी तरह कामयाब रहे हैं. उन्होने मानव संसाधन मंत्रालय को अपने तानाशाहीपूर्ण कदमों को वापस लेने को बाध्य किया है. मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के शिक्षण संस्थाओं में हस्तक्षेप न करने के दाबों की इस आंदोलन ने कलई खोल कर रख दी है. संदेश साफ है कि छात्र भगवा ब्रिगेड के शिक्षा विरोधी और छात्र विरोधी कामों को सहेंगे नहीं. वे लडेंगे भी और जीतेंगे भी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ छात्रों- नौजवानों के हर बुनियादी संघर्षों में उनके साथ खडे हुये हैं और साथ खडे रहने को संकल्पबध्द हैं. वे मन वाणी और कर्म से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं के साथ खडे रहे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ के एक राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने गत 8 मई को इलाहाबाद पहुंच कर वहां अपनी समस्याओं के लिये छात्र संघ भवन में अनशन कर रहे छात्र- छात्राओं से भेंट की और उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता का इजहार किया. भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश के नेत्रत्व में पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में पार्टी के राज्य सहसचिव का. अरविंदराज स्वरुप एवं एआईएसएफ उत्तर प्रदेश के संयुक्त सचिव मयंक चक्रवर्ती भी शामिल थे. इलाहाबाद में पार्टी के जिला सह सचिव का. नसीम अंसारी, वरिष्ठ नेता का. गिरिधर गोपाल त्रिपाठी एडवोकेट, एटक लीडर का. मुस्तकीम एवं एआईएसएफ के अमितांशु गौर भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल होगये. केंद्रीय एवं राज्य की प्रशासनिक सेवाओं के लिये मानव संसाधन मुहैया कराने के लिये प्रसिध्द इस विश्वविद्यालय का छात्रसंघ भी उतना ही प्रसिध्द रहा है और इसके पदों पर चुने गये तमाम लोग राजनीतिक, सामाजिक और अन्य कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन कई दशकों से पूंजीवादी दलों द्वारा पोषित राजनीति में आई गिरावट का ग्रहण शिक्षण संस्थाओं को भी लगा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शैक्षिक स्तर और उसका छात्रसंघ भी उससे प्रभावित हुआ. लेकिन इस बार वहाँ के छात्र- छात्राओं ने पहली बार एक छात्रा ऋचा सिंह को विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना जो वहां चुने गये पदाधिकारियों में एक मात्र गैर भाजपा पदाधिकारी थीं. उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि तमाम दबावों और घेराबंदियों के बावजूद उन्होने भयंकर सांप्रदायिक एवं हिंदू कट्टरपंथी गोरखपुर के भाजपा सांसद श्री आदित्यनाथ को विश्वविद्यालय परिसर में आने से रोक दिया था. उसके बाद से ही वह संघ परिवार के निशाने पर थीं और केंद्र सरकार और स्थानीय भाजपाइयों के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें तरह तरह से परेशान कर रहा था. भाकपा और एआईएसएफ ने इस समूची जद्दोजहद में हमेशा उनका मनोबल बढाया. पिछले दिनों विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र संगठनों ने ऋचा सिंह के नेत्रत्व में कुलपति श्री रतनलाल हाँगलू को एक सात सूत्रीय ज्ञापन संयुक्त रुप से सौंपा था जिसमें उन्होने कहा था कि विश्वविद्यालय के ग्रामीण अंचल के छात्रों की बहुलता को देखते हुये परास्नातक सहित सभी प्रवेश परीक्षाओं में 'आफ लाइन' का विकल्प भी दिया जाये, पिछले दिनों जिन 17 छात्रों का निलंबन किया गया है उसे वापस लिया जाये, आनलाइन आवेदनों में वेवसाइट की गडबडी के कारण छात्रों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड रहा है, उसे तत्काल सुधारा जाये. प्रवेश परीक्षाओं का बढा हुआ शुल्क जो कि पिछले से लगभग दोगुना है वापस किया जाये, डबल एम.ए. करने हेतु 80 प्रतिशत अंक की अपरिहार्यता और अव्यवहारिकता को वापस लिया जाये, प्रवेश हेतु जमा होने वाला चालान एस. बी.आई. के माध्यम से भी जमा करने का विकल्प हो. ज्ञापन में यह भी कहा गया कि प्रवेश परीक्षाओं का टेंडर पारदर्शी तरीके से न होना प्रवेश प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खडे करता है. मात्र टी.सी.एस के आवेदन के बाद उसका टेंडर देना अनुचित है. आंदोलनकारी छात्र- छात्रायें जब इन मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिसर में पुलिस को बुलबा भेजा. तमाम छात्रो को पीटा गया और वे लहू लुहान होगये, उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर गिरफ्तार किया गया. पर रिहाई के बाद वे यूनियन हाल में अध्यक्ष ऋचा सिंह के नेत्रत्व में आमरण अनशन पर बैठ गये. वे कुलपति कार्यालय के समक्ष अनशन करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उन्हें वहां बैठने से रोक दिया. भाकपा और एआईएसएफ ने अलग अलग बयान जारी कर इस पुलिसिया कार्यवाही की निंदा की और छात्रों की मांगों का समर्थन किया. आंदोलन का नेत्रत्व कर रही ऋचा सिंह को फोन कर छात्रों का मनोबल भी बढाया गया. छात्र छात्राओं पड रहे चहुंतरफा दबाव और उनके स्वास्थ्य में आरही गिरावट के समाचार भाकपा और एआईएसएफ के राज्य केंद्र को मिल रहे थे अतएव पार्टी नेत्रत्व ने वहाँ पहुंच कर छात्रों के इस आंदोलन को सक्रिय समर्थन प्रदान करने का फैसला लिया. प्रतिनिधिमंडल जिस दिन वहां पहुंचा, आमरण अनशन का छठवां दिन था. चूंकि वहां पहुंचने का समाचार समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था तो सभी आंदोलनकारी छात्र इस प्रतिनिधिमंडल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. प्रतिनिधिमंडल ने ऋचा सिंह से बात की और उनका साहस बढाया. वहीं पता लगा कि पूर्व की रात को पुलिस ने अनशनकारियों को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी लेकिन छात्रों ने अपने को यूनियन हाल में बंद कर लिया. यू.पी. सरकार के पुलिस और प्रशासन का यह रवैया समझ से परे था. ऋचा सिंह ने छात्रो के बीच ले जाकर प्रतिनिधिमंडल से विचार व्यक्त करने का आग्रह किया. उपस्थित छात्र समुदाय को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आफलाइन विकल्प के अभाव में ग्रामीण और गरीब तबके के छात्र शिक्षा से वंचित रह जायेंगे इसलिये आम छात्रों के हित में आफलाइन का विकल्प भी खुला रहना चाहिये. उन्होने छात्रों की न्यायोचित मांगों के प्रति केंद्र सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन की हठवादिता और छात्रों पर पुलिस/प्रशासन द्वारा किये जारहे बल प्रयोग की कडे शब्दों में निंदा की और छात्रों के इस न्याययुध्द में हर संभव मदद का भरोसा उन्हें दिलाया. उन्होने घोषणा की कि लखनऊ लौटने पर भाकपा महामहिम राज्यपाल से भेंट कर छात्रों को न्याय दिलाने की मांग करेगी. छात्रों ने बढी ही गर्मजोशी से प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया. यद्यपि वहां अन्य कई प्रतिनिधिमंडल भी आये हुये थे पर भाकपा और एआईएसएफ के प्रतिनिधिमंडल के वहां पहुंचने से भाजपा और सपा के खीमों में काफी हलचल दिखाई दी. अगले दिन मीडिया ने भी प्रतिनिधिमंडल की खबरों को प्रमुखता से छापा. सत्ताधारियो का सिंहासन हिला और 48 घंटे के भीतर ही छात्रों की प्रमुख मांगों को मान लिया गया और अनशन समाप्त करा दिया गया. समझौते के अनुसार अब विश्वविद्यालय में प्रवेश में आफ लाइन का विकल्प खोला गया है, डबल एम.ए. के प्रवेश में अब 80 के बजाय 60 प्रतिशत अंक ही आवश्यक होंगे तथा छात्रों के निलंबन की कार्यवाही पर पुनर्विचार किया जायेगा. इस सफलता के बाद ऋचा सिंह और कई छात्रों ने भाकपा नेत्रत्व को न केवल इसकी सूचना दी अपितु उनके प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित की. भाकपा नेत्रत्व ने भी उन्हे बधाई दी. एआईएसएफ इलाहाबाद के एक प्रतिनिधिमंडल ने सन्योजक अजीत सिंह के नेत्रत्व में ऋचा सिंह एवं अन्य आंदोलनकारी छात्रों से छात्रसंघ भवन में जाकर इस सफलता के लिये उन्हें पुरजोर तरीके से बधाई दी. प्रतिनिधिमंडल में अमितांशु गौर, मो.खालिद, सर्वेश मिश्रा, गौरीशंकर, विमर्श एवं संकर्ष भी शामिल थे. ऋचा सिंह ने सहयोग और समर्थन के लिये धन्यवाद दिया और कृतज्ञता ज्ञापित की. यह छात्रों के संघर्षों का ही नतीजा है कि मानव संसाधन मंत्रालय को घुटने टेकने पडे हैं. केंद्र सरकार के पलटी मारने से कल तक उसके यस मैन बने कुलपति हाँगलू आहत महसूस कर रहे हैं. उन्होने स्मृति ईरानी और भाजपा पर विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप का आरोप जडा है. यह तो जग जाहिर ही था, पर पहली बार किसी कुलपति ने भी इस सच पर से पर्दा उठाया है. यह भी उल्लेखनीय है कि जो विद्यार्थी परिषद ऋचा सिंह के खून का प्यासा बना हुआ था, छात्रों के दबाव में और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये उसे भी सबके साथ अनशन पर बैठना पडा. डा. गिरीश
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र आंदोलन एवं भाकपा तथा आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन का योगदान

अपनी एकजुटता और संघर्ष के बल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक बढी जंग जीत ली है. करीब हफ्ते भर तक चले इस आंदोलन के द्वारा छात्र अपनी मांगों को मनबाने में पूरी तरह कामयाब रहे हैं. उन्होने मानव संसाधन मंत्रालय को अपने तानाशाहीपूर्ण कदमों को वापस लेने को बाध्य किया है. मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के शिक्षण संस्थाओं में हस्तक्षेप न करने के दाबों की इस आंदोलन ने कलई खोल कर रख दी है. संदेश साफ है कि छात्र भगवा ब्रिगेड के शिक्षा विरोधी और छात्र विरोधी कामों को सहेंगे नहीं. वे लडेंगे भी और जीतेंगे भी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ छात्रों- नौजवानों के हर बुनियादी संघर्षों में उनके साथ खडे हुये हैं और साथ खडे रहने को संकल्पबध्द हैं. वे मन वाणी और कर्म से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं के साथ खडे रहे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ के एक राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने गत 8 मई को इलाहाबाद पहुंच कर वहां अपनी समस्याओं के लिये छात्र संघ भवन में अनशन कर रहे छात्र- छात्राओं से भेंट की और उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता का इजहार किया. भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश के नेत्रत्व में पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में पार्टी के राज्य सहसचिव का. अरविंदराज स्वरुप एवं एआईएसएफ उत्तर प्रदेश के संयुक्त सचिव मयंक चक्रवर्ती भी शामिल थे. इलाहाबाद में पार्टी के जिला सह सचिव का. नसीम अंसारी, वरिष्ठ नेता का. गिरिधर गोपाल त्रिपाठी एडवोकेट, एटक लीडर का. मुस्तकीम एवं एआईएसएफ के अमितांशु गौर भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल होगये. केंद्रीय एवं राज्य की प्रशासनिक सेवाओं के लिये मानव संसाधन मुहैया कराने के लिये प्रसिध्द इस विश्वविद्यालय का छात्रसंघ भी उतना ही प्रसिध्द रहा है और इसके पदों पर चुने गये तमाम लोग राजनीतिक, सामाजिक और अन्य कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन कई दशकों से पूंजीवादी दलों द्वारा पोषित राजनीति में आई गिरावट का ग्रहण शिक्षण संस्थाओं को भी लगा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शैक्षिक स्तर और उसका छात्रसंघ भी उससे प्रभावित हुआ. लेकिन इस बार वहाँ के छात्र- छात्राओं ने पहली बार एक छात्रा ऋचा सिंह को विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना जो वहां चुने गये पदाधिकारियों में एक मात्र गैर भाजपा पदाधिकारी थीं. उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि तमाम दबावों और घेराबंदियों के बावजूद उन्होने भयंकर सांप्रदायिक एवं हिंदू कट्टरपंथी गोरखपुर के भाजपा सांसद श्री आदित्यनाथ को विश्वविद्यालय परिसर में आने से रोक दिया था. उसके बाद से ही वह संघ परिवार के निशाने पर थीं और केंद्र सरकार और स्थानीय भाजपाइयों के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें तरह तरह से परेशान कर रहा था. भाकपा और एआईएसएफ ने इस समूची जद्दोजहद में हमेशा उनका मनोबल बढाया. पिछले दिनों विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र संगठनों ने ऋचा सिंह के नेत्रत्व में कुलपति श्री रतनलाल हाँगलू को एक सात सूत्रीय ज्ञापन संयुक्त रुप से सौंपा था जिसमें उन्होने कहा था कि विश्वविद्यालय के ग्रामीण अंचल के छात्रों की बहुलता को देखते हुये परास्नातक सहित सभी प्रवेश परीक्षाओं में 'आफ लाइन' का विकल्प भी दिया जाये, पिछले दिनों जिन 17 छात्रों का निलंबन किया गया है उसे वापस लिया जाये, आनलाइन आवेदनों में वेवसाइट की गडबडी के कारण छात्रों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड रहा है, उसे तत्काल सुधारा जाये. प्रवेश परीक्षाओं का बढा हुआ शुल्क जो कि पिछले से लगभग दोगुना है वापस किया जाये, डबल एम.ए. करने हेतु 80 प्रतिशत अंक की अपरिहार्यता और अव्यवहारिकता को वापस लिया जाये, प्रवेश हेतु जमा होने वाला चालान एस. बी.आई. के माध्यम से भी जमा करने का विकल्प हो. ज्ञापन में यह भी कहा गया कि प्रवेश परीक्षाओं का टेंडर पारदर्शी तरीके से न होना प्रवेश प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खडे करता है. मात्र टी.सी.एस के आवेदन के बाद उसका टेंडर देना अनुचित है. आंदोलनकारी छात्र- छात्रायें जब इन मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिसर में पुलिस को बुलबा भेजा. तमाम छात्रो को पीटा गया और वे लहू लुहान होगये, उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर गिरफ्तार किया गया. पर रिहाई के बाद वे यूनियन हाल में अध्यक्ष ऋचा सिंह के नेत्रत्व में आमरण अनशन पर बैठ गये. वे कुलपति कार्यालय के समक्ष अनशन करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उन्हें वहां बैठने से रोक दिया. भाकपा और एआईएसएफ ने अलग अलग बयान जारी कर इस पुलिसिया कार्यवाही की निंदा की और छात्रों की मांगों का समर्थन किया. आंदोलन का नेत्रत्व कर रही ऋचा सिंह को फोन कर छात्रों का मनोबल भी बढाया गया. छात्र छात्राओं पड रहे चहुंतरफा दबाव और उनके स्वास्थ्य में आरही गिरावट के समाचार भाकपा और एआईएसएफ के राज्य केंद्र को मिल रहे थे अतएव पार्टी नेत्रत्व ने वहाँ पहुंच कर छात्रों के इस आंदोलन को सक्रिय समर्थन प्रदान करने का फैसला लिया. प्रतिनिधिमंडल जिस दिन वहां पहुंचा, आमरण अनशन का छठवां दिन था. चूंकि वहां पहुंचने का समाचार समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था तो सभी आंदोलनकारी छात्र इस प्रतिनिधिमंडल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. प्रतिनिधिमंडल ने ऋचा सिंह से बात की और उनका साहस बढाया. वहीं पता लगा कि पूर्व की रात को पुलिस ने अनशनकारियों को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी लेकिन छात्रों ने अपने को यूनियन हाल में बंद कर लिया. यू.पी. सरकार के पुलिस और प्रशासन का यह रवैया समझ से परे था. ऋचा सिंह ने छात्रो के बीच ले जाकर प्रतिनिधिमंडल से विचार व्यक्त करने का आग्रह किया. उपस्थित छात्र समुदाय को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आफलाइन विकल्प के अभाव में ग्रामीण और गरीब तबके के छात्र शिक्षा से वंचित रह जायेंगे इसलिये आम छात्रों के हित में आफलाइन का विकल्प भी खुला रहना चाहिये. उन्होने छात्रों की न्यायोचित मांगों के प्रति केंद्र सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन की हठवादिता और छात्रों पर पुलिस/प्रशासन द्वारा किये जारहे बल प्रयोग की कडे शब्दों में निंदा की और छात्रों के इस न्याययुध्द में हर संभव मदद का भरोसा उन्हें दिलाया. उन्होने घोषणा की कि लखनऊ लौटने पर भाकपा महामहिम राज्यपाल से भेंट कर छात्रों को न्याय दिलाने की मांग करेगी. छात्रों ने बढी ही गर्मजोशी से प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया. यद्यपि वहां अन्य कई प्रतिनिधिमंडल भी आये हुये थे पर भाकपा और एआईएसएफ के प्रतिनिधिमंडल के वहां पहुंचने से भाजपा और सपा के खीमों में काफी हलचल दिखाई दी. अगले दिन मीडिया ने भी प्रतिनिधिमंडल की खबरों को प्रमुखता से छापा. सत्ताधारियो का सिंहासन हिला और 48 घंटे के भीतर ही छात्रों की प्रमुख मांगों को मान लिया गया और अनशन समाप्त करा दिया गया. समझौते के अनुसार अब विश्वविद्यालय में प्रवेश में आफ लाइन का विकल्प खोला गया है, डबल एम.ए. के प्रवेश में अब 80 के बजाय 60 प्रतिशत अंक ही आवश्यक होंगे तथा छात्रों के निलंबन की कार्यवाही पर पुनर्विचार किया जायेगा. इस सफलता के बाद ऋचा सिंह और कई छात्रों ने भाकपा नेत्रत्व को न केवल इसकी सूचना दी अपितु उनके प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित की. भाकपा नेत्रत्व ने भी उन्हे बधाई दी. एआईएसएफ इलाहाबाद के एक प्रतिनिधिमंडल ने सन्योजक अजीत सिंह के नेत्रत्व में ऋचा सिंह एवं अन्य आंदोलनकारी छात्रों से छात्रसंघ भवन में जाकर इस सफलता के लिये उन्हें पुरजोर तरीके से बधाई दी. प्रतिनिधिमंडल में अमितांशु गौर, मो.खालिद, सर्वेश मिश्रा, गौरीशंकर, विमर्श एवं संकर्ष भी शामिल थे. ऋचा सिंह ने सहयोग और समर्थन के लिये धन्यवाद दिया और कृतज्ञता ज्ञापित की. यह छात्रों के संघर्षों का ही नतीजा है कि मानव संसाधन मंत्रालय को घुटने टेकने पडे हैं. केंद्र सरकार के पलटी मारने से कल तक उसके यस मैन बने कुलपति हाँगलू आहत महसूस कर रहे हैं. उन्होने स्मृति ईरानी और भाजपा पर विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप का आरोप जडा है. यह तो जग जाहिर ही था, पर पहली बार किसी कुलपति ने भी इस सच पर से पर्दा उठाया है. यह भी उल्लेखनीय है कि जो विद्यार्थी परिषद ऋचा सिंह के खून का प्यासा बना हुआ था, छात्रों के दबाव में और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये उसे भी सबके साथ अनशन पर बैठना पडा. डा. गिरीश
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शनिवार, 7 मई 2016

अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एआईएसएफ की विचार गोष्ठी संपन्न : भगवाकरण और फासीवाद को छात्रों ने दी खुली चुनौती

अलीगढ- मजदूर दिवस के अवसर पर एक मई को अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एम्पलाईज यूनियन कार्यालय परिसर में ए.आई.एस.एफ. की ओर से एक सफल सेमिनार का आयोजन किया गया. गोष्ठी का विषय था " लोकतंत्र स्वंत्रता और संस्कृति को खतरा और छात्रों का संघर्ष". गोष्ठी का उद्घाटन करते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि देश की स्वतंत्रता लोकतंत्र और संस्कृति पर समय समय पर अलग अलग शक्तियों द्वारा हमले होते रहे हैं और देश की जनता उसका जबाव भी देती रही है. लेकिन पिछले दो साल में यह हमले तीव्र से तीव्रतर होगये हैं. केंद्र में सत्तारूढ मोदी सरकार ने जनता से किया एक भी वायदा पूरा नहीं किया अतएव जनता में इस सरकार के प्रति भारी असंतोष उमड रहा है. अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने, आक्रोश को दिग्भ्रमित करने और जनता के विरोध को मूर्त रूप देने वाली ताकतों को आतंकित करने के उद्देश्य से सरकार और सरकार समर्थक संगठनों ने उन पर बडे हमले बोल दिये हैं. हर विपन्न तबके को निशाना बनाया जारहा है. लेकिन ज्ञान के उद्गम स्थल शिक्षण संस्थानों और उसके छात्रों को खास निशाना बनाया जारहा है ताकि जहालत फैला कर जुल्म सितम का चक्का चलाया जाता रहे. डा. गिरीश ने कहाकि यह पहली ऐसी सरकार है जो सीमा के पार वाले दुश्मनों के समक्ष तो घुटने टेके हुये है मगर अपने ही देश के छात्र नौजवानों के खिलाफ इसने युध्द छेड दिया है. फिल्म इंस्टीट्यूट, आईआईटी, हैदराबाद यूनिवर्सिटी, एएमयू, इलाहाबाद और सबसे ज्यादा जेएनयू के छात्रों को निशाना बनाया गया और उन्हें जान गंवाने को बाध्य किया गया या देशद्रोही बता कर जेलों में ठूंसा गया. लेकिन हर जगह छात्र आंदोलन के जरिये जबाव दे रहे हैं. कन्हैया कुमार इस आंदोलन का प्रतीक बन चुके हैं. यह आंदोलन आने वाले दिनों में और गति पकडेगा और यही व्यवस्था परिवर्तन की जंग का आधार बनेगा. भाकपा छात्र नौजवानों के इस संघर्ष के हर कदम पर उनके साथ है. एआईएसएफ के अध्यक्ष वली उल्लाह खादरी ने कहा कि मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी एक्टिंग अच्छी कर लेती हैं, लेकिन शिक्षा के बारे में उन्हें जानकारी नहीं. शिक्षा के बजट में कटौती और छात्रों के हक को दबाने के सवाल पर उन्होंने प्रधानमंत्री पर भी जम कर निशाना साधा. उन्होने कहा कि देश भर में दहशत फैलाने का काम नागपुर से चल रहा है. तमाम महत्वपूर्ण संस्थाओं के साथ साथ फासीवादी ताकतों की नजर अल्पसंख्यक स्वरूप वाले एएमयू और जामिया मिलिया पर भी है. छात्र इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. जेएनयू एआईएसएफ की अध्यक्ष राहिला परवीन ने कहा कि यह देश गांधी के राम का है. आरएसएस के जय श्रीराम का नहीं. हम आरएसएस के जय श्री राम को नहीं आने देंगे. देशवासियों को राम और जय श्रीराम के अंतर को समझना होगा. उन्होने कन्हैया को आज़ादी की दूसरी लडाई का योध्दा बताया और कहा कि रोहित वेमुला प्रकरण को दबाने के लिये फासीवादी ताकतों ने जेएनयू प्रकरण को उछाल दिया. इसमें विद्यार्थी परिषद के साथ तथाकथित राष्ट्रवादी चेनल भी साथ थे. रोहित वेमुला का उदाहरण देते हुये उन्होने कहा कि हम उस मां की जय बोलेंगे जिसने जन्म देकर अपने लाल को अन्याय के खिलाफ लडने भेजा. शेर पर सवार हाथ में त्रिशूल और भगवा झंडा वाली आरएसएस की ब्रांडेड मां की जय हम नहीं बोलेंगे. उन्होने कहा कि सीमा पर लडने वाले फौजी के किसान पिता आत्महत्या कर रहे हैं. इसकी चिंता सरकार को नहीं. उन्होने कहा कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान सेनानी भारत माता की जय नहीं, वंदे मातरम और जय हिंद बोलते थे. लेकिन फासीवादी ताकतें हर चीज को मजहब में बांट कर अपनी कुर्सी बचाने में लगी हैं. प्रसिध्द इतिहासकार प्रो. इरफान हबीव ने एआईएसएफ के गौरवशाली इतिहास की स्मृतियों को ताजा करते हुये कहा कि यही संगठन था जो आज़ादी की लडाई में असंख्य छात्र युवाओं को खींच लाया. उन्होने इस संगठन में बिताये अपने जीवन के अनुभवों को उपस्थित छात्र युवाओं के साथ साझा किया. उन्होने कहाकि भाजपा जिन सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण करा रही है उन्होने आरएसएस के गोलवलकर को खत लिखा था कि संघ द्वारा फैलाये गये सांप्रदायिक जहर के कारण ही गांधी जी की हत्या हुयी. गांधी की हत्या पर संघ ने मिठाई बांटी थी और आरएसएस पर प्रतिबंध भी लगाया गया था. वह तभी हठा जब उनके गुरु ने लिख कर दे दिया कि संघ तो सांस्कृतिक संग्ठन है. पर हर कोई जानता है कि वह खुल कर राजनीति करता है, वह भी समाज को बांतने की. प्रो. इरफान हबीब ने एएमयू में छात्राओं के साथ होने वाले भेद्भाव की चर्चा की और उसे खत्म किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया. गोष्ठी को भाकपा जिला सचिव सुहेव शेरवानी, एआईएसएफ अलीगद के सन्योजक अनीश कुमार तथा ऐम्पलाईज यूनियन के अध्यक्ष वसी हैदर ने भी संबोधित किया. अध्यक्षता कु. फनस ने की. संचालन एआईएसएफ की एएमयू की सन्योजक कु. दूना मारिया भार्गवी ने किया. ऐम्पलायीज यूनियन के सैक्रेटरी शमीम अख्तर ने सभी को धन्यवाद दिया. कु. दूना एवं अनीश ने बताया कि आगामी 23 मई को एआईएसएफ के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन और एवं विचारगोष्ठी अलीगढ में होगी. हर जिले से कम से कम 5 छात्र साथियों को सुबह 10 बजे तक अलीगढ पहुंचना है.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आंदोलनरत छात्रों के प्रति एकजुटता प्रकट करने को जायेगा भाकपा का प्रतिनिधिमंडल

लखनऊ- 7 मई 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल कल इलाहाबाद पहुंचेगा. प्रतिनिधिमंडल वहाँ आफलाइन विकल्प के लिये संघर्षरत और अनशन कर रहे छात्र नेताओं और छात्रों से मिल कर उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता का इजहार करेगा. ज्ञात हो कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पदाधिकारी और अन्य छात्र दाखिले की प्रक्रिया में आनलाइन के साथ आफलाइन विकल्प की मांग को लेकर पिछले एक सप्ताह से आंदोलन कर रहे हैं. गत दिनों विश्वविद्यालय प्रशासन की पहल पर पुलिस ने छात्रों पर भारी लाठीचार्ज किया था, उन पर कई धाराओं में केस दर्ज किये गये थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. भाकपा ने तभी छात्रों पर हुये इस दमन की कडे शब्दों में निंदा की थी. रिहाई के बाद से ही ये छात्र अपनी मांगों को लेकर अनशन कर रहे हैं. भाकपा राज्य सचिव मंडल की ओर से जारी बयान में मांग की गयी है कि छात्रों की इस न्यायोचित मांग को अबिलंब पूरा किया जाये और उन पर दमनचक्र चलाने के लिये जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर दंडित किया जाये. बयान में बताया गया है कि इन आंदोलनकारी छात्रों के संघर्ष के प्रति एक्जुटता प्रकट करने को भाकपा का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल राज्य सचिव डा.गिरीश के नेत्रत्व में कल इलाहाबाद जायेगा. राज्य सहसचिव का. अरविन्दराज स्वरुप एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के नेतागण भी उनके साथ होंगे. डा.गिरीश
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शुक्रवार, 6 मई 2016

आरक्षित रेल टिकिट को रद्द कराने की प्रक्रिया को यदि बदला गया तो जनता को होगी भारी परेशानी: भाकपा

लखनऊ- 6 मई 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरक्षण खिडकी से कराये गये रेलवे के आरक्षित टिकट को रद्द कराने की मौजूदा प्रक्रिया में प्रस्तावित बदलाव को जनता के लिये बहुत ही कष्टकारक और आर्थिक रुप से हानि पहुंचाने वाला बताया है. भाकपा ने आरक्षित टिकट की मौजूदा प्रणाली को ही बनाये रखने की मांग की है. ज्ञात हो कि मौजूदा व्यवस्था के अनुसार यात्री कहीं से खरीदे टिकट को देश में किसी भी स्टेशन से रद्द करा सकते हैं. लेकिन अब रेलवे इस मौजूदा प्रक्रिया में बदलाव कर यह व्यवस्था करने जारही है कि जो टिकट जहां से खरीदी गयी है उसको उसी स्टेशन से रद्द कराया जा सकेगा. रेल मंत्री को भेजे गये पत्र में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने इस पर कडी आपत्ति दर्ज कराई है. अपने इस पत्र में भाकपा राज्य सचिव ने कहा है कि इस प्रस्तावित नई प्रक्रिया से मुसाफिरों को भारी कठिनाई का सामना करना पडेगा और आर्थिक हानि भी उठानी पडेगी. इस संबंध में उदाहरण देते हुये डा.गिरीश ने कहा कि जब में लखनऊ से अपने घर हाथरस जाता हूं तो वहाँ से लौटने का टिकट भी यहीं से बनवा कर ले जाता हूँ ताकि प्रतीक्षा सूची में लटकने से बचा जा सके. पर यदि किसी कारण से मुझे अपनी यात्रा की तिथि आगे बढानी पड जाये तो मेरा लखनऊ से कटाया गया यह टिकिट हाथरस में रद्द नही हो सकेगा. इस तरह मेरा यह पैसा डूब जायेगा. ज्यादा यात्रा करने वालों और टूरिस्टों को तो इससे बहुत अधिक कठिनाई होगी. डा. गिरीश ने आरोप लगाया है कि गत दो वर्षों में रेलवे ने यात्री किराये और माल भाडे में बडी वृध्दि तो की ही है अन्य अनेक भार भी यात्रियों पर लाद दिये हैं. सफाई के नाम पर एक अलग कर लगाया गया है, बच्चों की आधी टिकट समाप्त कर उसे पूरा कर दिया गया है, टिकिट रद्द कराने में ज्यादा पैसे की कटौती कर दी गयी है और टिकिट रद्द कराने की अवधि भी कम कर दी गयी है. मजे की बात है कि यात्रियों पर यह सारी चोट यात्री सुविधा बढाने के नाम पर की जारही है. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि “ प्रभुजी! ये सब बंद करो वरना ये जनता तुम्हारी सरकार की राजनैतिक रेल को रोक देगी.” डा. गिरीश,
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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

सैमिनार

ALL INDIA STUDENTS FEDERETION ( A.I.S.F.) A.M.U. Unit, Aligarh आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ( एआईएसएफ) ए.एम.यू. ब्रांच, अलीगढ दिनांक- 29 अप्रेल 2016 एआईएसएफ द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन दि. - 1 मई रविवार को अलीगढ- आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ( एआईएसएफ) की अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय इकाई द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन मजदूर वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय पर्व 'मई दिवस' पर दिनांक- 1 मई, रविवार को पूर्वान्ह 11 बजे से ए.एम.यू. एम्पलाईज यूनियन के कार्यालय (हबीब हाल के सामने) पर किया जा रहा है. गोष्ठी का विषय होगा - "लोकतंत्र स्वतंत्रता संस्कृति पर हमला और छात्रों का संघर्ष." ( Threat to Democracy Freedom and Culture and Struggle of Students). गोष्ठी में एआईएसएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद वलीउल्लाह खादरी एवं जेएनयू एआईएसएफ की अध्यक्ष कु. राहिला परवीन मुख्य वक्ता होंगे. इसके अलावा कई अन्य वक्ता भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करेंगे. एआईएसएफ ने सभी छात्रों और अन्य सहयोगियों से गोष्ठी में शामिल होने की अपील की है. दूना मारिया भार्गवी संयोजक, ए.आई.एस.एफ. ए.एम.यू. अलीगढ
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बुधवार, 6 अप्रैल 2016

उत्तर प्रदेश में एआईएसएफ ने फूंका आंदोलन का बिगुल

लखनऊ- आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (A.I.S.F.) के तत्वावधान में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार एवं एआईएसएफ के नेताओं को जान से मारने की धमकियों, देश भर में छात्रों खासकर कमजोर वर्ग के छात्रों के उत्पीडन के खिलाफ एवं छात्रों और शिक्षा से जुडे सवालों को लेकर आज समूचे उत्तर प्रदेश में धरने और प्रदर्शनों के आयोजन किये गये तथा महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिला प्रशासन के अधिकारियों को सौंपे गये. पूरे प्रदेश में लगभग एक ही विषयवस्तु वाले ज्ञापन सौंपे गये. इन ज्ञापनों में कहा गया है कि जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और छात्र संगठन- एआईएसएफ जो कि देश भर में छात्रों के ऊपर होरहे अत्याचारों और शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षण संस्थाओं पर सरकार की ओर से हो रहे हमलों के विरोध में समूचे देश में चल रहे छात्र आंदोलनों की आशा की किरण साबित होरहे हैं, फासीवादी, सांप्रदायिक और जनतंत्र विरोधी ताकतों की आंखों की किरकिरी बन गये हैं. उत्तर प्रदेश में ऐसे ही तत्वों द्वारा कन्हैया कुमार तथा एआईएसएफ के दूसरे नेताओं को तमाम तरह की धमकियां दी जारही हैं. मेरठ के किसी अमित जानी नामक शख्स जिसने 2012 में लखनऊ में पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की प्रतिमायें तोडी थीं और उससे पहले श्री राहुल गांधी की सभा में व्यवधान उत्पन्न किया था, पहले अपने फेसबुक एकाउंट पर पोस्ट डाल कर धमकी दी थी कि यदि कन्हैया कुमार और उमर खालिद ने 31 मार्च तक जेएनयू परिसर को नहीं छोडा तो वह और उसका संगठन जेएनयू में घुस कर दोनों को गोली से उडा देंगे. उसने फेसबुक पर दोबारा धमकी दी है कि उसके लोग मय हथियारों के जेएनयू में पहुंच गये हैं, और वे कभी भी दोनों की हत्या कर देंगे. कुछ तत्वों ने एआईएसएफ के केंद्रीय पदाधिकारियों और कन्हैया कुमार को ट्विटर पर धमकी दी है कि यदि उन्होने उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया तो उनका गला रेत दिया जायेगा. इससे पूर्व बदायूं के एक कुलदीप वार्ष्णेय नामक व्यक्ति ने खुले तौर पर धमकी दी थी कि कन्हैया की जीभ काटने वाले को पांच लाख रु. दिये जायेंगे. 18 फरवरी को एआईएसएफ व अन्य वामपंथी छात्र संगठनों के लोग जब बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के समीप कन्हैया कुमार की बिना शर्त रिहाई की मांग और कन्हैया कुमार व पत्रकारों पर पटियाला हाउस कोर्ट में भाजपा विधायक और उसके समर्थक वकीलों द्वारा किये गये शर्मनाक हमले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे तो विद्यार्थी परिषद से जुडे लोगों ने आपत्तिजनक नारे लगाते हुये उन पर हमला बोल दिया. स्थानीय पुलिस ने हमलावरों को निकल जाने में मदद की और एआईएसएफ तथा अन्य वाम छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. अब अलीगढ में कन्हैया कुमार के आगमन की चर्चा मात्र से बौखलाये विद्यार्थी परिषद के लोगों ने मीडिया के माध्यम से भडकावे और उकसाबेपूर्ण बयानबाजियां की हैं और वे खुले तौर पर कन्हैया कुमार और एआईएसएफ के नेताओं को देश द्रोही अथवा राष्ट्रद्रोही बतला रहे हैं जो कानूनन जुर्म है. विद्यार्थी परिषद को भय है कि कन्हैया कुमार और एआईएसएफ नेताओं के दौरों से छात्र समुदाय में उनके अधिकारों और समस्याओं के प्रति चेतना जाग्रत होगी और सरकारों की छात्र विरोधी एवं शिक्षा विरोधी कारगुजारियों का पर्दाफाश होगा. पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा समर्थक संगठन विद्यार्थी परिषद ने छात्र विरोधी अभियान छेड रखा है. वे अपनी दादागीरी से छात्रों के हित में संघर्ष करने वालों को प्रताडित कर रहे हैं तो राज्य सरकार उनकी अराजक कार्यवाहियों को रोकने से कतरा रही है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष कु. ऋचा सिंह को इसलिये हठाने की कोशिश की जा रही है कि उन्होंने कुख्यात सांप्रदायिक भाजपा सांसद आदियनाथ को इलाहाबाद विश्व विद्यालय में प्रवेश नहीं करने दिया था. वाराणसी में भी कई विपक्षी छात्रों को विद्यार्थी परिषद के दबाव में उनकी संस्थाओं से निष्कासित कर दिया गया है. जगह जगह ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये, दलितों, पिछडों, अल्पसंख्यकों, अन्य कमजोरों और पढाई- लिखाई से मतलब रखने वाले छात्रों को निशाना बनाया जारहा है. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और कई अन्य जगह रोहित वेमुला की जबरिया आत्महत्या का विरोध करने वाले छात्रों को डराया- धमकाया गया है. अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी (AKTU) के छात्रों की बाजिव मांगों को पूरा करने के स्थान पर उन पर दमन चक्र चलाया जा रहा है. विद्यालयों और विश्वविद्यालय परिसरों में विद्यार्थी परिषद द्वारा छात्रों को धमका कर सदस्य बनाया जारहा है और उन्हें आरएसएस की शाखाओं में भाग लेने को बाध्य किया जारहा है. विद्यार्थी परिषद कभी भी छात्र हित की राजनीति नहीं करता अपितु वह छात्रों के बीच आर.एस.एस. की कुत्सित विचारधारा के आधार पर घृणित कार्यवाहियों को अंजाम देने का औजार मात्र है. ज्ञापन में कश्मीर के श्री नगर में एनआईटी छात्रों पर भाजपा/ पीडीपी गठबंधन की सरकार द्वारा किये गये लाठीचार्ज जिसमें कई छात्र बुरी तरह घायल हुये हैं, की कडे शब्दों में निंदा की गयी है. ये छात्र अपनी बुनियादी समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन मीडिया के कतिपय हिस्सों में इसे सांप्रदायिक घटना करार दिया जारहा है. सच तो यह है कि केंद्र और उसके प्रभाव वाली राज्य सरकारें छात्रों की समस्याओं का निदान करने से मुहं चुरा रही हैं और एक के बाद एक कैम्पस छात्र आंदोलन का गवाह बनता जा रहा है. खेद की बात है कि इन संगीन मामलों में न तो केंद्र सरकार ने कोई कदम उठाया है और न ही उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने. शिक्षा के बजट में भारी कटौती की जा रही है. अकेले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) के बजट में ही 55 प्रतिशत की कटौती कर दी गयी है और इसे रु. 10,000 करोड से घटा कर लगभग रु. 45,00 करोड के आस पास पहुंचा दिया गया है. निजी संस्थाओं में तो भारी फीस देनी ही थी अब आई. आई. टी. जैसी सरकारी संस्थाओं की फीस को बढा कर समूचे कोर्स के लिये रु. 24 लाख कर दिया गया है. केंद्र सरकार पाठ्यक्रमों में सांप्रादायिक, तथ्यों से कोसों दूर और पाखंड्पूर्ण सामग्री को ठूंस रही है. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा सभी को समान शिक्षा दिये जाने का आदेश पारित करने के बावजूद राज्य सरकार ने इस दिशा में अभी तक कोई पहलकदमी नहीं की है. शिक्षा हर स्तर पर साधारण और निम्न वर्ग के छात्रों की पहुंच से तो बाहर जा ही रही है, मध्यम वर्ग भी इस महंगी शिक्षा के बोझ तले कराह उठा है. मध्यकाल की तर्ज पर लाई जा रही यह शिक्षा पध्दति भविष्य में अल्पज्ञता, समाज के प्रति उदासीनता और मानव संसाधन की भारी समस्या उत्पन्न करेगी और छात्रों की आवाज दबाने की कोशिश छात्र असंतोष को और अधिक बढायेगी ज्ञापन में कहा गया है. अतएव आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन दोनों महामहिमों से मांग करता है कि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष एवं एआईएसएफ के अन्य नेताओं को जान से मारने की धमकी देने वालों और उनका चरित्र हनन करने वालों के विरुध्द अभियोग पंजीकृत कर कडी से कडी कार्यवाही की जाये. शिक्षण संस्थाओं में कमजोर तबकों के छात्रों का उत्पीडन रोकने को रोहित वेमुला एक्ट बनाया जाये ताकि किसी भी होनहार छात्र की जान और सम्मान को आंच ना आये. अब्दुल कलाम टैक्नीकल यूनिवर्सिटी के छात्रों की न्याय संगत मांगों को पूरा किया जाये और उनका उत्पीडन बंद किया जाये. उत्तर प्रदेश में छात्रों के उत्पीडन की कार्यवाहियों को रोका जाये. उत्पीडन करने वालों के विरुध्द कडी से कडी कार्यवाही की जाये. विद्यालय और विश्व विद्यालय परिसरों में विद्यार्थी परिषद जैसे विद्यार्थी विरोधी संगठन की अवांच्छित कार्यवाहियों पर रोक लगायी जाये. छात्रों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिये छात्रसंघों के चुनाव कराये जायें, और चुनाव प्रणाली में इस तरह के सुधार किये जायें कि असामाजिक और अवांच्छित तत्व चुन कर न जायें.विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जाये. शिक्षा का हर स्तर पर बजट बढाया जाये. शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह सरकारी बनाया जाये. शिक्षा की फीस बढाने और उसे अन्य तरह से महंगा बनाने को रोका जाये. शिक्षा के पाठ्यक्रमों में प्रतिगामी बदलाव करना रोका जाये. शिक्षा उच्च उदात्त विचारों, वैज्ञानिक सोच के विकास, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष व जनवादी मूल्यों की वाहक बने, असहिष्णुता और विभाजन का औजार नहीं. उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्णय को अमलीजामा पहनाने को उत्तर प्रदेश में अगले सत्र से सभी को निशुल्क शिक्षा, समान शिक्षा एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जाये. उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, माध्यमिक विद्यालयों, जूनियर और बेसिक स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पडे सभी पदों पर योग्यतम शिक्षकों की नियुक्ति की जाये. समाचार बुलेटिन जारी किये जाने तक प्रदेश के तमाम जिलों से सफल धरना प्रदर्शन की खबर राज्य मुख्यालय को प्राप्त हुयी है. उरई(जालौन) से प्राप्त खबर के अनुसार यहां सैकडों छात्र- छात्राओं ने स्थानीय बस अड्डे के समीप मजदूर भवन से कलक्ट्रेट तक जुलूस निकाला. छात्र नारे लगा रहे थे- कितने कन्हैया पकडोगे, हर घर से कन्हैया निकलेगा, वेमूला के हत्यारों को फांसी दो, मोदी- अखिलेश होश में आओ, छात्रशक्ति की आवाज सुनो आदि. प्रदर्शन का नेत्रत्व पूर्णिमा चौरसिया संयोजक एवं नवीन प्रजापति ने किया. कलेक्ट्रेट परिसर में हुयी सभा को नौजवान सभा के प्रदेश अध्यक्ष विनय पाठक, एआईएसएफ के पूर्व नेता कैलाश पाठक एवं सुधीर अवस्थी आदि ने संबोधित किया. ज्ञापन नगर मजिस्ट्रेट को सौंपा गया. अलीगढ से प्राप्त समाचार के अनुसार पान दरीबा कार्यालय से छात्रों का एक जुलूस नगर संयोजक अनीस कुमार के नेत्रत्व में महंगी शिक्षा दोहरी शिक्षा नहीं चलेगी, छात्रों को देशद्रोही बताना बंद करो, छात्रों में जाति धर्म के नाम पर फूट डालना बंद करो, आदि नारे लगाता हुआ कलक्ट्रेट पहुंच. वहीं अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय यूनिट की संयोजक कु. दूना मारिया भार्गवी के नेत्रत्व में कुछ छात्र विश्व विद्यालयों की स्वयत्तता पर हमले बन्द करो, छात्रों की छात्रवृत्ति बहाल रखो, शिक्षा का बजट बढाओ घटाओ नही आदि नारे लगाते हुये वहां पहुंचे. वहाँ एक सभा का आयोजन किया गया जिसे एसएफ के पूर्व नेता सुहेब शेरवानी, शमीम अख्तर, रामबाबू तथा इकबाल मंद ने संबोधित किया. ज्ञापन भी दिया गया. प्रदर्शन में विनीत कुमार, यशपाल सिंह, प्रवेश कुमार, हर्ष पालीवाल, यतेंद्र बघेल, गौरव सक्सेना, बबलू सक्सेना, अजय कुमार भारत गुप्ता, कु. ससीम्न, इरफान, अनस, ज़िम्नीश, अकरम हुसैन एवं अंसारी आदि ने भी भाग लिया. बदायूं में जिलाध्यक्ष विक्रम सिंह एवं सचिव कामेश के नेत्रत्व में जिला कार्यालय से एक जुलूस निकाला गया जो शहर के मुख्य भागों से होता हुआ जिला मुख्यालय पहुंच कर सभा में तब्दील होगया. वे नारे लगा रहे थे कि एआईएसएफ नेताओं को धमकियां देना बंद करो, धमकियां देने वालों को जेल भेजो, छात्रों पर लगाये फर्जी मुकदमे वापस लो आदि. प्रदर्शन में सर्वेश कुमार, अवनीश शर्मा, सतीश कश्यप एवं शुभम की अहम भूमिका रही. पूर्व नेता रघुराज सिंह आदि ने संबोधित किया. आज़मगढ में अध्यक्ष दलीप कुमार मौर्य और सचिव मुजम्मिल आज़मी के नेत्रत्व में एडीएम प्रशासन को ज्ञापन सौंपा गया. मुहम्मद साजिद, रंजीत मौर्य, मुहम्मद हामिद, सूरज मिश्रा, रामनरेश यादव, आमिर अली आदि छात्र तथा पूर्व छात्र नेता जितेंद्रहरि पान्डे आदि मौजूद थे. बांदा में कार्यकर्ताओं ने जिला कार्यालय से संयोजक कु. पूनम रहकवार के नेत्रत्व में जुलूस निकाला और सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा. वे नारे लगा रहे थे कि सभी को समान शिक्षा दो, बुंदेलखंड को अकालग्रस्त घोषित करो, रोजगार दो और भुखमरी से बचाओ आदि. सभा को पंकज यादव हफीज खान और रामजी यादव आदि ने संबोधित किया. लखनऊ में भी शिवानी मौर्य, प्रवीन त्रिवेदी, अमित कुशवाहा और श्यामबाबू मौर्य के नेत्रत्व में एडीएम को ज्ञापन सौंपा गया. इस अवसर अशोक सेठ एवं बाल गोविंद आदि ने छात्रों का सहयोग किया. कानपुर में एआईएसएफ के अध्यक्ष अक्षय इमेनुअल सिंह और सचिव मयंक चक्रवर्ती के नेत्रत्व में नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा गया. हाथरस में बलवीर सिंह अध्यक्ष, चांद खां सचिव के नेत्रत्व में जितेंद्र कुमार, दिनेश कुमार, राज आदि कार्यकर्ताओं ने अपर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर चरनसिंह बघेल, सत्यपाल रावल एवं द्रुगपाल सिंह आदि भी मौजूद रहे. फैजाबाद में राज्य अध्यक्ष ओंकारनाथ पांडे एवं संयोजक अतुल सिंह, आशीष कुमार पान्डे, राजकुमार के नेत्रत्व में नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा गया. इस अवसर पर अशोक तिवारी एवं पवित्र साहनी आदि भी मौजूद रहे. जौनपुर में अध्यक्ष धीरेंद्र कुमार पटेल, सचिव अरविन्द कुमार पटेल, राजकुमार सिंह, दिनेश कुमार पाल संदीप कुमार आदि ने नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर सुभाष पटेल, सुबाश गौतम, मुनीम पटेल और जयलाल सरोज भी मौजूद रहे. मथुरा में उत्कर्ष चतुर्वेदी सचिव एवं अतुल कुमार के नेत्रत्व में उप जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया. सोनभद्र में संयोजक रवि प्रकाश शर्मा के नेत्रत्व में एडीएम को ज्ञापन सौंपा गया. अन्य मांगों के अतिरिक्त वहां कैमूर विश्वविद्यालय खोलने तथा रेनुकूट तथा राबर्ट्सगंज से ओबरा पी.जी. कालेज तक बस चलवाने की मांग छात्र हित में की गयी. इस अवसर पर विवेक तिवारी, राजेश चौधरी, आलोक गौतम, अरुण कुमार, करमवीर, राहुल विश्वकर्मा, सुगम पाठक, रजनीश कुमार, रोशन खां एवं राहुल शर्मा आदि भी उपस्थित रहे. अभी अभी गौंडा, बरेली, मेरठ, चित्रकूट एवं आगरा से भी ज्ञापन दिये जाने की खबरें मिली हैं. प्रेषक- कार्यालय सचिव एआईएसएफ, उत्तर प्रदेश
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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

उत्तर प्रदेश में ए.आइ.एस.एफ आन्दोलन की राह पर

लखनऊ—5 अप्रेल 20016. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार एवं एआईएसएफ के अन्य नेताओं को मिल रही धमकियों के खिलाफ तथा विभिन्न संस्थाओं में शिक्षण शुल्क बढाये जाने, शिक्षा के लिये बजट में भारी कटौती किये जाने, शिक्षा के बाजारीकरण और उसके आम छात्रों की पकड से बाहर चले जाने, शिक्षा प्रणाली के सांप्रदायीकरण, कमजोर तबकों के छात्रों के खिलाफ होरहे अत्याचारों के खिलाफ तथा एकेटीयू छात्रों की मांगें मानने में की जारही हीला हवाली, सभी को समान शिक्षा, निशुल्क शिक्षा, अनिवार्य शिक्षा और रोहित वेमूला एक्ट बनाये जाने आदि मुद्दों को लेकर आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन उत्तर प्रदेश में 6 अप्रेल को जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन करेगा. उपर्युक्त जानकारी यहाँ एक प्रेस वक्तव्य में एआईएसएफ के राज्य अध्यक्ष ओंकारनाथ पांडे ने दी है. उन्होने बताया कि एआईएसएफ के कार्यकर्ता महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन संबंधित जनपद के जिलाधिकारी को सौंपेंगे. जिलों से मिल रही रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर जिलों में कार्यक्रम की तैयारियां पूरी कर ली गयीं हैं. उन्होने दाबा किया कि पिछले कई वर्षों में उत्तर प्रदेश में एआईएसएफ की यह एक बडी कार्यवाही होगी. उन्होने सभी छात्रों से अपील की कि इस कार्यवाही में बढ चढ कर भाग लें. जारी द्वारा ओंकार नाथ पांडे, अध्यक्ष आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन, उत्तर प्रदेश
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गुरुवार, 31 मार्च 2016

कन्हैया कुमार तथा एआईएसएफ के अन्य नेताओं को धमकी देने वालों को गिरफ्तार करे उत्तर प्रदेश सरकार: भाकपा ने मांग की.

लखनऊ- 31 मार्च 2016- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के अन्य नेताओं को जान से मारने की धमकी दिये जाने, उनकी जीभ काटने और गर्दन रेतने की धमकी दिये जाने, कन्हैया कुमार को अलीगढ अथवा यू. पी. में घुसने पर परिणाम भुगतने की धमकी दिये जाने तथा मीडिया के कतिपय हिस्सों में छप रहे बयानों और समाचारों में कन्हैया कुमार को बार बार देशद्रोही कहे जाने की कार्यवाहियों की कडे से कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने कल अलीगढ नगर निगम बोर्ड की बैठक में भाजपा के सभासदों द्वारा राष्ट्रगान और संविधान का अपमान किये जाने की भी भर्त्सना की है. भाकपा ने राज्य सरकार से मांग की है कि वे इन कुकृत्यों में लिप्त अपराधिक तत्वों और कथित देशभक्तों के खिलाफ माकूल दफाओं में अभियोग दर्ज कर इन्हें जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाये. भाकपा के राज्य सचिव मंडल की ओर से यहाँ जारी एक बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अभी मेरठ के अमित जानी नामक शख्स ने जिसने विगत वर्ष सुश्री मायावती की प्रतिमाओं को क्षति पहुंचाई थी, कन्हैया कुमार और उमर खालिद को जान से मारने की धमकी दी है. भाकपा ने इसका संज्ञान लेते हुये राज्य सरकार से लिखित शिकायत कर उसे गिरफ्तार करने की मांग की है. कुछ लोगों ने ट्विटर के जरिये कन्हैया कुमार एवं एआईएसएफ के अध्यक्ष वलीउल्लाह खादरी को धमकी दी है कि यदि उन्होने उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया तो उनकी गर्दन काट दी जायेगी. अलीगढ के कुछ भगवा संगठन भी कन्हैया कुमार के अलीगढ आगमन को लेकर आपत्तिजनक और अशांति पैदा करने वाली बयानवाजी कर रहे हैं. बदायूं के एक कुलदीप वार्ष्णेय नामक तत्व जिसने कन्हैया कुमार की जीभ काटने वाले को पांच लाख का इनाम देने की घोषणा की थी, वह भी जगह जगह जाति की सभाओं में पहुंच कर विष वमन कर रहा है. डा. गिरीश ने उत्तर प्रदेश में छप रहे और वितरित होरहे कुछ समाचार पत्रों पर आरोप लगाया कि वे भाकपा, एआईएसएफ और कन्हैया कुमार की छवि धूमिल करने को जान बूझ कर लगातार कन्हैया कुमार को देश द्रोही लिख रहे हैं. ऐसे समाचार पत्रों पर प्रेस काउंसिल और सरकार को कानून सम्मत कार्यवाही करनी चाहिये. कल अलीगढ नगर निगम की बैठक में भाजपा के सभासदों द्वारा राष्ट्रगान की गरिमा तार तार करने पर गहरा अफसोस जताते हुये भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि भगवा गिरोह खुद नित रोज राष्ट्रगान, तिरंगा ध्वज और राष्ट्रीय मर्यादाओं को तहस नहस कर रहा है. किसी भी नागरिक के लिये बर्दाश्त के बाहर है. दूसरों पर झूठे देशद्रोह के आरोप लगाने वाले संघ परिवार की कथनी और करनी साफ जाहिर होगयी है. राज्य सरकार को इस संविधान विरोधी कृत्य के खिलाफ शीघ्र कडी कार्यवाही करनी चाहिये. भाकपा राज्य सचिव ने आशा जताई है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था, शांति व्यवस्था और जनतांत्रिक गतिविधियों को बनाये और बचाये रखने को वह स्वत: संज्ञान लेते हुये राज्य सरकार कडी से कडी कार्यवाही करे. डा. गिरीश,
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मंगलवार, 29 मार्च 2016

उत्तराखंड सरकार की बर्खास्तगी की विपक्षी दलों ने निंदा की

हाथरस: 29 मार्च, जनपद के कई राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों की एक बैठक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में उन्हीं के आवास पर संपन्न हुयी. बैठक में केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की कडे से कडे शब्दों में निंदा की गयी और भाजपा सरकार के इस कदम को संविधान विरोधी और लोकतंत्र पर बडा हमला बताया गया. बैठक को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि बहुमत साबित करने की तिथि से एक दिन पूर्व षड्यंत्र के तहत उत्तराखंड की सरकार को बर्खास्त किया जाना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि एस.आर. बोम्मई प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि बहुमत साबित करने की जगह सदन/ विधान सभा है ना कि राष्ट्रपति भवन अथवा राजभवन. लेकिन सत्ता की भूख में भाजपा सारी लोकतांत्रिक परंपराओं और मर्यादाओं का हनन करने पर आमादा है. डा. गिरीश ने कहाकि केंद्र सरकार अपने जनविरोधी कार्यों और वायदा खिलाफी के चलते जनता और मतदाताओं का पूरी तरह विश्वास खो बैठी है और दिल्ली तथा बिहार विधान सभा के चुनावों में उसे करारी पराजय का सामना करना पडा था. आगामी पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में भी उसकी करारी हार के लक्षण साफ नजर आने लगे हैं. वोट के जरिये सत्ता हासिल न कर पाने में विफल भाजपा अब सत्ता हरण के लिये तमाम अनैतिक हथकंडे अपना रही है. पहले उसने अरुणांचल में सत्ता हरण का घृणित खेल खेला और अब वही खेल उत्तराखंड में खेला जा रहा है. अगर इसका माकूल जबाव नहीं दिया गया तो विपक्ष की एक एक राज्य सरकार को हडपने की कोशिश की जायेगी. बैठक में सहमति बनी कि जल्दी ही दोबारा बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जायेगी. " लोक तंत्र बचाओ, संविधान बचाओ," "संविधान बचाओ, देश बचाओ" के उद्घोष के साथ अभियान चलाया जायेगा. बैठक में राष्ट्रीय लोक दल के जिलाध्यक्ष चौधरी रमेश ठैनुआं व मनोज चौधरी, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष करुणेश मोहन दीक्षित व नगर अध्यक्ष चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, समाजवादी पार्टी के जिला सचिव गौरीशंकर बघेल व अभयपाल सिंह तथा भाकपा के जिला सचिव का. चरनसिंह बघेल व सहसचिव सत्यपाल रावल आदि ने भी विचार व्यक्त किये. डा. गिरीश
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बुधवार, 16 मार्च 2016

जेएनयू प्रकरण और वामपंथ पर किये जा रहे हमलों को जनता के बीच ले जायेगी भाकपा

लखनऊ 16 मार्च। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कौंसिल की दो दिवसीय बैठक आज यहां सम्पन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता सेवानिवृत्त अपर जिलाधिकारी का. बी. राम ने की।
बैठक में जेएनयू प्रकरण और उसके बाद के हालात, मुजफ्फरनगर दंगों की रिपोर्ट, आरक्षण आन्दोलन, रेल तथा आम बजट आदि राष्ट्रीय सवालों और उत्तर प्रदेश के हालातों पर विस्तार से चर्चा हुई।
चर्चा के बाद भाकपा ने अपने आगे के कामों का निरूपण भी किया। संघ परिवार द्वारा लादी जा रही तानाशाही और साम्प्रदायिकता का पूरी शिद्दत से जवाब देने के लिए शहीदे आजम भगत सिंह के बलिदान दिवस (23 मार्च) और डा. भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस (14 अप्रैल) को समर्पित कार्यक्रम 20 मार्च से 20 अप्रैल तक सघन तरीके से चलाने का निर्णय लिया गया। इस अवसर पर ”संविधान की प्रस्तावना लागू करो“ और ”वर्गविहीन और जातिविहीन समाज का निर्माण और डा. अम्बेडकर“ विषय पर विचारगोष्ठियां आयोजित की जायेंगी। पूरे माह सभायें, नुक्कड़ सभायें, पर्चा वितरण करके कम्युनिस्टों और वामपंथी दलों को बदनाम करने की संघ परिवार की साजिश को बेनकाब किया जायेगा और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमलों का जवाब दिया जायेगा। जिला कमेटियों से अनुरोध किया गया है कि वे इन आयोजनों में वामपंथी दलों के अतिरिक्त अन्य जनवादी ताकतों को जोड़ने का भी प्रयास करें।
रेल बजट, आम बजट और सरकार की नीतियों को पूरी तरह से कारपोरेट घरानों के अनुकूल और देश के बहुमत किसानों, मजदूरों, दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रतिकूल बताते हुए पार्टी ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि विजय माल्या जैसे जनता के धन को लूटने वाले लोग देश छोड़ कर भाग जाते हैं और सरकार कुछ भी नहीं कर पाती है। भाकपा ने विजय माल्या को जल्दी से जल्दी देश में वापस लाने, उनकी समस्त परिसम्पत्तियों को जब्त करने और उन पर अभियोग चलाने की मांग की है तथा चेतावनी दी है कि धनिक वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए गरीबों के हितों पर कुल्हाड़ा चलाने से सरकार बाज आये। भाकपा इस दिशा में शीघ्र ही एक बड़े आन्दोलन की रूपरेखा बनाने जा रही है।
भाकपा की राज्य कौंसिल बैठक में भावी विधान सभा चुनावों की तैयारियों पर भी चर्चा की गयी और जिलों को निर्देश दिया गया कि वे लड़ने योग्य सीटों को तय करके सूची राज्य केन्द्र को शीघ्र से शीघ्र प्रेषित करें।
बैठक में 1 मई से 10 मई तक जनता से धन संग्रह अभियान चलाने का निर्णय भी लिया गया।
बैठक में राजनैतिक और कार्यों सम्बंधी रिपोर्ट राज्य सचिव डा. गिरीश ने प्रस्तुत की जिस पर 35 साथियों ने चर्चा में भाग लिया।
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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

जोर पकड़ रहा है वामदलों का लोकतंत्र बचाओ अभियान.

वामदलों के लोकतंत्र बचाओ अभियान को व्यापक समर्थन उत्तर प्रदेश में ज्यादातर जिलों में बड़ी संख्या में सडकों पर उतरे वामपंथी कार्यकर्ता इलाहाबाद में आन्दोलनकारी वाम नेताओं पर किया गया कातिलाना हमला दोषी हमलावरों को गिरफ्तार करने की मांग लखनऊ 25 फरवरी: वामपंथी दलों के राष्ट्रीय आह्वान पर उत्तर प्रदेश में आयोजित लोकतंत्र बचाओ अभियान को जनता का व्यापक समर्थन मिला है. प्रदेश के ज्यादातर जिलों में मार्च निकाले गए अथवा धरने प्रदर्शन आयोजित किये गए. वाम दलों ने इस सफलता के लिए प्रदेश की जनता को बधाई दी है. ज्ञातव्य हो कि छः वामदलों ने 23 से 25 फरवरी तक पूरे देश में लोकतांत्रिक अधिकारों पर किये जारहे हमलों के खिलाफ, रोहित वेमुला को न्याय दिलाने, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कन्हैया कुमार को रिहा करने तथा उन पर एवं कई निर्दोष छात्रों पर लगे फर्जी मुकदमे वापस लेने आदि मांगों को लेकर तीन दिवसीय अभियान चलाने का निर्णय लिया था. अभियान के दौरान आज वामदलों के शान्तिपूर्ण तरीके से आन्दोलन कर रहे कार्यकर्ताओं पर कचहरी के अन्दर कातिलाना हमला किया गया. हमले में दर्जनों कार्यकर्ता हताहत हुए हैं. हमला करने वालों में भाजपा कार्यकर्ता तथा उनके पिट्ठू वकील थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश एवं भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) के राज्य सचिव मंडल सदस्य प्रेमनाथ राय ने यहाँ जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में इलाहाबाद की घटना की घोर निंदा करते हुए दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की है. डा. गिरीश
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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

कन्हैया कुमार को तत्काल रिहा करो: भाकपा

लखनऊ-12, फरवरी—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी( JNU) छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी की कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने कन्हैया की तत्काल बिना शर्त रिहाई तथा जे.एन.यू. कैम्पस से पुलिस हठाने की मांग की है. भाकपा ने लखनऊ में एसएफआई कार्यालय पर एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा किये गये हमले और तोड फोड की भी निंदा की है तथा इस घटना के दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि गत दिन जेएनयू में हुये कार्यक्रम के दौरान कुछ तत्वों ने अवांछित नारे लगाये थे जिनकी पहचान कर उनके खिलाफ कार्यवाही की जाने की जरूरत थी. कन्हैया ने कल रात ही टी. वी. चैनल्स पर साफ कर दिया था कि इस तरह के नारे लगाने वालों से उनका कोई संबंध नहीं और उन्होने ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्यवाही की मांग भी की थी. कन्हैया कुमार वामपंथी छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से संबधित हैं जिसकी आज़ादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है और सदैव ही यह संगठन छात्र एवं शैक्षिक हितों के लिये काम करता रहा है. गत दिनों इस संगठन ने अन्य छात्र संगठनों के साथ मिल कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पर तथा हैदराबाद के दलित छात्र रोहित वेमुला की हत्या के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया है, जिससे केंद्र सरकार बौखलाई हुयी है. केंद्र सरकार और उसका जनक संघ परिवार वामपंथी, दलित, अल्पसंख्यक और अन्य मेहनतकश तबकों को तवाह कर कार्पोरेट्स के हितों को साधने में लगे है और उसके लिये वे प्रतिरोध की आवाज को दबाना चाहते हैं. इसीलिये पहले दाभोलकर, पंसारे और कालबुर्गी की हत्यायें की गयीं और अब जेऐनयू, ए.एम.यू., लखनऊ, हैदराबाद और इलाहाबाद जैसे विश्वविद्यालयों की स्वायत्त्तताको निशाना बनाया जारहा है. जो सरकार आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह विफल रही है वह ऐसे लोगों को देशद्रोही करार देने पर उतारु है जो आतंकवाद और सांप्रदायिकता से जूझते रहे हैं. वामपंथ पर यह हमला इस बात का संकेत दे रहा है कि फासीवाद पैर पसारने को मचल रहा है. भाकपा सभी जनवादी ताकतों से अपील करती है कि वे केंद्र सरकार के इन तानाशाहीपूर्ण कदमों के खिलाफ कडा प्रतिवाद दर्ज करायें. डा. गिरीश, राज्य सचिव
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रविवार, 7 फ़रवरी 2016

केन्द्र और राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ 11 फरबरी को उत्तर प्रदेश में आन्दोलन करेगी भाकपा

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने अपनी समस्त जिला इकाइयों को निर्देशित किया है कि वे केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार के जन विरोधी कार्यों से जनता को राहत दिलाने को 11 फरबरी को जिला स्तर पर आन्दोलन करें. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि केन्द्र की मोदी सरकार बेशर्मी के साथ आर्थिक नव उदारवाद के एजेंडे पर चल रही है, इसके चलते जनता की समस्यायें लगातार बढ़ रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट के बावजूद पेट्रोल डीजल के दाम काफी ऊँचे स्तर पर हैं, राशन खाद गैस आदि सभी पर सब्सिडी ख़त्म कर दी गयी है, महंगाई सातवें आसमान पर है, रेल आदि सभी सरकारी उपक्रमों में जनता को मिली सुविधायें छीनी जारही हैं तथा सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न का एजेंडा लगातार जारी है. उत्तर प्रदेश सरकार के विकास के दावों का खोखलापन तो इसीसे जाहिर होजाता है कि मौसम की मार से पीड़ित किसानों को कोई राहत नहीं मिल पा रही और बुंदेलखंड सहित प्रदेश के तमाम हिस्सों में किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं. गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर रु. ६५० करोड़ बकाया है, लागतों में भारी वृध्दि के बावजूद तीन वर्षों से गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया नहीं गया, किसान रु.350/- प्रति कुंतल की मांग कर रहे हैं, बिजली विभाग बसूली के नाम पर उपभोक्ताओं का उत्पीड़न कर रहा है- बिजली के कनेक्शन काटे जारहे हैं, बकायेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जारहीं हैं और रिश्वतें ली जारही हैं, बिजली मिल नहीं पारही, गरीबी की सीमा के नीचे वालों के राशन में कटौती कर दीगयी है, आये दिन महिलाओं और कमजोरों के उत्पीडन की बारदातें होरही हैं, क़ानून- व्यवस्था पंचर होगयी है, दलितों की जमीनों को हडपने का रास्ता खोल दिया गया है. आतंकवाद के नाम पर पूर्व में गिरफ्तार लोगों को अदालतें रिहा कर रही हैं, मगर अब तमाम लोगों को आतंकी बता कर गिरफ्तार किया जारहा है. उन्हें अदालतों द्वारा दोषी ठहराने से पहले ही आतंकवादी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. इन्हीं तमाम जनता से जुड़े सवालों पर भाकपा ने 11 फरबरी को जिलों में धरने, प्रदर्शन अथवा आम सभायें आयोजित करने का निश्चय किया है. जनता की इन समस्याओं के निराकरण के लिए प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के लिए ज्ञापन जिलाधिकारियों के माध्यम से भेजे जायेंगे. डा.गिरीश
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सोमवार, 25 जनवरी 2016

संघ का कार्य- व्यवहार लोकतंत्र के लिये घातक

हाल ही में लखनऊ की दो घटनायें काबिले गौर हैं- प्रथम- अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान श्री मोदी जब हजरतगंज से गुजर रहे थे तो हैदराबाद के दलित छात्र रोहित वेमुला की बलात आत्महत्या के विरोध में एक वामपंथी छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने उन्हें काले झंडे दिखाये. यह देखते ही वहां मौजूद भगवा ब्रिगेड के लोग बौखला गये और जनतांत्रिक तरीके से विरोध जता रहे छात्रों पर हमला बोलने को दौड़ पड़े. समाचार पत्रों के मुताबिक यदि पुलिस ने विरोध जताने वाले छात्रों को खदेड़ न दिया होता तो भगवा ब्रिगेड उनको सबक सिखा देती. दूसरी- एक बारबर के बेटे को आतंकवादियों से कथित संबंध बता कर जब गिरफ्तार किया गया तो भीड़ ने उसके पिता की दुकान पर हमला बोल दिया और उसमें तोड़-फोड़ की. तोड़-फोड़ करने वालों को खदेड़ने के लिये पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. ( बंबई में भी रोहित की मौत का विरोध कर रहे दलित छात्रों को संघ की शाखा वालों ने लाठी-डंडों से पीट पीट कर घायल कर दिया). ये दोनों घटनायें कई सवाल खड़े करती हैं- क्या लोकतंत्र में काले झंडे दिखाने वालों से अब सत्तापक्ष कानून हाथ में लेकर खुद ही निपटेगा? इससे जो अराजकता और तानाशाही का बीजारोपण होगा वह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को ही ले डूबेगा. लंबे समय तक विपक्ष में रहने वाला संघ गिरोह आये दिन काले झंडे दिखाने का काम करता रहा तब उस पर तो किसी दल के कार्यकर्ताओं ने हमले नहीं किये. इससे साबित होता है कि लोकतांत्रिक तरीकों से सत्ता में आया संघ गिरोह सत्ता में आते ही लोकतांत्रिक परंपराओं को ही तहस- नहस करने पर आमादा है. अब जरा दूसरी घटना पर गौर करें. किसी को किसी आरोप में गिरफ्तार करने का मतलब यह तो नहीं कि वह अपराधी सिध्द होगया. यह तो न्याय के घोषित सिध्दांतों के विरुध्द होगा. यह भी जग जाहिर कि राज सत्तायें अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिये तमाम निर्दोष लोगों को झूठे आरोप लगा कर गिरफ्तार करती रहीं हैं और बाद में अदालतों ने उन्हें निर्दोष करार दिया है. बीस माह के शासनकाल में हर मोर्चे पर विफल रही भगवा सरकार भी इस तरह की गिरफ्तारियां करके समस्याओं से ध्यान हठाने की कोशिश कर रही है, तमाम राजनीतिविदों ने ऐसी आशंका जताई हैं. फिर किसी को भी भीड़ इकट्ठी कर तोड़ फोड़ करने और कानून हाथ में लेने का अधिकार किसने दे दिया? यहां यह भी उल्लेखनीय कि देश में आये दिन आतंकी हमले होते रहते हैं लेकिन कहीं भी कभी भी ऐसा देखने को नहीं मिला कि भीड़ आतंकवादियों से मोर्चा लेने निकल पड़ी हो. नहीं कभी संघ शाखा के लठैत आतंकवादियों से दो दो हाथ करने निकले. ये अपने देश के दलितों, अल्पसंख्यकों अथवा उनके पक्ष में आवाज उठाने वालों पर ही शूरमागीरी दिखाते रहते हैं. क्या यह इसलिये नहीं कि संघ गिरोह ने समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोल रखा है. असहिष्णुता का मुद्दा उठाने वालों को दिन रात कोसने वाला संघ गिरोह बताने का कष्ट करेगा क्या कि सहिष्णुता के वातावरण में किसी की गिरफ्तारी मात्र पर उसके घर या प्रतिष्ठान पर हमला कौन करेगा? जब तक कि भीड़ को उकसाया न जाये. और इस उकसावे का काम संघ गिरोह के अलाबा कौन कर सकता है? बंबई में तो संघियों ने खुले आम हमला बोला. लखनऊ और बंबई की घटनायें इस ओर इशारा करती हैं कि दलितों कमजोरों के पक्ष में आवाज उठाने वालों पर हमले और किसी पर आरोप लगते ही भीड़ को उकसा कर तोड़ फोड़ कराने की वारदातें हमारे लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरा हैं. 67 वें गणतंत्र दिवस पर जागो भारतवासियो! डा. गिरीश
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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

भाकपा की 90 वीं सालगिरह: साम्यवाद ही क्यों? विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित

भाकपा की 90वीं वर्षगांठ- साम्यवाद ही क्यों? विषय पर गोष्ठी आयोजित हाथरस- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 90 गौरवशाली साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह जनपद- हाथरस के कस्बा- मेंडू में आयोजित किया गया. गीत और संगीत के कार्यक्रमों के अतिरिक्त वहां एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया गया. गोष्ठी का विषय था- साम्यवाद ही क्यों? गोष्ठी को संबोधित करते हुये भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश ने कहा कि देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने और आजाद भारत में एक समानता, भाईचारे पर आधारित और सभी प्रकार के शोषण से मुक्त साम्यवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य से भाकपा का गठन देश के उन क्रांतिकरियों ने किया था जो रुस की समाजवादी क्रांति से प्रेरित थे तथा मजदूरों- किसानों को पूंजीपतियों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे. भाकपा की स्थापना से पहले और उसके बाद मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के विचारों से प्रेरित इन क्रांतिकारियों ने कदम ब कदम अनेक कदम उठाये जिनके चलते देश को आज़ाद कराने में भारी मदद मिली. लेकिन साम्यवादी समाज की रचना का काम आज भी शेष है. सबका साथ और सबका विकास की बात करने वाले आज के शासक अल्पसंख्यक समुदाय को कदम कदम पर हानि पहुंचा रहे हैं और गरीब तथा आम आदमी की कीमत पर कार्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचा रहे हैं. डा. गिरीश ने कहा कि आजादी के बाद शासक पूंजीपति वर्ग की पार्टियों – कांग्रेस, भाजपा, क्षेत्रीय और जातिवादी दलों ने मेहनतकशों को लुभावने नारे दे कर और उन्हें जाति, क्षेत्र और सांप्रदायिक आधारों पर बांट कर समाजवाद और साम्यवाद के लक्ष्य को भारी हानि पहुंचाई है. वहीं पार्टी में विभाजन करने वालों ने भी इस पावन उद्देश्य को कम हानि नहीं पहुंचाई. महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि आज विभाजन करने वाली पार्टियां उसी नीति और कार्यनीति पर चल रहे हैं जिनकी कि आलोचना करके उन्होने अलग पार्टियां बनायीं थीं. उन्होने कहा कि आजादी के बाद के इन 67 सालों में जनता ने हर पूंजीवादी दल की सत्ता का स्वाद चख लिया है. आज इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि इस पूरे कालखंड में किसान कामगार और अन्य मेहनतकश तवाह हुये हैं तथा पूंजीपति, माफिया और राजनेता मालामाल हुये हैं. हमें इन लुटे पिटे तबकों की चेतना को जगाना होगा. इसके लिये भारी मेहनत करनी होगी. लोगों को बताना होगा कि अब उन्हें पूंजीवादी दलों के मायाजाल से बाहर आना होगा. हमें अब सत्ता में पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा और संकल्प लेना होगा कि हम भाकपा की 100 वीं वर्षगांठ तक सत्ता शिखर तक अवश्य पहुंचेंगे. इसके लिये भाकपा को अपने संगठन की चूलें तो कसनी ही होगी तमाम संकीर्णताओं के प्रति वैचारिक विमर्श चलाते हुये वामपंथी एकता को भी मजबूत करना होगा. वामपंथ को मजबूत बना कर ही वाम जनवादी एकता का रास्ता हमवार होता है. बिना वामपंथ को मजबूत किये जनवादी एकता की बात बेमानी साबित होगी. भाकपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य का. गफ्फार अब्बास ने कहा कि वोट हमारा राज तुम्हारा का खेल अब नहीं चलने दिया जायेगा. हम मेहनतकश 100 में नब्बे हैं जिनका हित केवल साम्य्वाद में ही संभव है. समाजवाद और फिर साम्यवाद ही हम सब को सम्रध्द और खुशहाल बना सकता है. गोष्ठी में डी.एस. छोंकर, बाबूसिंह थंबार, चरनसिंह बघेल, जगदीश आर्य, सत्यपाल रावल, द्रुगपाल सिंह, नूर मुहम्मद, आर. डी. आर्य, नैपाल सिंह( बी. डी. सी.), संजय खान, पप्पेंद्र कुमार, राजाराम कुशवाहा, आबिद अहमद एवं महेंद्र सिंह ने भी विचार व्यक्त किये. डा. गिरीशभा
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सोमवार, 28 दिसंबर 2015

जिला पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लाक प्रमुखों के चुनावों चल रही धींगामुश्ती को रोका जाये : भाकपा

लखनऊ- 28 दिसंबर- 2015 : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रि परिषद ने प्रदेश में जिला पंचायत और ब्लाक पंचायत के अध्यक्ष/ प्रमुखों के होने जारहे चुनावों में चल रही धींगामुश्ती, छीन-झपट और बल प्रयोग पर कडी आपत्ति जताते हुये इसे लोकतंत्र के लिये बहुत ही घातक बताया है. भाकपा ने इन कारगुजारियों पर अंकुश लगाने तथा ‘फ्री एंड फेयर’ चुनाव कराये जाने की मांग की है. उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल एवं मुख्य निर्वाचन अधिकारी को लिखे गये पत्र में भाकपा के राज्य साचिव डा. गिरीश ने कहा है कि हाल ही में प्रदेश की जनता द्वारा जिला पंचायत एवं ब्लाक समितियों के सदस्यों का निर्वाचन इस मकसद से किया है कि वे अपने निकायों का ऐसा मुखिया चुनेंगे जो सच्चाई और ईमानदारी के साथ विकास कार्यों को अंजाम देगा. लेकिन इनके निर्वाचित होते ही इनकी खरीद फरोक्त के लिये बोली लगना शुरु होगयी और धन बल बाहुबल और सत्ता बल के जरिये इनको अपने कब्जे में करने की होड लग गयी. वैसे तो प्रदेश की तीनों प्रमुख पार्टियां- सपा, भाजपा और बसपा इस अनैतिक और लोकतंत्र विरोधी कारगुजारी में लिप्त हैं, लेकिन सत्ता में होने के नाते सपा इस काम में औरों से आगे है. सपा प्रवक्ता ने तो बयान दिया है कि अध्यक्ष पद के प्रत्याशी तय करने में उनकी ‘ताकत और दबंगई’ का ध्यान रखा गया है. अपने पत्र में भाकपा राज्य सचिव ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि इन दोनों निकायों में विकास के लिये भारी धनराशि आबंटित होकर आती है. माफियातत्त्व इस धनराशि को हडप कर जाना चाहते हैं. अतएव वे सक्षम राजनैतिक दलों के प्रत्याशी बन कर चुनाव लड रहे हैं. राज नेता और राजनैतिक दल भी इस लूट खसोट के भागीदार बनना चाहते हैं. इससे जनता के धन के नेताओं की झोली में जाने का रास्ता तो खुला ही है लोकतंत्र और पंचायती राज सिस्टम भी गहरे संकट में है. इसको बचाने का प्रयास फौरन किया जाना चाहिये. डा. गिरीश ने दोनों संवैधानिक शख्सियतों से इस मामले में तत्काल ठोस कदम उठाने की मांग की है. डा. गिरीश, राज्य सचिव
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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

गंगा आरती में नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे.

गत दिनों एक हिदी दैनिक में प्रकाशित इतिहासकार श्री रामचंद्र गुहा के एक लेख का उपसंहार कुछ इस प्रकार हुआ है – भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा है कि “बहुलता और सहिष्णुता का माहौल सतत आर्थिक विकास के लिये अनिवार्य है.” ऐसा नहीं लगता कि प्रधानमंत्री मोदी इस बात से सहमत हैं. वह एक साथ आर्थिक आधुनिकतावादी और सांस्कृतिक प्रतिक्रियावादी, दोनों बने रहना चाहते हैं. यह दो घोडौं की सवारी है, जिनमें से एक आगे जा रहा है और दूसरा पीछे. जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की यात्रा का संपूर्ण सार उपर्युक्त शब्दों पूरी तरह अभिव्यक्त है. इस यात्रा के मौके पर मोदी ने जापान के साथ जहाँ कई आर्थिक समझौते किये वहीं अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी जाकर शिंजो अबे के साथ पूरे एक घंटे तक गंगा आरती में भाग लिया. दोनों की तन्मयता देखते ही बनती थी. यहाँ दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा किये गये आर्थिक/ व्यापारिक समझौतों पर कोई टिप्पणी करना व्यर्थ है. आर्थिक नव उदारवाद और कार्पोरेट हितों के लिये समर्पित भारत सरकार के मुखिया से यह सब अपेक्षित ही है. लेकिन दोनों जनतंत्रों के मुखियाओं का गंगा आरती में पूरा का पूरा एक घंटे बिताना और एक अनापेक्षित तन्मयता का प्रदर्शन करना कई सवाल खडे करता है. धर्म और आस्था एक बिल्कुल निजी मामला है. किसी भी उच्च पदासीन व्यक्ति अथवा जनसाधारण को अपने धर्म और उसके प्रति उसकी आस्था को पाबंद नहीं किया जा सकता. लेकिन धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देशों के दो दो राष्ट्राध्यक्ष यदि गंगा आरती जैसे धार्मिक आयोजन में भाग लेंगे तो उनके इस कृत्य की नुक्ताचीनी अवश्य ही होगी. श्री मोदी का लक्ष्य स्पष्ट है. वे आर्थिक नव उदारवाद के एजेंडे पर सरपट दौड्ते हुये भी हिंदुत्व के अपने एजेंडे से हठना नहीं चाहते, यही वजह है वे दादरी जैसी घृणित घटनाओं पर मौन साधे रहे, असहिष्णुता के सवाल पर भी खामोश बने रहे, योग जैसी लोकप्रिय विधा को उन्होने हिंदुत्व की चाशनी में लपेट कर पेश करने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी, आये दिन अपनी पार्टी के नेताओं के विवादास्पद बयानों पर उन्होंने कभी लगाम नहीं लगाई और अब गंगा आरती में भाग लेकर अपनी धर्मपरायण और हिंदूपंथी छवि को पेश करने में कामयाब रहे. आरती के समय जिस तन्मयता का प्रदर्शन उन्होंने किया यदि ऐसी ही तन्मयता उन्होने गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के दौरान दिखाई होती तो बडे खून खराबे को रोका जा सकता था. शीर्षस्थ पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा किसी धार्मिक क्रिया में भाग लेने का प्रभाव तुरत फुरत होता है. आज ही हरिद्वार की गन्गा समिति ने 9 स्थानों पर आरती करने का और उसे भव्यता प्रदान करने का फैसला किया है. कल वारणसी में भी यही कहानी दोहराई जा सकती है. मोदी हो या शिंजे, कोई भी शासक यही चाहता भी है. धार्मिक कट्टरता बडे और लोग उसी में उलझ कर अपने रोजी रोटी के सवालों को तरजीह न दें, शासक वर्ग ऐसा ही चाहता है. इस आरती को भव्यता प्रदान करने, इसमें दोनों नेताओं की भागीदारी की व्यवस्थायें करने में जो भारी राजस्व का अपव्यय हुआ उससे वाराणसी जनपद के समस्त सरकारी अस्पतालों की एक सप्ताह की दवा खरीदी जा सकती थी. सुरक्षा इंतजामों या यात्रा पर हुये व्यय को जोड दिया जाये तो इस धनराशि से एक माह की दवायें वाराणसी के अस्पतालों को दी जा सकती थीं. पर मोदी को तो अपने हिंदुत्त्व के एजेंडे को जिंदा रखने और अपने वोट बैंक को साधे रखने की फिक्र है. इसके लिये वे लोकतांत्रिक परंपराओं को तहस नहस करने से भी नहीं चूक रहे. दास व्यवस्था, सामंती समाज तथा पूंजीवादी व्यवस्था सभी में बहुमत पर अल्पमत का शासन रहता है. समस्त संसाधनों पर अल्पमत समाज का कब्जा रहता है और बहुमत समाज उनके हितों की प्रतिपूर्ति का औजार बन कर रह जाता है. और इस तरह वह घोर अभावों में कष्टमय जीवन बिताने को मजबूर होता है. यह अभाव और कष्ट बहुमत समाज में अल्पमत समाज के प्रति आक्रोश और विद्रोह को जन्म देता है. शासक वर्ग इस आक्रोश और विद्रोह की ज्वाला को शांत करने को तमाम हथकंडे अपनाता है. धर्म और आस्था उनमें सबसे कारगर औजार हैं. मोदी और शिंजे दोनों शासक वर्ग के चतुर सिपहसालार हैं. अतएव एक ओर वे दोनों आर्थिक आधुनिकतावाद का अनुशरण कर रहे हैं, वहीं सांस्कृतिक कट्टरता को भी परवान चढाना चाहते हैं. वाराणसी में गंगा आरती में उनकी भागीदारी इसी उद्देश्य के लिये है. डा. गिरीश.
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सोमवार, 9 नवंबर 2015

असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की राजनीति के खिलाफ आवाज बुलन्द करने का समय

हिटलर के समकालीन प्रसिद्ध जर्मन कवि मार्टिन नीमोलर की यह पंक्तियां आज की भारतीय राजनीति में बहुत साम्यिक हो गई हैं:
पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आये
मैं चुप था, क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था
फिर वे ट्रेड यूनियनिस्टों के लिए आये
मैं चुप था, क्योंकि मैं ट्रेड यूनियनिस्ट नहीं था
फिर वे यहूदियों के लिए आये
मैं चुप था, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
अंत में वे मेरे लिए आये
और मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं था
मोदी के सत्ता में आने के बाद संघ और उसके तमाम पुराने और नए पैदा हो गये सहयोगी संगठन जिस तरह से देश में असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की राजनीति को फैला रहे हैं, वह भारत जैसे प्राचीन समय से बहुलवादी रहे देश, उसकी साझा संस्कृति, उसकी सम्प्रभुता, उसके संविधान सबके लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। इन ताकतों द्वारा सबसे पहले दाभोलकर की हत्या, फिर का. गोविन्द पानसरे की हत्या, फिर कलबुर्गी की हत्या कर दी गईं और सत्ता शिखरों से इनके हत्यारों को शह प्राप्त थी। उसके बाद जिस तरह बकरीद के ठीक बाद गौमांस घर पर रखने का आरोप एक मंदिर के लाउडस्पीकर से लगाकर साजिशन एक निरीह मुस्लिम अखलाक की हत्या दादरी के पास कर दी गई, तो शांतिप्रमियों के लिए एक जबरदस्त झटका रही। ऐसे तत्वों की दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि इन लोगों ने संघ के ही एक पुराने कार्यकर्ता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के सहयोगी रहे कुलकर्णी के भी चेहरे पर कालिख पोत दी।
इस असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की संघी राजनीति के प्रतिरोध की शुरूआत देश में लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर एक आवाज उठाई। उस आवाज के समर्थन में वैज्ञानिक, फिल्मकारों, इतिहासकार, डाक्टर, पर्यावरणविद्, पत्रकारों, पूर्व सैनिक आदि जनता के तमाम और तबके भी उठ खड़े होने लगे और पुरस्कार वापसी में पद्म पुरस्कार भी वापस किये जाने लगे। यह सिलसिला चल ही रहा था कि कल बिहार की जनता भी उठ खड़ी हुई और उसने मोदी-शाह की जोड़ी को जिस प्रकार जवाब दिया, वह भारतीय राजनीति में जन-मानस की बहुलतावादी प्रवृत्ति का द्योतक है।
बिहार चुनावों से पृथकतावादी यह तत्व कोई सबक लेने के बजाय आने वाले वक्त में और आक्रामक होंगे। लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, डाक्टरों, पर्यावरणविदों, पत्रकारों तथा पूर्व सैनिकों आदि तमाम तबकों ने अपनी आवाज को उठाकर अपना दायित्व पूरा कर दिया है, इन आवाजों को बुलन्दियों तक ले जाने का काम कौन करें, यह यक्ष प्रश्न हमारे सामने है।
जिस प्रकार सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल संघ से गलबहियां करते रहे हैं, यह साफ हो चुका है कि वे तो संघ और उसके सहयोगी संगठनों की आवाजों को ही बुलन्द करने में विश्वास करते हैं। दादरी प्रकरण में जिस तरह सपा सरकार ने भाजपा विधायक संगीत सोम को हिंसा के बाद उसी मंदिर पर जाकर हिंसा को और भड़काने की अनुमति दी और शान्तिकामी ताकतों को वहां जाने से रोका, उससे यह बात साफ हो चुकी है।
अस्तु, अंततः वे वामपंथी ही हैं जिन पर लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, डाक्टरों, पर्यावरणविदों, पत्रकारों तथा पूर्व सैनिकों आदि तमाम तबकों द्वारा असहिष्णुता, घृणा और हिंसा की राजनीति के खिलाफ उठाई गई आवाज को बुलन्द करने का दायित्व आता है। आओ साथियों आगे बढ़े और इस गुरूतर दायित्व को पूरा करने के लिए जनता के वृहत तबकों को लामबंद करने का काम शुरू करें।
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शनिवार, 7 नवंबर 2015

सांप्रदायिकता, असहिष्णुता, रूढ़वादिता और हिंसा की राजनीति के खिलाफ अभियान चलायेगी भाकपा

लखनऊ- 7 नवंबर - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य काउंसिल की दो दिवसीय बैठक आज यहाँ संपन्न होगयी. बैठक में आन्दोलन/ अभियान संबंधी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गए हैं. बैठक के निष्कर्षों की जानकारी देते हुये राज्य सचिव डा.गिरीश ने बताया कि राज्य काउंसिल ने केन्द्र सरकार द्वारा आज ही पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद कर में फिर से वृध्दि करने एवं सभी सेवाओं पर सेस लगाने के फैसलों को जनविरोधी बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने इस संबंध में पारित प्रस्ताव में कहा कि मोदी सरकार को आम जनता की कोई फ़िक्र नहीं है. बिहार के चुनाव समाप्त होते ही उसने जनता के ऊपर नए करों का बोझ लाद दिया. इससे महंगाई की मार से पहले से ही हाल- बेहाल जनता और भी बेहाल हो जायेगी. भाकपा ने जनहित में इन वृध्दियों को तत्काल रद्द करने की मांग की है और इस सवाल को जनता के बीच लेजाने का निश्चय किया है. भाकपा ने रूढ़वादिता, असहिष्णुता, सांप्रदायिकता एवं हिंसा की राजनीति के खिलाफ चरणबध्द अभियान छेड़ने का निश्चय किया है. अभियान के पहले चरण के रूप में 24 नवंबर को- "रूढ़वादिता, असहिष्णुता और हिंसा की राजनीति" विषय पर प्रत्येक जनपद में विचार गोष्ठियां आयोजित करने का निर्णय लिया है. दूसरे चरण में डा. भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस (6 दिसंबर ) को अथवा उसकी पूर्व संध्या पर "सदभाव एवं संविधान की रक्षा" के उद्देश्य से गोष्ठियां, सभाएं अथवा अन्य आयोजन किये जायेंगे. तीसरे चरण में इन मुद्दों पर क्षेत्रीय रैलियाँ आयोजित की जायेंगी. हर कार्यक्रम में समाज के प्रबुध्द और सहिष्णु तबकों एवं शख्सियतों को शामिल किया जायेगा. इन अभियानों की प्रासंगिकता को जतलाते हुये राज्य काउंसिल द्वारा पारित रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्र में मोदी सरकार के पदारूढ़ होने के बाद से आर.एस.एस. और दूसरी हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक शक्तियां और अधिक हमलावर होगयीं हैं. वे पूरी तरह निरंकुश होकर सेक्युलर, सहिष्णु एवं उदार शक्तियों के खिलाफ जहर उगल रही हैं और रूढ़वादिता के खिलाफ संघर्ष करने वाले व्यक्तियों की हत्यायें कर रही हैं. दादरी में अखलाक, कन्नड़ लेखक कलबुर्गी, कम्युनिस्ट नेता का.गोविन्द पानसरे तथा नरेन्द्र दाभोलकर की हत्यायें संघ द्वारा पोषित और केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित घ्रणित विचारों की देन हैं. मुस्लिम अल्पसंख्यक इनके खास निशाने पर है. अपनी इन निर्लज्ज करतूतों को वे राष्ट्रवाद का चोला पहना रही हैं. प्रधानमन्त्री ने इन हरकतों पर चुप्पी साध रखी है और उनके मंत्रिमंडल सहयोगी व प्रमुख भाजपाई निरंतर विषवमन कर समाज को बाँट रहे हैं और हिंसा की जघन्य वारदातों को वे स्वाभाविक आक्रोश की देन बता कर अपने पापों पर पर्दा डाल रहे हैं. देश में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और असहिष्णुता के खिलाफ साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्मी हस्तियों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और अन्य प्रबुध्द जनों ने अपनी आवाज उठायी है और उन्हें मिले शानदार पुरुस्कारों को वापस किया है. यह क्रम लगातार जारी है. भाकपा उनके इस संघर्ष में पूरी शिद्दत से उनके साथ है. अब संघ गिरोह ने कम्युनिस्टों और वामपंथियों के खिलाफ अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया है जो उनकी खीझ और बौखलाहट का परिचायक है. हम इन फासिस्ट कारगुजारियों के खिलाफ सदैव संघर्षरत रहे हैं और आगे भी रहेंगे, भाकपा ने संकल्प व्यक्त किया है. भाकपा ने इस बैठक में जिला एवं क्षेत्र पंचायत चुनावों कि समीक्षा की . भाकपा के पांच सदस्य और सात समर्थित प्रत्याशी जिला पंचायत में विजयी हुए हैं जबकि पिछली बार केवल एक प्रत्याशी ही जीता था. लगभग पचास बी. डी. सी. सदस्य भी विजयी हुये हैं. जाती, धन और बाहुबल के इस दौर में भाकपा प्रत्याशी बेहद कम संसाधनों और शुचिता के साथ चुनाव लड़े थे. निष्कर्ष है कि भाकपा अपनी चुनावी राजनीति को पुनः संगठित कर रही है. अब ग्राम प्रधान के चुनाव भी अधिकाधिक संख्या में लड़ने का निर्णय लिया गया है. डा. गिरीश, राज्य सचिव
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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

दशहरा, दुर्गा पूजा और मोहर्रम जैसे त्योहारों पर कडी चौकसी बरते उत्तर प्रदेश सरकार: भाकपा

लखनऊ- 16-10- 15. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने राज्य सरकार को आगाह किया है कि वह पूर्व के अनुभवों, प्रदेश के विषाक्त वातावरण और दशहरा, दुर्गा पूजा तथा मौहर्रम जैसे त्योहारों को देखते हुये प्रदेश को किसी अनहोनी से बचाने को कडे कदम उठाये. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गत कई वर्षों से यह देखने में आरहा कि दशहरा, दुर्गा पूजा और मौहर्रम जैसे त्योहारों से पहले सांप्रदायिक और दूसरे अवांछनीय तत्व धार्मिक कर्मकांडों की आड में दंगा भडकाने का हर संभव प्रयास करते हैं. गत वर्ष भी इस दर्म्यान कई शहर और जिले दंगों की चपेट में आगये थे. भाकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा कि इस बार दादरी, वाराणसी की घ्रणित घट्नायें और करहल, गोंडा सहित प्रदेश में सौ से अधिक दंगे होचुके हैं. त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों और बिहार में चल रहे विधान सभा चुनावों में वोटों को विभाजित करके लाभ उठाने की कोशिशें भी सांप्रदायिक शक्तियां लगातार कर रही हैं. अतएव राज्य सरकार के स्तर पर कडी चौकसी, निगरानी और कठोरतम कार्यवाही की जरुरत है. भाकपा को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने दल के स्वार्थो से ऊपर उठ कर प्रदेश में अमन, शांति और सद्भाव की रक्षा के लिये कठोर से कठोर प्रशासनिक कदम जरूर उठायेंगे. भाकपा ने राज्य सरकार को सुझाव दिये हैं कि वह सुनिश्चित करे कि किसी भी मिली जुली आबादी से किसी भी समुदाय का धार्मिक जुलूस न निकाला जाये, डी.जे. तथा अन्य वाद्य यंत्रों अथवा हथियारों का प्रदर्शन हर कीमत पर रोका जाये, प्रतिमाओं अथवा ताज़ियों का विसर्जन/ दफन अनुमति के आधार पर निर्धारित स्थानों पर ही किया जाये, खुफिया एजेंसियों को सक्रिय किया जाये तथा मिली जुली आबादियों के धर्मनिरपेक्ष लोगों को लेकर बनी शांति कमेटियों को सक्रिय किया जाये. जिलधिकारियों, कप्तानों, सैक्टर मजिस्ट्रेटों और थानाध्यक्षों को स्पष्ट निर्देश दे दिये जायें कि उनके क्षेत्रों में हुयी घटनाओं के लिये वे स्वयं जिम्मेदार ठहराये जायेंगे और कठोर कार्यवाही के पात्र होंगे. डा. गिरीश
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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को हठाने के फैसले का भाकपा स्वागत करती है

लखनऊ- 15. 10. 15—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री अनिल यादव की नियुक्ति को रद्द करने के निर्णय का स्वागत किया है. भाकपा ने उत्तर प्रदेश सरकार से श्री यादव की अवैध नियुक्ति की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करने का आग्रह किया है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि राज्य सरकार ने लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष जैसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद पर सारे नियम, कानून और परंपराओं को ताक पर रख कर श्री अनिल यादव को नियुक्त किया था. श्री अनिल यादव ने भी अपनी नियोक्ता उत्तर प्रदेश सरकार के ही नक्शे कदम पर चलते हुये और सरकार में बैठे लोगों के राजनैतिक और आर्थिक हितों को साधते हुये हर स्तर की नियुक्तियों में हर स्तर की धांधलेबाजी की थी. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में शर्मनाक तरीके से होरही इस घपलेबाजी से अभ्यर्थी ही नहीं समाज का बडा भाग परेशान था. छात्र- नौजवानों ने तमाम आंदोलन किये और राज्य सरकार मौन साधे रही. मजबूरन अभ्यर्थियों और कुछ अन्य को अदालत का दरवाजा खटखटाना पडा. कल उच्च न्यायालय ने अपना दो टूक निर्णय सुनाते हुये राज्य सरकार को भी कटघरे में खडा किया है. यह पहली नियुक्ति नहीं है जिसको लेकर राज्य सरकार बेनकाब हुयी हो. कुछ ही दिन पूर्व उच्चतर शिक्षा चयन आयोग और माध्यमिक शिक्षा चयन आयोग के अध्यक्षों और उच्चतर शिक्षा आयोग के तीन सदस्यों को भी उनकी अवैध नियुक्तियों के कारण उच्च न्यायालय के फैसलों के तहत हठाया जाचुका है. माध्यमिक शिक्षा चयन आयोग के तीन सदस्यों के कार्य पर भी न्यायालय ने रोक लगा रखी है. लोकपाल की नियुक्ति के सवाल पर भी राज्य सरकार अदालत के फैसले से बेनकाव होचुकी है. इन सभी के द्वारा की गयीं नियुक्तियों पर भी सैकडों सवाल खडे होरहे हैं. लेकिन राज्य सरकार पूरी तरह खामोश है. इससे राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश उमडना स्वाभाविक है. उत्तर प्रदेश में हर तरह की नियुक्तियों में हर स्तर पर धांधली चल रही है अतएव अक्सरकर नियुक्तियों को न्यायालय में चुनौती दे दी जाती है और नियुक्त अनियुक्त बेरोजगार हाथ मलते रह जाते हैं. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि एक के बाद एक अवैध नियुक्ति और उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें अवैध करार दिये जाने के बावजूद राज्य सरकार ने न तो अपनी गलतियों को स्वीकारा है न ही इन धांधलियों की नैतिक जिम्मेदारी ली है. राज्य सरकार के मुखिया को इस सब की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिये और तदनुसार कदम उठाना चाहिये. डा. गिरीश,
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सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

महंगाई और दादरी प्रकरण के खिलाफ भाकपा ने राज्य भर में प्रदर्शन किये

लखनऊ- 5 अक्तूबर - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्देशानुसार आज समूचे उत्तर प्रदेश में आसमान लांघ रही महंगाई, भयावह सूखा, दादरी का जघन्य हत्याकांड, भाकपा कार्यकर्ताओं पर जगह जगह लगाये जारहे फर्जी मुकदमे, प्रदेश में सभी को एक समान शिक्षा की व्यवस्था तथा अनुसूचित जातियों की जमीनों को हडपने के लिये राज्य सरकार द्वारा कानून में बदलाव किये जाने जैसे सवालों पर जिला मुख्यालयों पर धरने प्रदर्शन किये गये. कई जिलों में इन कार्यक्रमों में भाकपा के साथ अन्य वामपंथी दलों- क्रमशः माकपा, भाकपा- माले आदि ने भी शिरकत की. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि केन्द्र की एन डी ए सरकार द्वारा चलाई जारही नीतियों के चलते महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. दाल, सब्जी, तेल सहित जरूरी चीजों के आसमान छूरहे मूल्यों ने गरीब और आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है. इसका प्रमुख कारण केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियाँ हैं. उदाहरण के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बेहद कम होने के बावजूद सरकार ने पटल और डीजल आदि कि कीमतें काफी ऊंची कर रखी हैं. राज्य सरकार ने भी पेट्रोल डीजल पर टैक्स बढ़ा कर, बिजली की कीमतें बढ़ा कर तथा राशन प्रणाली को पंगु करके महंगाई की धार को और भी तीखा बना दिया है. उन्होंने कहाकि आज समूचे उत्तर और मध्य भारत में भयावह रूप से सूखा पड़ा हुआ है लेकिन न तो इन राज्यों को सूखा पीड़ित घोषित किया गया है और न सूखे से निपटने को कोई भी कदम केन्द्र और राज्य सरकार ने उठाये हैं. मौसम की मार से गत रबी और खरीफ की फसलों की हानि की एबज में किसानों को राहत दी नहीं गयी है. भाकपा इस बात पर गहरा रोष प्रकट करती है कि आरएसएस/ भाजपा की यह सरकार हर मोर्चे पर असफल होजाने के बाद लोगों को आपस में बांटने के लिए खुलकर सांप्रदायिकता फैला रही है, यहाँ तक निर्दोष गरीबों का खून बहा रही है. दादरी के बिसाहडा की घटना की जितनी निंदा की जाये कम है. इस घटना की आड़ में भाजपा और आरएसएस तो आग लगाने पर आमादा हैं ही राज्य सरकार भी राजनीति करने से बाज नहीं आरही. सच तो यह है कि वहां राज्य सरकार भाजपा को अपना खेल खेलने के लिये प्लेटफार्म मुहैया करा रही है और शांति चाहने वाले दलों की राह में रोड़े अटका रही है. वाराणसी, गोंडा और अन्य जिलों में भी दंगे कराने की हर कोशिश की जारही है. भाकपा माननीय उच्च न्यायालय के उस निर्णय जिसमें सभी को समान शिक्षा देने का राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है का पूर्ण समर्थन करती है. साथ ही अनुसूचित जाति के किसानों की जमीनों को हथियाने की गरज से राज्य सरकार द्वारा कानून में परिवर्तन किये जाने की साजिश की भर्त्सना करती है. भाकपा ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पूरी तरह असफल है और राज्य में उसकी पुलिस दमन और शोषण का पर्याय बन चुकी है. चूंकि भाकपा कार्यकर्ता उसकी करतूतों का जगह जगह विरोध कर रहे हैं तो बौखलाई पुलिस उन पर फर्जी मुकदमे लगा कर दमन चक्र चला रही है. हाल ही में अमरोहा में पुलिस ने भाकपा राज्य सचिव मंडल के सदस्य का. अजय सिंह, सागर सिंह एवं नरेश चन्द्र को संगीन धाराओं में बंद कर दिया और बिजनौर के जिला सचिव का. रामनिवास जोशी पर गैंगस्टर लगा दिया. लखनऊ में भाकपा के जिला सचिव मो. खालिक के नेतृत्व में उप्जिलाधिकरिनको ज्ञापन सौंपा गया तथा वामदलों के साथ मिल कर पटेल प्रतिमा पर धरना दिया गया. समाचार प्रेषित किये जाने तक आज़मगद, मेरठ, मुरादाबाद, हाथरस, आगरा, बाँदा सुल्तानपुर, जौनपुर, अलीगढ, गाज़ियाबाद गोरखपुर आदि लगभग ४० जिलों से धरने, प्रदर्शन और ज्ञापन देने की खबरें राज्य मुख्यालय को प्राप्त होचुकी हैं. डा.गिरीश
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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

उत्तर प्रदेश को दंगों की आग में झौंकने की संघ परिवार की साजिश. दादरी वारणसी और गोंडा की घट्नायें इसी उद्देश्य से.. भाकपा

लखनऊ- 1 अक्तूबर, 2015- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने भारतीय जनता पार्टी और आर.एस.एस. पर आरोप लगाया है कि वे अपने दीर्घकालीन और तात्कालिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिये उत्तर प्रदेश और समूचे देश को सांप्रदयिक्ता और सांप्रदायिक दंगों की आग में झौंकने की साजिश में जुटे हैं. क्षुद्र राजनैतिक उद्देश्यों की खातिर की जारही हिंसा, विभाजन की इन कार्यवाहियों की भाकपा ने कड़े शब्दों में निंदा की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के किसी न किसी हिस्से में अलग अलग बहानों से भाजपा और संघ परिवार ने सांप्रदायिक विद्वेष फैला कर प्रदेश को दंगों की आग में झौंकने का काम किया है. सबसे ताजा घटना दिल्ली से सटे जनपद- गौतम बुध्द नगर (नोएडा ) की है जहां औद्योगिक क्षेत्र- दादरी के थाना- जारचा के गांव- विसाहड़ा में सोमवार की रात्रि लगभग एक हजार लोगों की उन्मादी भीड़ ने गांव के एक मुस्लिम परिवार के घर पर धाबा बोल दिया और घर के मुखिया इखलाक को पीट- पीट कर मार डाला तथा उसके बेटे दानिश को भी बुरी तरह पीटा जो अस्पताल में जीवन के लिये संघर्ष कर रहा है. उपद्रवियों ने घर की महिलाओं को भी नहीं बख्शा और घर का सारा सामान भी नष्ट- भ्रष्ट कर दिया. घटना को अंजाम देने के लिये इन उपद्रवियों ने एक मंदिर पर लगे माइक से सोची समझी साजिश के तहत यह प्रसारित किया कि इखलाक ने गोकशी की है और वहां पड़ा मांस का टुकड़ा गाय का है. यह संघ परिवार द्वारा समाज में घोले जारहे जहर का ही परिणाम है कि इस बे सिर पैर की अफवाह पर हजार एक लोग एकत्रित होगये और वर्षों पुराने अपने पडौसी के खून के प्यासे बन गये. भीड़ हिंसा करती रही और कोई भी पडौसी वचाव के लिये नहीं आया. पुलिस भी सूचना के काफी देर बाद पहुंची. पुलिस और प्रशासन की ढिलाई का ही परिणाम है कि पुलिस द्वारा पकड़े लोगों को छुडाने को भीड़ ने पुलिस पर हमला तक बोला. इतना ही नहीं अगले दिन आसपास के गांवों में अफ्वाहें फैला कर तनाव पैदा किया गया और विसाहड़ा से लगभग 5 कि.मी. दूरी पर स्थित गांव- ऊंचा अमीरपुर में कथित गोहत्या के दोषियों को फांसी पर लट्काने की मांग के बहाने बड़े पैमाने पर तोड़्फोड़ की गयी. इन घटनाओं से संपूर्ण क्षेत्र में तनाव व्याप्त है और विसाहड़ा सहित तमाम गांवों के अल्पसंख्यक पलायन कर रहे हैं. अभी पिछले ही सप्ताह प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में एक साधु गिरोह ने जो कि संघ परिवार का ही आउट्फिट है गंगा में गणेश प्रतिमायें विसर्जित करने के लिये हंगामा खड़ा कर दिया, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार गंगा में प्रतिमायें विसर्जित नहीं की जासकतीं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिये संघ परिवार गंगा को पवित्र बनाने के नाम पर तमाम नाटक नौटंकी करता रहता है. पुलिस प्रशासन यहाँ भी दो दिनों तक नाटक करता रहा और कठोर कार्यवाही को अंजाम नहीं दिया. अब साधुओं की पिटाई के नाम पर भाजपा और संघ परिवार वहां तनाव बढाने को हर हथकंडा अपना रहे हैं. ठीक इसी तर्ज पर गत सप्ताह गोंडा शहर में मूर्ति विसर्जन को जारहे जलूस में पाबंदी के बावजूद डीजे लगाया गया जिसे पुलिस ने नहीं रोका. जब ये जुलूस अल्पसंख्यक बहुल आबादी में पहुंचा तो वहां तनाव व्याप्त होगया. मौके का लाभ उठा कर उपद्रवियों ने आगजनी और लूट्पाट की. समूचे उत्तर प्रदेश की इन दिनों ऐसी ही तस्वीर है जब त्योहारों के कर्मकाण्डों को बहाना बना कर दंगे फैलाने की साजिश रची जारही है. इसका तात्कालिक उद्देश्य उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनावों और बिहार विधान सभा के चुनावों में लाभ उठाना है. धर्मपरायणता और सांप्रदायिकता क्योंकि शासक वर्ग और उसकी सरकारों के जनविरोधी कार्यों को जनता में स्वीकार्य बनाती है, अतएव केंद्र और राज्य सरकार का रवैय्या दंगे फसाद रोकने का नहीं; उनके होजाने के बाद राजनैतिक रोटियां सैंकने का है. भाजपा जहां हर जगह खुल कर दंगाइयों के साथ खड़ी है वहीं मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने अपने को दरोगा की तरह धमकी देने और मुआबजा जारी करने तक सीमित कर रखा है. ऐसे में भाकपा समाज के सभी धर्मनिरपेक्षजनों से अपील करती है कि वे उत्तर प्रदेश की शांति और सहिष्णुता को बचाने के लिये आगे आयें. भाकपा राज्य सरकार से भी मांग करती है कि वह सांप्रदायिकता से निपटने को द्रढ इच्छाशक्ति का परिचय दे और तदनुसार अपनी पुलिस और प्रशासन की चूलें कसे. डा. गिरीश
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जनवादी क्रांतियों का इतिहास और उनसे सबक

सामाजिक क्रांति समाज के ढांचे में मूलभूत बदलाव या परिवर्तन होता है। कार्ल मार्क्स ने क्रांति की समझ को वैज्ञानिक आधार पर खड़ा किया। उन्होंने अपने युग के काल्पनिक (यूटोपियन) सामाजिवादियों का विरोध करते हुए वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांत का विकास किया। मार्क्स के अनुसार क्रांतिकारियों को समाज में सक्रिय वस्तुगत नियमों का वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहिए। तभी हम समाजवाद और कम्युनिज्म की ओर बढ़ सकते हैं।
साम्राज्यवाद के युग में जनवादी क्रांति
लेनिन ने पूंजीवाद की साम्राज्यवादी मंजिल का सबसे पहले अध्ययन किया। उन्होंने क्रांति-संबंधी मार्क्स के सिद्धांत में कई नई बातें जोड़ीं। साम्राज्यवाद पूंजीवाद की अगली और उच्चतर मंजिल होती है। इसमें कुछ मुट्ठीभर सबसे बड़े पूंजीपति (इजारेदार) बाकी सारे समाज का शोषण करते हैं। बड़े पूंजीपति न सिर्फ मेहनतकशों, मजदूरों, किसानों, मध्यम तबकों, बुद्धिजीवियों का बल्कि गैर-इजारेदार पूंजीपतियों का भी शोषण करते हैं, उनके विकास में बाधा पहुंचाते हैं। इन गैर-इजारेदार पूंजीपतियों छोटे, मझोले और निम्न पूंजीपति शामिल होते हैं।
लेनिन ने ‘जनवादी क्रांति’ का सिद्धांत विकसित किया। समाजवादी क्रांति एक मंजिल या एक छलांग में नहीं होगी।
समाजवाद की ओर बढ़ने के लिए बीच की एक या कई मंजिलों से गुजरना होगा। इन्हें ही लेनिन ने ‘पूंजीवादी जनवादी क्रांति’ या जनवादी क्रांति कहा। इसके लिए सामंतों, बड़े पूंजीपतियों और साम्राज्यवाद के विरोध में एक व्यापक जनवादी मोर्चे की जरूरत है।
पंूजीवाद की इस मंजिल को ‘साम्राज्यवाद’ कहा जाता है। अमरीका जैसे देश सारी दुनिया में बड़ी पूंजी का प्रभुत्व कायम करते हैं। अमरीका-विरोधी मोर्चे में छोटे पूंजीपति और छोटे पूंजीवादी देश भी पिसते हैं।
आज के युग में क्रांति
जैसा कि हमने कहा, सारी जनता बड़े-बड़े इजारेदारों और साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष कर रही है। इस संघर्ष में न सिर्फ समाजवाद को मानने वाले लोग शामिल हैं बल्कि वे भी जो समाजवाद से सहमत नहीं हैं। अमरीका का विरोध करने वालों में न सिर्फ मजदूर और किसान शामिल हैं बल्कि मध्यम तबके, बुद्धिजीवी, छोटे और मझोले मालिक (पूंजीपति) भी उसमें हिस्सा ले रहे हैं।
इसलिए समाजवाद की ओर जाने का रास्ता कई मंजिलों से होकर गुजरता है। इस रास्ते में आजादी हासिल करनी होती है, बड़ी विशाल कम्पनियों पर रोक लगानी होती है, बड़ी वित्त पूंजी, विदेशी पूंजी की घुसपैठ और साम्राज्यवादी देशों की कार्रवाईयों पर अंकुश लगाना होता है।
इन बाधाओं को दूर करते हुए देश और समाज के ज्यादा से ज्यादा तबकों और वर्गों को एक मंच पर लाना होता है। इनमें से कई जनवादी होते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वामपंथी और समाजवादी ही हों।
इसे ही जनवादी एकता (मोर्चा) कहते हैं। ऐसी एकता जो काम पूरे करती है उसे जनवादी परिवर्तन कहते हैं।
जनवादी क्रांतियों का इतिहास
सबसे पहले सफल रूसी क्रांति (1917) में हुई जिसके नेता लेनिन थे। इसमें प्रमुख शक्तियां मजदूर और किसान थे। उन्होंने सोवियतें बनाई। इसलिए उस देश को सोवियत संघ कहा गया।
रूसी क्रांति के तीन मुख्य नारे थे - शंाति, रोटी और जमीन। ये तीनों जनवादी नारे हैं। शांति का मतलब साम्राज्यवादी युद्ध (1914-18) बंद करो। शांति और निःशस्त्रीकरण का नारा सबसे पहली बार दिया गया। यह समूची मानवता के लिए था, केवल कुछ मुट्ठी भर साम्राज्यवादियों को छोड़।
दूसरा नारा था सबकों का रोटी। यह सभी मेहनतकशों, मध्यमवर्गों और कामकाजी लोगों तथा किसानों के लिए था - वास्तव में सभी मानवों के लिए था।
तीसरा था जमीन का नारा। यह मुख्य रूप से किसानों के लिए था। लेकिन किसानों में भी भूमिहीनों और गरीब किसानों के लिए था। यह मुख्यतः बड़े सामंतों के खिलाफ और जमीन के बंटवारे (भूमि सुधारों) के लिए था।
इन तीनों को हम जनवादी कदमों का उद्देश्य कहते हैं। वे जनतांत्रिक बदलाव लाते हैं, समाजवाद के लिए आधार तैयार करते हैं लेकिन अभी समाजवाद नहीं हैं।
अन्य देशों में जनवादी आंदोलन
रूसी क्रांति ने दूसरे देशों में जनता का आंदोलन तेज कर दिया। कहीं आजादी की मांग उठने लगी, कहीं जनतंत्र की, तो कही समाजवाद की। भारत, चीन, वियतनाम, एशिया, अफ्रीका में आजादी की लड़ाई तेज हो गई। भारत आजाद हो गया। वियतनाम तथा चीन में क्रांतियां हो गईं। आगे चलकर पूर्वी यूरोप, क्यूबा और लैटिन अमरीका में भी जनवादी एवं समाजवादी क्रांतियां हो गईं।
पूर्वी योरप (यूरोप)
9 मई 1945 को हिटलर के जर्मन फासिस्टों ने आत्म-समर्पण कर दिया। हिटलर ने उससे पहले ही आत्महत्या कर ली। रूस की लाल सेना की मदद से पूर्वी योरप के देश आजाद हो गए - पोलैंड, बल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया, आदि। इन देशों में जनता की मिली-जुली जनवादी सरकारें बनीं (1944-45 में)।
वियतनाम
उसने पहले फ्रांसीसियों, फिर जापानियों, फिर फ्रांसीसियों और अमरीका के खिलाफ आाजदी की लड़ाई लड़ी। वियतनाम सबसे पहले 2 सितंबर 1945 को आजाद हुआ। वियतनाम ने पहले देश की आजादी की लड़ाई लड़ी, फिर उसने जनवादी क्रांति का काम शुरू किया। लम्बे संघर्षों के बाद 1975 में पूरी तरह आजाद हुआ। लाओस और कम्पूचिया (कम्बोडिया) भी आजाद हुए। वियतनाम की क्रांति में कम्युनिस्टों के साथ बौद्ध धर्म वाले तथा छोटे मझोले मालिक भी शामिल हैं।
चीन
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में किसानों, और मालिकों और मजदूरों की लम्बी लड़ाई चली। जनतांत्रिक अधिकार, पार्टी बनाने के अधिकार तथा संसदीय प्रणाली न होने के कारण चीन में ज्यादातर हथियारबंद संघर्ष हुआ।
चीनी क्रांति की मांग सामंतवाद समाप्त करने, किसानों के बीच जमीन का बंटवारा करने और बड़े तथा विदेशी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने संबंधित था। इसलिए चीनी क्रांति को वहां की पार्टी ने जनवादी क्रांति बतलाया है। आज भी चीन में अर्थव्यवस्था ‘समाजवाद की ओर’ जा रही है, अभी समाजवादी नहीं है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की योजना के अनुसार चीन 21वीं सदी के मध्य तक ‘बाजार समाजवाद’ की ‘प्राथमिक मंजिल’ में रहेगा।
चीन में 1 अक्टूबर 1949 को क्रांति सम्पन्न हुई। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चार वर्गों के संयुक्त मोर्चा ने सत्ता संभाली। सरकार ने पहले जनवादी मंजिल के काम पूरा करने का फैसला लिया।
आज चीन उत्पादन बढ़ाने की शक्तियों, उसकी टेक्नालोजी के विकास तथा विकास दर बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है।
क्यूबा
क्यूबा में 21 जुलाई 1959 को क्रांतिकारियों ने सत्ता अपने हाथों में ले ली। वे आरम्भ में कम्युनिस्ट नहीं थे। उन्होंने कदम-ब-कदम जनतांत्रिक कदम उठाए और देश की अर्थव्यवस्था विकसित की। आज क्यूबा मध्यम दर्जे का देश है जहां आम जनता को कई प्रकार की सुविधाएं और अधिकार मिले हुए हैं।
भारत
अंग्रेजों के खिलाफ लम्बे साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष के बाद भारत ने 1947 में आजादी हासिल की। यह भी जनवादी क्रांति का ही एक रूप है, उसकी ही एक मंजिल। इसके लिए व्यापक शक्तियों ने मिल-जुल कर संघर्ष किया।
अब जनवादी क्रांति की अगली मंजिलें तय करने के लिए जनतांत्रिक शक्तियों को मिल-जुल कर मुख्य विरोधियों के संघर्ष करना होगा, जैसे साम्राज्यवाद, बड़े इजारेदार, वित्त पूंती।
इस संघर्ष में संसदीय प्रणाली की प्रमुख भूमिका होगी और जनसंघर्ष महत्वपूर्ण होाग।
अन्य देश
आज के समय में लैटिन अमरीका के दर्जन-भर देशों में महत्वपूर्ण जनवादी परिवर्तन हो रहे हैं। ब्राजील, बेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलीविया तथा अन्य देशों में संसदीय प्रणाली के जरिए तथा विशाल जन समर्थन की सहायता से वाम एवं जनवादी ताकतें चुनाव जीतकर सरकारें बना रही हैं। वे लगातार पिछले लगभग दो दशकों (20 वर्षों) से जीतती आ रही है।
यह नई किस्म की जनवादी क्रांति है जो संसदीय चुनावी मार्ग से सफल हो रही हैं। उनका समर्थन फौज कर रही है। इनमें व्यापक ताकतें शामिल हैं जिनमें छोटे मालिकों और उत्पादकों तथा साम्राज्यवाद-विरोधी पूंजीपति वर्ग के हिस्से भी शामिल हैं
लैटिन अमरीका के परिवर्तन पिछली सभी क्रांतियों से अलग हैं। आज जनता के हक में बड़े पंूजीवादी हितों के खिलाफ तथा गरीबी कम करने के लिए ये जनवादी सरकारें संघर्षरत हैं।
इनके अलावा नेपाल, योरप, दक्षिण अफ्रीका, इत्यादि में भी परिवर्तन चल रहे हैं।
आज की और भविष्य की क्रांतियां
आज हमारे देश और दुनिया भर में जनतांत्रिक अधिकारों और प्रजातांत्रिक तरीकों का महत्व बढ़ गया है। आज विश्व भर में सामाजिक परिवर्तन में चुनाव प्रणाली का महत्व पहले से ज्यादा हो गया है, जैसा कि लैटिन अमरीका की घटनाएं साबित करती हैं। चुनावों, वोट डालने और प्रेस-मीडिया के तथा अन्य अधिकार हमने लम्बे संघर्षों के जरिए जीते हैं। उनका प्रयोग करके वाम एवं प्रगतिशील शक्तियां सत्ता में आ सकती हैं और जनता के हक में कुछ करके दिख सकती हैं, यह अमल में साबित हो चुका है।
क्रांति कोई भविष्य में चीज नहीं रह गई है, वह इस समय जारी है। कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक-सामाजिक कदम उठाना भी जनतांत्रिक क्रांति का ही अंग है। आज हम जनतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करके जनवादी क्रांति पूरा कर सकते हैं। पुराने ढंग की क्रांतियों का युग चला गया।
आज नए किस्म की व्यापक जनतंत्रिक परिवर्तनों का युग है जो प्रजातांत्रिक तरीकों का प्रयोग कर रहे हैं।
- अनिल राजिमवाले
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