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सोमवार, 6 फ़रवरी 2017
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017
भारतीय कम्युनिस्ट
पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र
- विधान सभा चुनाव
2017
देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के
गठन के लिए 17वीं विधान सभा का चुनाव हो रहा है। प्रदेश की जनता इन
चुनावों को स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक परिवर्तनकारी,
महत्वपूर्ण एवं
निर्णायक चुनाव साबित कर सकती है। इसके लिए जरूरी है कि आम मतदाता -
·
जाति-पांति, धार्मिक एवं क्षेत्रीय संकीर्णताओं से बाहर निकल कर अपने
बदतर हालातों पर गौर करें;
·
चुनावों के दौरान अपनाये जाने वाले भ्रष्ट तौर-तरीकों से प्रभावित होने से
स्वयं को बचायें और इस बात को दिल-दिमाग में बैठा लें कि तात्कालिक संतोष के लिए
उसे पांच सालों की कुर्बानी नहीं देनी है; और
·
अपने वर्गीय हितों तथा प्रदेश एवं देश के हितों को ध्यान में रखकर चुनावों में
अपने कीमती मताधिकार का प्रयोग करना ही सच्ची देशभक्ति है।
प्रदेश की आम जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित करना जरूरी है कि
आजादी के समय सरकार के पास संसाधन काफी सीमित थे तथा देश ने विकास के ख्वाब देखना
भी शुरू नहीं किया था। लेकिन उस वक्त आजादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम में अपना सब
कुछ न्यौछावर करने वाले हमारे पूर्वजों की पीढ़ी राजनीति में मौजूद थी। राजनीति में
चोर-उचक्कों, माफियाओं और भ्रष्टों की दखलंदाजी नहीं थी। संसाधन विहीनता
के उस दौर में हमने सार्वजनिक क्षेत्र को बुलंदियों तक पहुंचाने के रास्ते से
स्वतंत्र आर्थिक विकास के रास्ते को चुना था। और हम उस रास्ते पर चले भी। उस दौर
में हमने बड़े-बड़े बांध बनाये, नए कल-कारखाने लगाये, हरित एवं श्वेत क्रान्तियां
की और देश जो विकास कर रहा था, उसका फायदा शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक की
जनता को पहुंचना शुरू हो गया था।
परन्तु आज हालात बिलकुल उसके
उलट हैं। आज जब प्रदेश की जनता 17वीं विधान सभा के लिए वोट डालने की दहलीज पर खड़ी है, अधिसंख्यक जनता आज
भी गरीब है। एक गरीब आदमी तो अपनी पूरी कमाई पेट पालने में ही खर्च कर देता है और
उसके पास तो बचाने के लिए कुछ होता ही नहीं है फिर भी वह जो कुछ खर्च करता है, उसका 15-20 प्रतिशत उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों को विभिन्न टैक्सों
के रूप में देना पड़ता है। जैसे-जैसे यह कमाई बढ़ती है, वैसे-वैसे टैक्सों का बोझ
बढ़ता चला जाता है। मध्यमवर्गीय कर्मचारियों पर तो टैक्सों का बोझ 30-35 प्रतिशत से भी ज्यादा है। नए-नए टैक्सों को जनता पर लादा जाता रहा परन्तु जब
भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसी सुविधाओं के सवाल उठते हैं तो पूंजीवादी
दलों के नेता सरकारों के पास संसाधन न होने का रोना रोने लगते है।
तब और अब में जो अंतर है वह
यह है कि आजादी के बाद के दौर में अपना सब कुछ देश की आजादी के लिए न्यौछावर करने
वाले नेता राजनीति में मौजूद थे तो आज राजनीति को कमाई का जरिया बनाने वाले लोग
सत्तासीन हो रहे हैं।
सवाल हैं -
·
लाखों-करोड़ों रूपये चुनाव में खर्च वाले करने लोग जब चुनाव जीत कर सरकार बनाते
हैं, तो क्या उनसे प्रदेश के विकास की आशा की जा सकती है? ऐसे लोग सरकार में आने के
बाद चुनाव में लगाये गये धन की न केवल वसूली में जुट जाते हैं बल्कि कई पुश्तों की
व्यवस्था भी करने में लगे रहते हैं।
·
भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्तासीन राजनीतिज्ञ बड़ी-बड़ी बातें जुमलों के रूप में
उछालते रहते हैं। लेकिन वही पूंजीवादी दल के नेता जब चुनावों के दौरान हवाई-जहाजों
और हेलीकाप्टरों से चुनाव प्रचार करने जाते हैं, तो उस पर खर्च होने वाला
पैसा किस मेहनत की कमाई से आता, बता नहीं सकते?
आम जनता को इन चुनावों के
वक्त अपनी आत्मा को टटोलना चाहिए।
प्रदेश के सबसे बड़े राज्य
में 17वीं विधान सभा के चुनावों के वक्त जरूरत इस बात की है कि प्रदेश की जनता
चुनावों में यह सुनिश्चित करने के लिए वोट देने जाये कि -
·
उसे प्रदेश के हर मर्द, औरत और बच्चे को भोजन मुहैया कराने के लिए वोट देना
है।
·
उसे प्रदेश के हर बच्चे को शिक्षित बनाने के लिए वोट देना है।
·
उसे प्रदेश के हर नागरिक को इलाज मुहैया कराने के लिए वोट देना है।
·
उसे प्रदेश के हर नागरिक को आवास मुहैया कराने के लिए वोट देना है।
·
उसे प्रदेश के हर नागरिक को रोजगार मुहैया कराने के लिए वोट देना है। और
·
उसे प्रदेश के हर दलित, दमित, उत्पीड़ित, महिला और मजदूर को सम्मान व सुरक्षा दिलाने के लिए वोट करना है। आदि-आदि।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
चुनावों के दौरान जनता का आह्वान करती है कि अपनी जाति-पांति, धर्म और क्षेत्रीय संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर मतदान करने से पहले उपरोक्त बातों
का ख्याल रखे।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
जनता का ध्यान इस तथ्य की ओर भी आकर्षित करना चाहती है कि जातिवादी दल जातियों के
उत्थान की बातें जरूर करते हैं परन्तु उसका वर्गीय चरित्र पूंजीवादी और उनका ढांचा
भ्रष्टाचार के अर्थशास्त्र पर आधारित है। सत्ता में आने पर न तो इनके द्वारा कोई
उत्थान किया जाता है और न ही उनसे जनता ऐसी आशा रखे। इनका ध्येय एक ऐसा कंक्रीटी
(मसलन हाईवे, पथरीले पार्क, मेट्रो आदि का) विकास है
जिसमें अधिक से अधिक जनता के पैसे को लूटा जा सके।
यही हाल साम्प्रदायिक तथा
क्षेत्रीय संकीर्णताओं को उभारने वाले दलों का भी है।
ऐसी राजनीतिक ताकतें सरकार
बनाने के बाद प्रदेश और प्रदेश की जनता के समग्र विकास के बजाय सरमायेदारों के
सरमाये का विकास करने में लगी रहती हैं क्योंकि इन्हीं ताकतों से उन्हें
भ्रष्टाचार के जरिये धन मिलता है। प्रदेश का किसान, मजदूर, खेत मजदूर, नौजवान, विद्यार्थी, महिलाओं जैसे समाज के
विभिन्न तबकों से इन्हें पांच साल तक कुछ मिलने वाला नहीं होता है, इसलिए ये ताकतें और दल इन तबकों के विकास का कोई ख्याल भी नहीं रखती हैं।
अस्तु प्रदेश और प्रदेश की जनता
के समग्र विकास के लिए अमीरों की अमीरी और गरीबों की गरीबी के विकास के इस खेल को
जनता को इस बार रोकना ही होगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्य
·
17वीं विधान सभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तथा
वामपंथी दलों की मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित करना जिससे वह सत्ता की नीतियों में
प्रभावकारी दखलंदाजी की विधाई ताकत हासिल कर सके।
·
वर्तमान विधान सभा चुनावों के जरिये तमाम माफियाओं, भ्रष्ट तथा जनविरोधी
राजनीतिज्ञों को अगली विधान सभा में प्रवेश को भरसक रोकना।
·
साम्प्रदायिक एवं जातिवादी पार्टियों और ताकतों को भरसक पीछे धकेलना।
·
नेताओं और पार्टियों का विकल्प नेता अथवा पार्टी नहीं हो सकता। अतएव नीतियों
का विकल्प तैयार करना।
·
विधान सभा के भीतर नाम मात्र का विपक्ष नहीं अपितु मजबूत, जुझारू, संवेदनशील एवं कारगर विपक्ष खड़ा करना।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उपरोक्त लक्ष्यों को हासिल करने और जनता के हित में निम्न प्रमुख कार्यों को पूरा
करने को अपना चुनाव घोषणापत्र जारी करती है:
भ्रष्टाचार के खिलाफ और राजनीति के शुद्धिकरण का
अभियान
·
विधान सभा में प्रभावी दखलंदाजी की ताकत मिलने पर भाकपा अन्य वामपंथी दलों के
सहयोग के साथ एक विशेषज्ञ आयोग के गठन का काम करेगी जो यह पता लगाये कि टैक्सों की
दर अनाप-शनाप बढ़ने के तथा नये-नये टैक्स लगने के बावजूद सरकार को प्राप्त होने
वाला धन किस जरिये (परनाले) से निकल जाता है कि सरकार के पास प्रदेश की आम जनता को
आवास, भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए पैसा नहीं बचता है।
·
विशेषज्ञ आयोग की रिपोर्ट आने के बाद सरकार के संसाधनों के इस भ्रष्ट बहाव को
रोकने के लिए उचित तथा तेज मशीनरी और प्रक्रिया को विकसित करना जिससे राजनीति के
शुद्धिकरण को अमल में लाया जा सके जिससे सरकारी संसाधनों का उपयोग ऐसे विकास पर
खर्च किया जाये जिससे राजनैतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार समाप्त हो सके और
सरकारी संसाधनों का उपयोग कंक्रीटी विकास के बजाय प्रदेश और प्रदेश की जनता के
वास्तविक विकास पर खर्च करना मुमकिन हो सके।
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प्रभावी लोकपाल के प्रति भाकपा अपनी प्रतिबद्धता पुनः जाहिर करती है जिसे सभी
पूंजीवादी दल कदापि नहीं चाहते।
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जांच से लेकर मुकदमा चलाने तक सीबीआई सहित सभी जांच एजेंसियों को कार्यगत
स्वतंत्रता मुहैया कराना। उन्हें शासक दलों के चंगुल से मुक्त कराना।
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शहरी सम्पत्तियों में भ्रष्टाचार के पैसे के निवेश को रोकने के लिए शहरी भूमि
सीमारोपण कानून को दुबारा लागू किया जायेगा जिसे भूमंडलीकरण-उदारीकरण-निजीकरण के
दौर में समाप्त कर दिया गया है। अवशेष शहरी भूमियों का अधिग्रहण कर लिया जायेगा।
·
सोने में भ्रष्टाचार के पैसे के निवेश को रोकने के लिए प्रति परिवार सोने का
मालिकाना हक की कानूनी सीमा तय कर दी जायेगी और उससे अधिक सोना पाये जाने पर सख्त सज़ा दिये जाने का
कानून बनाया जायेगा।
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सीबीआई की तरह एक स्वतंत्र जांच एजेंसी का प्रदेश स्तर पर गठन।
·
सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती से त्वरित कार्यवाही। भ्रष्टाचार के
मुकदमों के त्वरित निस्तारण के लिए विशेष न्यायालयों का गठन।
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जन-धन के सभी उपयोगों की स्वतंत्र एजेंसी से आडिट आवश्यक करना और उनके सोशल
आडिट के लिए कानूनी व्यवस्था।
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सामाजिक कल्याण योजनाओं के सोशल आडिट की व्यवस्था।
·
राजनैतिक भ्रष्टाचार की एक जड़ - सांसद एवं विधायक निधि को समाप्त करना।
उत्तर प्रदेश का विकास
·
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ऐसी आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक नीतियों को लागू करेगी
जिससे उत्तर प्रदेश के समस्त भौगोलिक क्षेत्रों का समग्र,
समान एवं त्वरित
विकास हो। शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार का सृजन हो। इस समग्र
आर्थिक विकास से ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रूकेगा तथा विभाजनकारी राजनैतिक
शक्तियों, नेताओं और सरकारों की प्रदेश और प्रदेश की जनता को विभाजित करने की सारी
विघटनकारी चालबाजियाँ भी ध्वस्त हो जायेंगी। समग्र रूप से विकसित उत्तर प्रदेश में
ही इसकी 21 करोड़ जनता का भविष्य सुरक्षित रह सकता है।
विद्यार्थियों तथा नौजवानों के लिये
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दोहरी शिक्षा प्रणाली की समाप्ति और शिक्षा का राष्ट्रीयकरण। सभी एक जगह पढ़ें, एक जैसी शिक्षा ग्रहण करें।
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सभी स्कूल/कालेजों में इंटरनेट सुविधा युक्त कम्प्यूटर तथा विज्ञान की
प्रयोगशालाओं की स्थापना के साथ वैज्ञानिक शिक्षण को लागू करना।
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शत-प्रतिशत साक्षरता की दिशा में आवश्यक कदम उठाना। प्राईमरी स्कूलों में
ड्रॉप आउट रोकने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य।
·
रोजगार मुहैया कर सकने वाली निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था।
·
मध्यान्ह भोजन योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
·
धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता तथा प्रगतिशील मानव मूल्यों का
संचार करने वाले तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करने वाले पाठ्यक्रमों को तैयार
करना।
·
सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के रिक्त लाखों-लाख स्थानों पर
भर्ती। भर्ती प्रक्रिया को आर्थिक भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद से मुक्त बनाना
सुनिश्चित करना। रिक्ति निकले तो नौकरी जरूर मिले की नीति सुनिश्चित करना।
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छात्रों एवं नौजवानों में खेल के प्रति रूझान पैदा करने के लिए जिलों-जिलों में
अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल-कूद की पर्याप्त सुविधाओं को विकसित करना।
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बेरोजगारी समाप्ति के लिए रोजगार सृजन के लिए तमाम क्षेत्रों का विकास।
·
मनरेगा के समकक्ष योजना शहरी क्षेत्रों के लिए भी तैयार करना और उसे लागू
कराना।
महिलाओं एवं बच्चों के लिये
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संसद एवं विधायिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण का कानून बनवाना।
·
महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर कठोरतम कदम उठाना तथा शीघ्र न्याय मुहैया
कराने की मशीनरी एवं प्रक्रिया को सुनिश्चित करना।
·
महिलाओं के लिए समान कानूनी अधिकार। समान काम के लिए समान वेतन और विकास के
समान अवसर।
·
महिला एवं बाल-कल्याण कार्यक्रमों को सार्वभौमिक बनाना एवं इन योजनाओं में
व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
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बच्चों के खिलाफ अपराध पर कठोर कार्यवाही तथा इन अपराधों के लिए सजा में
बढ़ोतरी।
·
बालश्रम का उन्मूलन। भ्रूण हत्या और कुपोषण से मुक्ति।
औद्योगिक मजदूरों के लिए
·
मजदूरों के हितों की पूरी दृढ़ता से रक्षा। मजदूरी को विकास का आधार माना जाना।
·
श्रम कानूनों में मजदूरों के हित में परिवर्तन तथा कानूनों को प्रभावी तरह से
लागू करना।
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मजदूर यूनियन बनाने में अड़ंगे डालने वालों को सख्त सजा दिये जाने के लिए कानून
बनाना।
·
विभिन्न उद्योगों के मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी के स्तर को जीने लायक
मजदूरी में बदलना।
·
हर माह नियत तिथि पर मजदूरी भुगतान की गारंटी।
·
ठेका प्रथा एवं आउटसोर्सिंग की समाप्ति। ठेका मजदूरों को उद्योगों में
स्थाईकरण।
·
उच्च तकनीकी कम श्रम से अधिक उत्पादन देती है। अतएव उत्पादन के समकक्ष मजदूरी
अथवा श्रम के घंटे कम करना।
ग्रामीण एवं असंगठित मजदूरों के लिए
·
खेत मजदूरों तथा अन्य असंगठित वर्ग के मजदूरों के लिए आवश्यकता पर आधारित
न्यूनतम मजदूरी, पेंशन और अन्य सामाजिक कल्याण लाभ,
महिला मजदूरों के
लिए समान मजदूरी और प्रसूति सुविधाओं की गारंटी करने वाले कानून को बनाना।
·
हदबंदी के ऊपर की बची जमीन और कृषि योग्य अन्य फालतू जमीनों का भूमिहीनों में
वितरण।
·
खेती एवं किसानों के लिए
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कृषि के विकास को राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास की बुनियाद बनाना।
·
मूलगामी भूमि सुधारों पर अमल। कृषि भूमि को कृषि के लिए संरक्षित करने को कदम।
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राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफारिशों, जिसमें 4 प्रतिशत ब्याज पर ऋण मुहैया कराना शामिल है, को लागू कराने की दिशा में
कार्य।
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भूमि अभिलेखों के सही रखरखाव, चकबंदी को भ्रष्टाचार मुक्त कराना एवं निर्धारित
समय सीमा के अंदर चकबंदी को पूरा करना।
·
किसानों द्वारा खेती में प्रयुक्त सामग्रियों - खाद, बीज,
पानी, डीजल आदि की कीमतों में कटौती के तमाम उपाय तथा कृषि उत्पादों को लाभ पर बेचने
की व्यवस्था (जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्यों को लागत मूल्य के ऊपर तय करना शामिल
है) सुनिश्चित कर खेती को लाभदायक बनाना।
·
खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कृषि में सार्वजनिक
निवेश की वृद्धि।
·
सिंचाई एवं जल संरक्षण के लिए उचित योजना बनाना और उसे कार्यान्वित करना।
·
बाढ़ नियंत्रण एवं सूखे की रोकथाम के लिए कदम उठाना। वृक्षारोपण एवं पर्यावरण
सुरक्षा के लिए जरूरी कदम।
·
कृषि विज्ञान केन्द्रों के ताने-बाने का विकास जिससे रासायनिक उर्वरकों का
उपयोग कम करके फसलों की लागत को घटाया जा सके और कृषि को लाभप्रद व्यवसाय में
परिवर्तित किया जा सके।
·
सहकारिता आन्दोलन को मजबूत करना और उसमें व्याप्त नौकरशाही हस्तक्षेप तथा
भ्रष्टाचार का उन्मूलन।
·
कृषि के साथ किये जा सकने वाले अन्य कारोबारों - पशु पालन, मछली पालन, बागवानी आदि के लिए ढांचा विकसित करना और उसके लिए आर्थिक
पैकेज की व्यवस्था, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो सके। सामूहिक
खेती को प्रमोशन, कारपोरेट खेती पर प्रतिबंध।
·
वर्तमान किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून के स्थान पर नया कानून बनाना और
उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण पर रोक।
·
यदि आधारभूत ढांचे के लिए कृषि भूमि के अधिग्रहण के अतिरिक्त कोई विकल्प न हो
तो भूमि के उचित मूल्य के भुगतान के साथ ही प्रभावित किसान एवं ग्रामीण मजदूरों के
पुनर्वास की व्यवस्था - जिसमें अन्यत्र भूमि आबंटन शामिल है, सुनिश्चित करना।
दलितों, आदिवासियों तथा पिछड़ी जनता
के लिए
·
रिक्त पड़े आरक्षित पदों पर नियुक्तियां।
·
आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा, गैर कानूनी ढंग से उनसे ली गयी
जमीनों को उन्हें वापस करना।
·
उनके सम्मान, स्वाभिमान की रक्षा और समाज की मुख्य धारा में लाने को जरूरी
विधाई कदम उठाना।
बुनकरों तथा अन्य दस्तकारों के लिए
·
यू. पी. हैण्डलूम कारपोरेशन को बहाल किया जायेगा जिससे बुनकरों एवं अन्य
दस्तकारों के उत्पादों की बिक्री संभव हो सके।
·
बंद कताई मिलों को दुबारा चालू किया जायेगा।
·
बुनकरों एवं दस्तकारों को रियायती दर पर बिजली और सूत मुहैय्या कराना।
·
हथकरघा वस्त्रों तथा अन्य उत्पादों के निर्यात के लिए आधारभूत ढांचा तैयार
करना। उन्हें ब्याज मुक्त ऋण दिलाना।
·
दस्तकारी एवं बुनकरी के क्षेत्र में इजारेदार पूंजी के प्रवेश पर प्रभावी
प्रतिबंध।
समाचार माध्यमों एवं उनके कर्मियों के बारे में
·
छोटे एवं मध्यम समाचार माध्यमों के विकास के लिए उचित माहौल।
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मीडियाकर्मियों को वेज बोर्ड के अनुसार वेतन एवं सामाजिक सुरक्षा मुहैय्या
कराना।
आधारभूत ढांचा एवं सार्वजनिक क्षेत्र के लिए
·
प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र में
विकसित करना।
·
बिजली आदि क्षेत्रों में शुरू की गयी निजीकरण की प्रक्रिया को उलटना। अधिकाधिक
बिजली उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र में।
·
सार्वजनिक क्षेत्र के बन्द पड़े उद्योगों को पुनः चालू करना।
·
सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरशाही-हस्तक्षेप तथा भ्रष्टाचार का उन्मूलन।
·
सार्वजनिक क्षेत्र को स्वाबलंबी बनाना। सभी मार्गों का निर्माण सार्वजनिक
क्षेत्र में और उन्हें टोल टैक्स से मुक्त करना।
·
प्रदेश के हर क्षेत्र का औद्योगिक विकास सुनिश्चित करना।
·
कृषि उत्पादों पर आधारित तथा निर्यात-उन्मुख उद्योगों के विकास पर विशेष ध्यान
देना।
·
लघु उद्योगों के विकास पर विशेष ध्यान देना।
सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए
·
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाना और सभी परिवारों को उसके माध्यम
से 14 आवश्यक वस्तुओं की रियायती कीमतों पर आपूर्ति जिससे महंगाई पर प्रभावी अंकुश
रखा जा सके।
·
गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों के लिए वर्तमान सस्ती दरों पर
आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को भ्रष्टाचार मुक्त बनाकर हर लाभार्थी को आपूर्ति
सुनिश्चित करना।
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सभी मोहल्लों तथा ग्रामों में सस्ते दामों की दुकानों की स्थापना तथा इस
प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार का उन्मूलन।
·
खाद्यान्नों को नष्ट होने से बचाने के लिए पीसीएफ के लिए गोदामों का निर्माण
तथा संरक्षण के उपाय।
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के लिए
·
सभी जिला मुख्यालयों पर स्थित जिला एवं महिला अस्पतालों का उच्चीकरण।
·
ब्लाक, न्याय पंचायत और पंचायत स्तर पर सरकारी क्षेत्र में
बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था।
·
मंडल मुख्यालय पर मेडिकल कालेजों की स्थापना।
·
अस्पतालों में रिक्त चिकित्सकों तथा अन्य कर्मचारियों के रिक्त पड़े पदों को
भरा जाना।
·
दस्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों तथा अन्य कर्मचारियों के अतिरिक्त पदों का
सृजन।
·
सरकारी अस्पतालों में सभी जांचों तथा दवाईयों की मुफ्त व्यवस्था और उसमें
व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
·
स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण को समाप्त करना।
·
स्वास्थ्य बजट को दोगुना करना।
·
”बीमार का घर अस्पताल, बीमारी का निदान दवा और आराम“ योजना शुरू करना।
अल्पसंख्यकों के बारे में
·
रंगनाथ मिश्र आयोग तथा सच्चर कमेटी की अनुशंसाओं को लागू करना।
·
अल्पसंख्यकों के शैक्षिक तथा आर्थिक उन्नयन के लिए उचित कदम।
·
प्रशासन, पुलिस एवं सुरक्षा बलों में भेदभाव समाप्त कर मेरिट आधारित
समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
·
अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जाति के मामलों में धार्मिक भेदभाव की समाप्ति।
चुनाव सुधारों के बारे में
·
चुनावों में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू करना।
·
चुनावों को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए उचित कदम तथा निर्वाचित
प्रतिनिधियों की सम्पत्तियों की निगरानी के लिए अलग निकाय का गठन।
·
निर्वाचित प्रतिनिधि द्वारा स्वयं पार्टी छोड़ने अथवा उसके पार्टी से निष्कासन
पर संबंधित निकाय से उसकी सदस्यता का समापन।
·
मान्यता प्राप्त पार्टियों को राज्य की ओर से वित्तीय सहायता और इस सम्बंध में
कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता समिति की सिफारिशों का अनुमोदन एवं क्रियान्वयन।
पुलिस सुधार
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पुलिस कानून 1861 को निरस्त कर उसके स्थान पर राष्ट्रीय पुलिस आयोग
की सिफारिशों के अनुसार लोकतांत्रिक कानून बनाना।
·
पुलिस को जनता के साथ मित्रवत रहने की शिक्षा देना और उन्हें मित्रवत बनाना।
·
पुलिस हिरासत में मौतों को रोकना और इस तरह की किसी भी घटना पर कठोर तथा
त्वरित कार्यवाही।
·
अपराधों पर रोक के लिए पुलिस की जांच को पुख्ता करने के लिए अपराध विज्ञान
प्रयोगशालाओं की जिला स्तर पर स्थापना जिससे अपराधियों को पकड़ने में पुलिस सक्षम
हो सके और मुकदमों में सजा सुनिश्चित हो सके।
·
पुलिस द्वारा निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ किसी भी कार्यवाही पर सख्त
कार्यवाही के लिए तंत्र विकसित करना। पुलिस द्वारा शारीरिक प्रताड़ना पर हर स्तर पर
रोक।
·
एफआईआर दर्ज करने से जांच तक हर स्तर पर रिश्वतखोरी को समाप्त करना।
·
चौराहों, नाकों आदि पर अनवरत चलने वाली वसूली पर प्रभावी रोक। इस
हेतु सीसीटीवी का तंत्र विकसित करना।
जल प्रबंधन
·
एक व्यापक जल प्रबंधन व्यवस्था पर अमल, जिसमें नदियों को परस्पर इस
ढंग से जोड़ना कि पर्यावरण पर असर न पड़े, बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, वर्षा जल संचयन एवं सभी के लिए पीने के स्वच्छ पानी की
व्यवस्था शामिल है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
·
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करेगी। इसके लिए
राज्य स्तर पर सीएसआईआर जैसी संस्था की स्थापना करेगी।
धर्मनिरपेक्षता की रक्षा तथा साम्प्रदायिक कट्टरपंथ
का विरोध
·
हर किस्म की साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरपन, भाषायी, क्षेत्रीय तथा उग्र एवं अंध राष्ट्रवाद - जिससे हमारे समाज का एका और सौहार्द
भंग होता है - के विरूद्ध सशक्त अभियान।
·
धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा और उसे मजबूत करना।
·
भाकपा हर तरह के जातिवादी भेदभाव और जातिवाद के राजनैतिक लाभ उठाने की हर
कोशिश को समाप्त करेगी।
संसदीय लोकतंत्र की रक्षा
·
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करेगी।
·
विधान सभा एवं विधान परिषद की साल भर में कम से कम 100 दिनों तक बैठकों के आयोजन
को सुनिश्चित करेगी।
·
नीतिगत फैसलों - जिनका जनमानस पर व्यापक प्रभाव होना है, पर विधायिका की मुहर को आवश्यक करना।
·
निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा संसदीय प्रक्रिया में उनकी सहभागिता की रिपोर्ट
को संबंधित जन प्रतिनिधि के क्षेत्र में जनता को सूचित करना।
अन्य
·
आवास के अधिकार को वैधानिक अधिकार बनाने की दिशा में कार्य।
·
सार्वजनिक एवं सहकारी क्षेत्र की पिछली सरकारों द्वारा बेची गयी परिसंपत्तियों
का राष्ट्रीयकरण।
·
विद्यालयों को वित्तविहीन मान्यता की व्यवस्था की समाप्ति, वर्तमान वित्तविहीन विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के शिक्षकों को राज्य द्वारा
वेतन भुगतान की व्यवस्था में लाना।
·
शिक्षा-मित्रों, मध्यान्ह भोजन रसोईया, आशा बहुओं, आंगनबाड़ी वर्कर्स की सेवाओं का नियमितीकरण एवं वेतन भुगतान।
·
विकलांग व्यक्ति कानून 1995 में प्रभावी अमल जिससे उन्हें अपनी क्षमताओं के
निर्माण के पर्याप्त अवसर मुहैया हो सकें।
·
वृद्धावस्था, विकलांग एवं विधवा पेंशन सभी पात्र व्यक्तियों को मुहैया
कराना और प्रति माह पेंशन की राशि को कम से कम जीवन निर्वाह के स्तर पर लाना। इन
योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना। इन योजनाओं में पात्रता की
परिभाषा में परिवर्तन जिससे उन सभी लोगों को, जिन्हें इसकी जरूरत है, इसमें शामिल किये जा सकें।
·
अधिवक्ता कल्याण निधि की राशि को बढ़ाकर दस लाख किया जायेगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस
घोषणापत्र में व्यक्त दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध है। इन बातों को मनवाने के लिए
और 17वीं विधान सभा के चुनावों में प्रदेश की जनता के समर्थन से सफलता मिलने पर
विधान सभा के अन्दर इन पर अमल के लिए संघर्ष करेगी।
इसके लिए आवश्यक है कि 16वीं विधान सभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के और कुल मिलाकर वामपंथ के
विधायक अधिक से अधिक संख्या में चुन कर आयें।
भाकपा प्रदेश के मतदाता
भाइयों एवं बहनों से अपील करती है कि वह प्रदेश की जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने
और उसकी तमाम ज्वलंत समस्याओं के समाधान के लिये -
·
सर्वप्रथम भाकपा प्रत्याशियों को वोट दें।
·
भाकपा समर्थित प्रत्याशियों को वोट दें।
·
धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील, संवेदनशील, संघर्षशील एवं मजबूत वामपंथी विकल्प के निर्माण का रास्ता प्रशस्त करें जिससे
जनविरोधी, भ्रष्ट और निरंकुश पूंजीवादी राजनीति पर लगाम लगाई जा सके।
गुरुवार, 29 दिसंबर 2016
at 4:12 pm | 0 comments |
CPI will expose Demonitization
लखनऊ- कुटिल राजनैतिक उद्देश्यों से, जल्दबाजी में और बिना पूरी तैयारी के तथा अपनों को पहले ही लीक कर दिये गये नोटबंदी को पचास दिन पूरे हो जाने के बाद भी वह जनता के लिये भारी संकट बना हुआ है और मोदी सरकार संकट के समाप्त होने और जनता के नोट्बंदी के कथित तौर पर पक्ष में होने के लगातार दाबे कर रही है. मोदी सरकार के इस ढकोसले को उजागर करने और आम जनता को नोटबंदी की पीडादायक मार से बचाने के लिये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पूरे देश में जन अभियान चलायेगी.
भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा. गिरीश ने यहाँ जारी एक बयान में बताया कि हैदराबाद में गत दिन संपन्न भाकपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार यह अभियान 3 जनवरी से 10 जनवरी 2017 तक चलाया जायेगा. उत्तर प्रदेश में इस पूरे सप्ताह पदयात्रायें, सभायें और नुक्कड सभायें आयोजित की जायेंगी और 10 जनवरी को जिला व तहसील केंद्रों पर प्रदर्शन किये जायेंगे.
काले धन को समाप्त करने, नकली नोटों को प्रचलन से बाहर करने, भ्रष्टाचार को रोके जाने तथा आतंकवाद और माओवाद की कमर तोडने के नाम पर मोदी सरकार के इस बचकाने कदम ने अभूतपूर्व आर्थिक संकट खडा कर दिया है जिसके परिणामस्वरुप आमजनों का जीना दूभर हो गया है. रु. 500 और 1,000 के नोटों को समस्या की जड बता कर बंद किया गया मगर उससे भी बडे रु. 2,000 के नोट ने तो अफरा- तफरी ही पैदा कर दी है. रोजमर्रा के जीवन में कठिनाइयां पैदा करने के अलावा तमाम आर्थिक गतिविधियां बाधित होने से, उद्योगबंदी, व्यापारबंदी, बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याये पैदा होगयी हैं. कृषि और कुटीर उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुये हैं, इन सबका अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पडेगा. आजादी के बाद देश ने इतने बडे संकट का सामना नहीं किया.
यह आम चर्चा और आरोप हैं कि मोदी- शाह की जोट ने भाजपा और उसके समर्थक उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने को यह विनाशकारी कदम उठाया. भाजपा शासित राज्यों और निजी क्षेत्र की बैंकों को अधिक मात्रा में नई करेंसी आबंटित की गयी. छापों में बडी तादाद में मिल रहे 2,000 के नोटों के जखीरे इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं. मोदी सरकार द्वारा बदहवाशी में उठाये गये लगभग पांच दर्जन कदमों के बावजूद आमजनता को वह सब झेलना पडा है जो आवश्यक नहीं था, लगभग डेढ सौ लोग मौत के मुहं में समा गये तथा करोडों बीमारियों से जूझ रहे हैं.
अब जनता के आक्रोश को शांत करने को मोदी सरकार पांच राज्यों के चुनावों से पहले कई लोक लुभावन घोषणायें करने की योजना बना रही है. भाकपा के इस अभियान में इसका पर्दाफाश किया जायेगा और पीडित जनता को बताया जायेगा कि जिस उद्देश्य से प्रधानमंत्री ने विमुद्रीकरण योजना की घोषणा की उससे न तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा, न जाली नोट चलन से बाहर हुये, न काले धन पर प्रभाव पडा और न आतंकवाद पर रोक लगी. बल्कि इससे नई समस्याये खडी होगयी हैं और देश का व्यापारी किसान मजदूर नौजवान सभी परेशान हैं. नकदी संकट से जूझ रही सरकार अब कैश लेस लेन देन को थोप रही है और चाइना सहित अन्य देशों की कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है. भाकपा जनता को इस सबसे उबारने को दबाव बनायेगी.
डा. गिरीश
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सोमवार, 28 नवंबर 2016
at 6:55 pm | 0 comments |
Akrosh Divas of LEFT in U.P.
लखनऊ- 28, नवंबर: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने दाबा किया है कि नोटबंदी के खिलाफ आज वाम दलों द्वारा आयोजित आक्रोश दिवस उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व रहा.
लगभग हर एक जिले में भाकपा और वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं ने सडकों पर उतर कर प्रदर्शन किये और अनेक जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले जलाये. वे 500 और 1,000 के नोट 31 दिसंबर तक जारी रखने की मांग कर रहे थे ताकि आम जनता की परेशानियों को दूर किया जासके. साथ ही बैंकों पर लाइन में लगे जिन लोगों की मौतें हुयी हैं अथवा जो धन की कमी से बिना इलाज के मर गये हैं उनको रु. 10 लाख का मुआबजा देने की मांग कर रहे थे. काले धन पर सीधी कार्यवाही और धनपतियों पर बैंकों के बकायों को बसूले जाने की मांग कर रहे थे.
भाकपा यह लगातार आवाज उठाती रही है कि मोदी सरकार ने यह नोटबंदी राजनैतिक लाभ उठाने की गरज से की है. जनता काले धन के खिलाफ है और वह काले धन को जब्त करने की आकांक्षा रखती है. सरकार के पास कई कानून और कई विभाग हैं जिनके जरिये वह काले धन पर चोट कर सकती थी. लेकिन काले धन के बलबूते चुनाव लड़ कर सत्ता में आयी मोदी सरकार ने काले धन के सरगनाओं के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की और निरीह जनता को एक एक पैसे के लिये मुहंताज कर दिया.
मोदी सरकार की इस अविवेकी कार्यवाही से किसान, मजदूर और व्यापारी बुरी तरह से तबाह हुये हैं. उद्योगों में उत्पादन ठप है और देश एक आर्थिक मंदी की ओर बढ रहा है. नोटबंदी से ना तो आतंकवाद पर रोक लगी न नक्सल गतिविधियों पर. आतंकवादियों पर न केवल नये नोट पहुंच रहे हैं अपितु वे जेलों को तोड कर भाग रहे हैं. निरीह जनता बैंकों के बाहर लाइनों में लगी है.
श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा लगाये गये आपात्काल में जबरिया नसबंदी बड़े पैमाने पर हुयी थी. उसी के चलते उनकी चुनावों में करारी हार हुयी थी. आज दो दो हजार रु. के लिये लोग नसबंदी करा रहे हैं. ये नोट्बंदी और नसबंदी मोदी सरकार को ले डूबेंगे.
डा. गिरीश ने कहा कि वामपंथी दलों और विपक्ष ने आक्रोश दिवस आयोजित करने का नारा दिया था, भारत बंद का नहीं. कई राज्यों में बंदी का नारा भी दिया गया. वहाँ वह पूरी तरह सफल भी रहा है. पर मोदी सरकार इसे भारतबंद प्रचारित करती रही. फिर भी जगह जगह व्यापारियों ने अपनी पहल पर बंदी रखी. ये मोदी सरकार के मुहं पर तमाचा है जो आज भी दाबा कर रही है कि नोट बंदी से पूरा देश खुश है और केवल काले धन वाले इसका विरोध कर रहे हैं. उन्होने दावा किया कि भाकपा पूरी तरह काले धन से दूर है. फिर भी वह जनहित में नोटबंदी का प्रबल विरोध कर रही है. पर भाजपा बताये कि उसकी 75 रथयात्रायें और करोड़ों खर्च करने वाली रैलियां कैसे निकल रही हैं.
डा. गिरीश ने सपा बसपा पर भी सवाल उठाया कि वे आक्रोश दिवस पर सड़कों पर उतरने से क्यों कतराते रहे. वैसे इन दलों का हमेशा संसद में एक रुख रहता है तो सड़कों पर दूसरा रुख.
भाकपा के इस विरोध प्रदर्शन में राज्य नेत्रत्व के साथियों ने अलग अलग स्थानों पर नेत्रत्व प्रदान किया. राज्य सचिव डा. गिरीश ने हाथरस में आंदोलन का नेत्रत्व किया तो सहसचिव द्वय अरविन्दराज स्वरुप और इम्तियाज अहमद ने क्रमश: कानपुर और मऊ में नेत्रत्व किया. मंत्रि परिषद सदस्य आशा मिश्रा ने लखनऊ, अतुल सिन्ह ने फैज़ाबाद तो अजय सिन्ह ने बुलंदशहर में आंदोलन की अगुवाई की. राज्य कार्यकारिणी व राज्य काउंसिल के अन्य साथियों ने अपने अपने जनपदों में भागीदारी की.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
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at 6:54 pm | 0 comments |
Akrosh Divas in U.P.
लखनऊ- 28, नवंबर: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने दाबा किया है कि नोटबंदी के खिलाफ आज वाम दलों द्वारा आयोजित आक्रोश दिवस उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व रहा.
लगभग हर एक जिले में भाकपा और वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं ने सडकों पर उतर कर प्रदर्शन किये और अनेक जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले जलाये. वे 500 और 1,000 के नोट 31 दिसंबर तक जारी रखने की मांग कर रहे थे ताकि आम जनता की परेशानियों को दूर किया जासके. साथ ही बैंकों पर लाइन में लगे जिन लोगों की मौतें हुयी हैं अथवा जो धन की कमी से बिना इलाज के मर गये हैं उनको रु. 10 लाख का मुआबजा देने की मांग कर रहे थे. काले धन पर सीधी कार्यवाही और धनपतियों पर बैंकों के बकायों को बसूले जाने की मांग कर रहे थे.
भाकपा यह लगातार आवाज उठाती रही है कि मोदी सरकार ने यह नोटबंदी राजनैतिक लाभ उठाने की गरज से की है. जनता काले धन के खिलाफ है और वह काले धन को जब्त करने की आकांक्षा रखती है. सरकार के पास कई कानून और कई विभाग हैं जिनके जरिये वह काले धन पर चोट कर सकती थी. लेकिन काले धन के बलबूते चुनाव लड़ कर सत्ता में आयी मोदी सरकार ने काले धन के सरगनाओं के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की और निरीह जनता को एक एक पैसे के लिये मुहंताज कर दिया.
मोदी सरकार की इस अविवेकी कार्यवाही से किसान, मजदूर और व्यापारी बुरी तरह से तबाह हुये हैं. उद्योगों में उत्पादन ठप है और देश एक आर्थिक मंदी की ओर बढ रहा है. नोटबंदी से ना तो आतंकवाद पर रोक लगी न नक्सल गतिविधियों पर. आतंकवादियों पर न केवल नये नोट पहुंच रहे हैं अपितु वे जेलों को तोड कर भाग रहे हैं. निरीह जनता बैंकों के बाहर लाइनों में लगी है.
श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा लगाये गये आपात्काल में जबरिया नसबंदी बड़े पैमाने पर हुयी थी. उसी के चलते उनकी चुनावों में करारी हार हुयी थी. आज दो दो हजार रु. के लिये लोग नसबंदी करा रहे हैं. ये नोट्बंदी और नसबंदी मोदी सरकार को ले डूबेंगे.
डा. गिरीश ने कहा कि वामपंथी दलों और विपक्ष ने आक्रोश दिवस आयोजित करने का नारा दिया था, भारत बंद का नहीं. कई राज्यों में बंदी का नारा भी दिया गया. वहाँ वह पूरी तरह सफल भी रहा है. पर मोदी सरकार इसे भारतबंद प्रचारित करती रही. फिर भी जगह जगह व्यापारियों ने अपनी पहल पर बंदी रखी. ये मोदी सरकार के मुहं पर तमाचा है जो आज भी दाबा कर रही है कि नोट बंदी से पूरा देश खुश है और केवल काले धन वाले इसका विरोध कर रहे हैं. उन्होने दावा किया कि भाकपा पूरी तरह काले धन से दूर है. फिर भी वह जनहित में नोटबंदी का प्रबल विरोध कर रही है. पर भाजपा बताये कि उसकी 75 रथयात्रायें और करोड़ों खर्च करने वाली रैलियां कैसे निकल रही हैं.
डा. गिरीश ने सपा बसपा पर भी सवाल उठाया कि वे आक्रोश दिवस पर सड़कों पर उतरने से क्यों कतराते रहे. वैसे इन दलों का हमेशा संसद में एक रुख रहता है तो सड़कों पर दूसरा रुख.
भाकपा के इस विरोध प्रदर्शन में राज्य नेत्रत्व के साथियों ने अलग अलग स्थानों पर नेत्रत्व प्रदान किया. राज्य सचिव डा. गिरीश ने हाथरस में आंदोलन का नेत्रत्व किया तो सहसचिव द्वय अरविन्दराज स्वरुप और इम्तियाज अहमद ने क्रमश: कानपुर और मऊ में नेत्रत्व किया. मंत्रि परिषद सदस्य आशा मिश्रा ने लखनऊ, अतुल सिन्ह ने फैज़ाबाद तो अजय सिन्ह ने बुलंदशहर में आंदोलन की अगुवाई की. राज्य कार्यकारिणी व राज्य काउंसिल के अन्य साथियों ने अपने अपने जनपदों में भागीदारी की.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश
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बुधवार, 16 नवंबर 2016
at 11:30 am | 0 comments |
Action on Black Money: View of CPI
वास्तविक काले धन वालों पर ठोस कार्यवाही करो: आम जनता को राहत दो- भाकपा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय सचिव मंडल के वक्तव्य के परिप्रेक्ष्य में भाकपा के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मंडल ने निम्नलिखित बयान जारी किया है—
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भ्रष्टाचार, काले धन और नकली मुद्रा के खिलाफ संघर्ष के अपने संकल्प को दोहराते हुये महसूस करती है कि श्री मोदी सरकार द्वारा अचानक बड़े नोटों को प्रचलन से बाहर कर देने के आदेश ने आम जनता खास कर खोमचे वालों, रोज कमा कर खाने वालों, वेतनभोगियों, खुदरा कारोबारियों, छोटे किसानों, खेत मजदूरों तथा दस्तकारों के सामने बड़ी कठिनाइयां खड़ी कर दी हैं. सरकार को विमुद्रीकरण की इस कार्यवाही पर तत्काल पुनर्विचार करना चाहिये.
राजनैतिक उद्देश्यों से बिना तैयारी के की गयी इस कार्यवाही के बाद से आम लोगों की जेबें खाली हैं. अधिकतर को एटीम अथवा बैंकों से धन मिल नहीं पा रहा है अथवा बहुत कम मिल पारहा है. अतएव अर्थाभाव में बीमार दम तोड़ रहे हैं, तमाम लोग भूखों मर रहे हैं, लंबे समय तक लाइनों में खड़े लोगों की दिल के दौरे पडने से मौतें होरही हैं, अनेक आत्महत्या कर चुके हैं और असहाय लोग आपस में लड़ रहे हैं, पुलिस से लड़ रहे हैं, बैंकों पर तोड़ फोड़ कर रहे हैं अथवा बैंककर्मियों पर गुस्सा उतार रहे हैं. काम के भारी बोझ के चलते बैंक कर्मी बीमार पड़ रहे हैं और कई की मौत तक हो चुकी है. शादी विवाह वाले परिवारों को भारी कठिनाइयां आरही हैं. पर लोगों की समस्याओं का निदान करने के बजाय प्रधानमंत्री जनता को इमोशनली ब्लैकमैल कर रहे हैं.
मुद्रा के अभाव में तमाम औद्योगिक व्यापारिक और कृषि संबंधी गतिविधियां ठप पड़ी हैं. उद्योगों में उत्पादन ठप है. निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र ओंधे मुहं पड़ा है, ट्रान्सपोर्ट और परिवहन पंगु होचुका है और पर्यटन उद्योग जाम की स्थिति में है. किसान बुआई के लिये खाद बीज नहीं खरीद पारहे और उनके अनाज फल सब्जियां बिक नहीं पारहे. मनरेगा तक ठप पड़ी हैं. शहरी मजदूर पलायन कर रहे हैं और तमाम मजदूर उधार पर काम करने को मजबूर हैं. विकास और अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.
दो हजार के नोट के कारण भारी कठिनाइयां खड़ी होरही हैं क्योंकि इसको छुट्टा करने को छोटे नोट उपलब्ध नहीं है. अतएव 50, 100, 1000, के नोटों को ज्यादा प्रचलन में लाने की जरूरत है. दो हजार के नोट से तो काले धन को संरक्षित करने में और अधिक सुविधा होगी. जिस तरह का यह नोट छपा है उसका डुप्लीकेट भी आसानी से छापा जा सकता है. अतएव दो हजार के नोट को प्रचलन से वापस लेना चाहिये.
यदि सरकार को कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करने को वाकई संजीदा प्रयास करना था तो उसे सबसे पहले विदेशों में जमा 80 हजार करोड़ के उस धन को वापस लाना था जिसे लाने का ढिंढोरा भाजपा लोकसभा के चुनाव अभियान में पीटती रही. विक्की लीक्स द्वारा विदेशों में जमा धन और पनामा पेपर्स लीक के अनुसार विदेशों में निवेशकर्ताओं के खुलासे के आधार पर सरकार को ठोस कार्यवाही करनी चाहिये थी. नकली नोटों के करोबारी, हवाला वालों तथा काले धन के 7 करोड़ सरगनाओं पर कार्यवाही करने के बजाय सरकार ने 118 करोड़ निरीह जनता के खिलाफ युध्द छेड़ दिया.
इसके अलावा सरकार को उन बड़े धन्ना सेठों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिये जिन्होने बैंकों से लिये कर्ज को हड़प लिया और बैंकों ने उसे बट्टे खाते में डाल दिया. सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गयी जानकारी के अनुसार 87 व्यक्तियों जिन पर 500 करोड़ से अधिक बकाया है पर कुल 85 हजार करोड़ बकाया है. यदि इस सूची में 100 करोड़ तक के बकायेदारों को भी शामिल कर लिया जाये तो यह बकाया राशि एक लाख करोड़ से अधिक बैठेगी. इसके अलावा 100 करोड़ से कम वाले भी बहुत सारे हैं. सरकार को इन गैर उत्पादित परिसंपत्तियों ( एनपीए ) की बसूली के लिये शीघ्र ठोस कदम उठाने चाहिये तथा इन कर्जदारों की संपत्तियों को जब्त करना चाहिये.
इस तरह की रिपोर्ट्स भी मिल रही हैं कि बहुत सारे लोगों, राजनैतिक दलों के नेताओं, भाजपा समर्थक उद्योगपतियों और भाजपा ने करोड़ों करोड़ रुपये पिछले महीनों में बैंकों में डाल दिया और काले धन को सुरक्षित व्यवसायों में निवेशित कर दिया क्योंकि उन्हें विमुद्रीकरण की इस कार्यवाही के बारे में पता था. सभी पूंजीवादी दलों की धड़ल्ले से चल रही गतिविधियां इसका जीता जागता प्रमाण हैं. सबसे आगे भाजपा है जिसकी 75 रथयात्रायें उत्तर प्रदेश/ उत्तराखंड में चल रही हैं और मोदी – शाह की बेहद खर्चीली रैलियां आयोजित की जारही हैं. बैंकों को ऐसे जमाकर्ताओं की सूची जारी करनी चाहिये.
भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने पार्टी की समस्त शाखाओं एवं कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे काले धन से संबंधित मांगों, विदेशों में जमा धन और निवेशित धन तथा एनपीए की बसूली तथा दो हजार के नोट को वापस लेने व 50, 100, 500 और एक हजार के नोट को ज्यादा से ज्यादा प्रचलन में लाने की मांग को लेकर केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, खासकर आयकर कार्यालयों और बैंकों के समक्ष मार्च, धरने और प्रदर्शन करें. जनता और बैंक कर्मियों की राहत के लिये ठोस कदम उठाने की मांग भी केंद्र सरकार से की जानी चाहिये.
भाकपा कार्यकर्ताओं को कठिनाइयां झेल रहे लोगों की भी हर संभव मदद आगे बढ कर करनी चाहिये.
डा. गिरीश
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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
at 6:12 pm | 0 comments |
आंगनबाड़ियों के संघर्ष को लाल सलाम
लखनऊ- 23, सितंबर 16, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों की दयनीय दशा पर खेद जताते हुये उनकी न्यायोचित मांगों को पूरा करने की मांग राज्य सरकार से की है. भाकपा ने आंगनबाड़ियों के संघर्ष के प्रति पूर्ण एकजुटता प्रकट की है.
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि बच्चों को कुपोषण से बचाने जैसे महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने वाली आंगनबाड़ियों को मनरेगा मजदूरों से भी कम वेतन मिलता है. रु. 3200 व 1600 प्रति माह वेतन से तो वे अपने कपड़े धुलवा कर प्रेस नहीं करा सकतीं. अनेकों अन्य तरीकों से उनका शोषण होता है सो अलग.
2012 में सत्ता में आने के बाद अखिलेश सरकार ने उनकी कई मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया था मगर वह आज तक अधर में लटके हुये हैं. केंद्र सरकार तो उन्हें कर्मचारी मानने को ही तैयार नहीं है. अतएव वे निरंतर संघर्षरत हैं. भाकपा उनके संघर्ष को लाल सलाम पेश करती है और केंद्र तथा राज्य सरकार से मांग करती है कि उनकी मांगों को तत्काल पूरा करे.
डा. गिरीश
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गुरुवार, 8 सितंबर 2016
at 8:35 pm | 0 comments |
रेल किराये में वृध्दि की भाकपा ने आलोचना की.
लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम को जनविरोधी बताते हुये उसकी कड़े शब्दों में आलोचना की है.
यहां जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गत 27 महीनों में केंद्र सरकार ने कई बार रेल और माल भाडे में बढोत्तरी की है, आरक्षण रद्द कराने में भारी कटौती लागू कर दी है, सफाई के नाम पर अतिरिक्त कर लगाया है तथा प्लेटफार्म टिकिट रु. 10/- का कर दिया है और अब शताब्दी और राजधानी जैसी ट्रेनों के आरक्षण बढते जाने पर किराया दर बढाते जाने की व्यवस्था लागू की है. मजे की बात यह है कि यह व्यवस्था इन ट्रेनों की सर्वोच्च श्रेणियों में लागू नहीं की गयी जिनमें कि धनबान लोग यात्रा करते हैं.
डा. गिरीश ने कहा कि सरकार रेल यात्रा को निरंतर महंगी बना कर आम आदमी के लिये कठिनाइयां खडी कर रही है और महंगाई की मार झेल रही जनता के ऊपर और भी भार बढा रही है. भाकपा की उत्तर प्रदेश इकाई इन बढोत्तरियों को तत्काल रद्द करने की मांग करती है.
डा. गिरीश
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बुधवार, 24 अगस्त 2016
at 7:31 pm | 0 comments |
भाकपा ने बाढ़ की तबाही पर गहरी चिंता जताई: सरकारों से की फौरी कदम उठाने की मांग
लखनऊ- 24 अगस्त 16, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि में बाढ़ की भीषण तबाही से धन और जन हानि पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुये केंद्र और राज्य सरकारों से लोगों की जान बचाने और तबाही से निपटने को ठोस कदम उठाने की मांग की है.
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग 25 जिले आज भयंकर बाढ़ की त्रासदी का सामना कर रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास खतरे और तबाही के मुकाबले काफी कम दिखाई देरहे हैं. अधिकतर राहत और बचाव का काम साधन रहित चंद कर्मचारियों व अधिकारियों के हवाले है. अतएव जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. यही हाल पड़ौसी राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान का है.
भाकपा ने कहाकि केंद्र की और राज्यों की सरकारों ने बाढ़ की बिभीषिका से निपटने को यदि समग्र नीति अपनाई होती तो तबाही काफी कम होती. गंगा में जहाज चलाने से ज्यादा उसकी सिल्ट निकाले जाने के काम को प्राथमिकता दी जानी चाहिये थी. अब जरूरत है कि फौरी कदम तेजी से उठाये जायें और आधुनिक साधनों से लैस बचाव दलों को तबाही क्षेत्रों में भेजा जाये.
भाकपा राज्य सचिव मंडल ने प्रभावित इलाकों और उसके इर्द गिर्द की अपनी शाखाओं को निर्देश दिया कि वे पीढ़ित जनता की मदद करें, और शासन प्रशासन के समक्ष जनता की समस्याओं को पेश करें. डा. गिरीश ने बताया कि उन समेत भाकपा का एक राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडल चार दिन की पूर्वी उत्तर प्रदेश की यात्रा पर कल रबाना होरहा है.
डा.गिरीश
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at 12:55 pm | 0 comments |
पूंजीवाद की गिरफ्त में खेती, किसान और गांव: संकट के कारण और निवारण
देश के किसान आज गहरे संकट से गुजर रहे हैं. गत दो वर्षों में देश के साठ फीसदी किसान सूखे की चपेट में थे, तो आज वे भीषण बाढ की तबाही को झेल रहे हैं. आपदा प्रबंधन हो या राहत आबंटन, सरकारी फायलों में अधिक जमीन पर कम दिखाई देते हैं. पिछले 25 सालों से जारी आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने उनकी माली हालत को खोखला बना कर रख दिया है. आत्महत्या और पलायन उनकी नियति बन गये हैं. खेती और किसान की यह नियति ही आज गांव की नियति भी बन गयी है.
केन्द्र और राज्यों में सरकारें बदलती रहीं, लेकिन किसान और कृषि उनकी चिंता के केन्द्र में कभी नहीं रहा. अपने चुनाव अभियान में भाजपा और श्री मोदी ने उनकी उपज पर 50 प्रतिशत लाभ बढा कर दिलाने का वायदा किया था. पर लाभ तो दूर उसे खेती में लगायी हुयी लागत भी पलट कर नहीं मिल रही. हालत यह है कि देश के किसानों की औसत आय घट कर 6426 रुपये रह गयी है. जबकि कृषक परिवारों का औसत बकाया कर्ज 47,000 रुपये होगया है. आय की दर घटी है और कर्ज का औसत बढा है.
श्री मोदी जी ने जब वाराणसी से लोक सभा का चुनाव लडने का फैसला लिया था तो गंगा यमुना के दोआब वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश के किसानों में एक आशा की किरण जागी थी. उन्हें लगा था कि अब उनके संकट के दिन बीते जमाने की बात होने जा रहे हैं. लेकिन आज उनकी औसत आय घट कर 4923 रुपये रह गयी है. यानी नीचे से चौथे पायदान पर. उत्तर प्रदेश की सरकार भी अखबार और टी. वी. चैनलों पर विज्ञापनों के द्वारा ही किसान हित साधती नजर आरही है. सालों पहले हुयी ओलावृष्टि की याद उसे तब आयी जब चुनाव सिर पर हैं. यदि अनुपूरक बजट में की गयी राहत राशि का आबंटन पहले कर दिया होता तो शायद कई किसान आत्महत्या न किये होते. आज भी जो व्यवस्था की गई है वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है. केंद्र और राज्य सरकारें कितने भी दाबे करें पर यह सच्चाई है कि चीनी मिलों पर किसानों का सैकड़ों करोड़ रुपया बकाया है.
पडौस में जब लाभ की नींव पड़ती दिखती है तो पडोसी भी लाभ की उम्मीद लगाता है. पर उम्मीदों के प्रदेश के पडोसी राज्य बिहार के किसानों की औसत आय सबसे नीचे के पायदान पर पहुंच कर 3558 रुपये रह गयी है. वर्तमान में वहां आयी बाढ से उनकी हालत और भी खराब होने जारही है. औसत आय के ग्राफ पर बंगाल नीचे से दूसरे और उत्तराखंड तीसरे पायदान पर है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की इस रिपोर्ट ने सरकारों द्वारा किये जारहे दाबों की कलई खोल कर रख दी है. एक नई कृषि नीति और नई कृषि प्रणाली पर चर्चा शुरू करने की जरूरत आन पडी है.
आज खेती का सबसे बढा संकट यह है कि वह हर तरह से पूंजीवाद की जकड में है. आत्मनिर्भर गांव और खेती का हमारा परंपरागत ढांचा पूरी तरह ढह चुका है. आधुनिक खेती के सारे उपादान- खाद, बीज, बिजली, डीजल, उपकरण और कीटनाशक किसानों को भारी कीमत देकर खरीदने होते हैं. लेकिन अपने उद्पादों को वह लागत और लाभ की गणना करके निकाले गये मूल्य पर नहीं बेच सकता. अपने उद्पादों को बेचने के लिये उसे पूंजीवादी संस्थानों की शरण में जाना पढता है, जहाँ कीमतें किसान अथवा किसान संगठन नहीं बाज़ार तय करता है. किसानों के हित में किसान संगठनों ने जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली( MSP) को लागू कराया था पूंजीवादी सरकारों ने उसे भी किसानों की उपज की कीमतों को सीमित करने का माध्यम बना दिया है.
यह अक्सर ही होता है कि जब अनाज, सब्जी या फलों की फसल पैदा होती है तो इनकी कीमतें नीचे ला दी जाती हैं और जब किसान अपना उत्पादन बेच चुका होता है तो ये कीमतें बढने लगती हैं. किसान की माली हालत ऐसी नहीं होती कि वो अपने उत्पादों को कीमतें चढने तक रोक सके. उसकी इस हालत का पूरा लाभ वे तत्व उठाते हैं जो उत्पादन प्रक्रिया के अंग नहीं हैं और अपने पैसे के बल पर किसानों की मेहनत को लूट कर मालामाल होरहे हैं.
परिवार के विभाजन के साथ साथ कृषि भूमि का विभाजन लगातार होरहा है. अधिकतर किसान आज या तो हाशिये के किसान बन गये हैं या फिर वे लगभग भूमिहीनता की स्थिति में पहुंच गये हैं. इस स्थिति ने एक नये किसान समूह को जन्म दिया है जो इन हाशिये के किसानों की जमीनों को खरीद कर बडा जोतदार बन गया है. सीलिंग कानून के निष्प्रभावी बना दिये जाने के चलते पहले से भी कई बडे जोतदार मौजूद हैं. ये सभी संसाधनों से लैस हैं. बैंक और सरकारों की सुविधाओं का लाभ भी अधिकतर ये लोग ही उठाते हैं. हाशिये के किसानों की जमीन को किराये या बटाई पर लेकर कैश क्रोप पैदा करते हैं. कार्पोरेट कृषि का प्रारंभ यहीं से होता है.
उन्नत उपकरणों के चलते इन बड़े किसानों की उपजों का लागत मूल्य कम आता है. वे अपनी पैदावारों को स्टोर करने या कोल्ड स्टोरेज में रखने में सक्षम हैं और उन्हें तभी बेचते हैं जब बाज़ार में कीमतें बढ जाती हैं. इनमें से अधिकतर नेता, अधिकारी, उद्योगपति अथवा दूसरे माफिया समूह हैं. ये शहर अथवा कस्बों में रह कर खेती का संचालन करते हैं. इस तरह की खेती ने ग्रामीण रोजगार की दर को न्यूनतम स्तर पर पहुंचा दिया है. गांवों से रोजगार के लिये पलायन तो बढा ही है, नवोदित उन्नत किसानों के गांव में न रहने से वहाँ की कृषि की कमाई शहरों में व्यय होरही है और गांव कंगाल होरहे हैं.
इस स्थिति का प्रमुख कारण यह है कि छोटी जोत वाला किसान न तो ट्रेक्टर खरीद पाता है न ट्यूवबेल लगा सकता है. बैल पालना भी अब भारी महंगा होगया है. जुताई सिंचाई और ओसाई आदि उसे ज्यादा किराया देकर बडे किसानों के उपकरणों से करानी होती है. अतएव उसकी लागत बड़ जाती है. लागत के सापेक्ष वह निरंतर घाटे में जा रहा है और महाजनों और बैंकों के कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है. यही कर्ज अनेकों की जान पर भारी पड रहा है. किसानों के जो युवक पढ़ लिख कर अच्छे रोजगार में चले जाते हैं वे पहले अपने हिस्से की जमीनें किराये पर उठा कर धन को शहरों में ले जाते हैं और बाद में जमीन को बेच कर रकम को भी शहरों में ले जाते हैं. गांव की कंगाली और बदहाली में उनका बढा योगदान है. खेती नहीं तो भूमि नहीं का फार्मूला हमारे यहाँ लागू नहीं है.
औसत किसान की बदहाली का सीधा असर खेतिहर मजदूरों और ग्रामीण दस्तकारों पर पड़ रहा है. वे आर्थिक मार तो झेल ही रहे हैं, दबंगों के हमलों को भी उन्हें झेलना होता है. गांव में न अच्छे स्कूल हैं न अच्छे अस्पताल. खराब सडकें, बदहाल संपर्क मार्ग, पंगु बनी यातायात व्यवस्था और बिजली की नाममात्र की मौजूदगी किसानों कामगारों के लिये अभिशाप बने हुये हैं. कुटीर और छोटे धंधे टिक नहीं पा रहे हैं.
किसानों और अन्य ग्रामीण तबकों की इस स्थिति में बदलाव तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकार की नीतियां हाशिये के किसान को केंद्र में रख कर बनाई जायें. पर जाति धर्म के नाम पर वोट हथिया कर पूंजीवाद की गोद में जा बैठने वाली सरकारों से यह उम्मीद लगाना व्यर्थ है. यह तभी संभव है जब किसान और ग्रामीण मतदाता ऐसी पार्टियों को मौका दें जो किसानों, ग्रामीण मजदूर और दस्तकारों के हित में काम करती हैं और जो जाति, धर्म, भ्रष्टाचार और मौकापरस्ती से कोसों दूर हैं. कम्युनिस्ट पार्टियां और अन्य वामपंथी समूह ही इस योग्यता को पूरा करते हैं, सत्ता के खेल में रनर- बिनर बनी पार्टियां नहीं.
ये कम्युनिस्ट पार्टियां ही हैं जिनके पास किसानों और खेती की कायापलट का ठोस कार्यक्रम है. वे सीलिंग लागू करने, जमीनों के वितरण और भूमि सुधार, कृषि उपादानों को कम कीमत पर दिलाने, उत्पादन और भंडारण के लिये ब्याजमुक्त ऋण दिलाने, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव और उसकी त्वरित भरपाई किये जाने, कृषि भूमि का कम से कम अधिग्रहण और उसके बदले भूमि, रोजगार और उचित मुआबजा दिलाने, सचल विपणन केंद्र बनाने, ग्रामों में शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन की सुविधा और रोजगार के अवसर बढाने और सभी को कानूनी सरंक्षण प्रदान करने को प्रतिबध्द हैं. जाति और सांप्रदायिक विद्वेष खेत्ती किसान और गांव की प्रगति में बाधक हैं. कम्युनिस्ट पार्टियां और वामपंथी शक्तियां उसको समूल उखाड फेंकने को प्रतिबध्द हैं. किसानों का संकट राजनीतिजन्य है तो इसका निदान भी राजनीतिक ही होगा.
वामपंथी किसान संगठनों को भी नये संकटों और नयी परिस्थितियों का आकलन कर नये तरीकों से किसानों को संगठित करना होगा. ट्रेड यूनियन मार्का नारेबाजी और पूंजीवादी दलों के पिट्ठू किसान संगठनों द्वारा उछाले गये सबका साथ सबका विकास जैसे छलावों से किसानों का कोई हित होने वाला नहीं. भ्रष्टाचार से मुक्त और सरकार द्वारा सरंक्षित सामूहिक खेत्ती भी हाशिये के किसानों को संकट से निकाल सकती है, अतएव इस दिशा में भी काम किया जाना चहिये.
डा. गिरीश
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बुधवार, 17 अगस्त 2016
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महंगाई, एफडीआई, दलितों अल्पसंख्यकों के उत्पीड़्न के खिलाफ भाकपा ने प्रदेश भर में प्रदर्शन कर ज्ञापन दिये
लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के आह्वान और राज्य कमेटी के निर्देश पर आज समूचे उत्तर प्रदेश के अधिकतर जनपदों में जहां भाकपा की जिला कमेटियां कार्यरत हैं, धरने और प्रदर्शनों का आयोजन किया गया. कई जिलों में तो भारी वारिश होरही थी फिर भी कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.
केंद्र सरकार की नीतियों के चलते जनता पर पड़ रही महंगाई की मार, रक्षा सहित तमाम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) को बढावा देने, युवाओं को रोजगार देने के वायदे से मुकरने, शिक्षा को व्यापार बना कर आम और गरीब लोगों की पहुंच से बाहर कर देने, देश भर में और उत्तर प्रदेश में दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर होरहे नृशंस हमलों, राशन की दुकानों पर वस्तुओं के निर्धारित मूल्यों से अधिक दाम बसूलने, कम माल देने, सभी पात्रों को राशन कार्ड न देने तथा फसल बीमा कंपनियों द्वारा किसानों के साथ की जारही धोखाधड़ी आदि सवालों पर आंदोलन किया गया.
सूखा ग्रस्त जिलों में सूखा राहत दिलाने, गन्ना उत्पादक किसानों के मिलों पर बकायों का शीघ्र भुगतान कराने और स्थानीय सवालों को भी ज्ञापनों में शामिल किया गया. सभी जगह सभायें की गयीं तथा महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपे गये.
भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि प्रेस नोट जारी करने तक जिलों जिलों से आंदोलन की खबरें लगातार राज्य केंद्र को प्राप्त होरही हैं. लखनऊ में पार्टी कार्यालय से हज़रत गंज स्थित डा. अंबेडकर प्रतिमा तक जुलूस निकाला गया और वहां आम सभा की गयी. मैनपुरी में भारी वारिश के बावजूद प्रभावशाली प्रदर्शन किया गया. गाज़ियाबाद में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया गया. कानपुर देहात में मूसलाधार वारिश के बावजूद माती स्थित जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया. बरेली में कलक्ट्रेट पर विशाल धरना दिया गया.
इसी तरह गाज़ीपुर में अपर जिलाधिकारी कार्यालय पर विशाल धरना हुआ तो इलाहाबाद में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया गया. मुरादाबाद में कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन हुआ तो जालौन जिले के उरई स्थित मुख्यालय पर भारी वारिश के मध्य विशाल और शानदार प्रदर्शन किया गया. हाथरस में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया गया. मथुरा में जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया. आज़मगढ में कलेक्ट्रेट एरिया में प्रदर्शन किया गया. फैज़ाबाद में गुलाब बाड़ी से विकास भवन तक जुलूस निकाला गया.
मऊ में शहर से कलेक्ट्रेट तक प्रदर्शन किया गया तो कानपुर में राम आस्ररे पार्क में धरना और सभा हुयी. बुलंदशहर, आगरा, मेरठ, अमरोहा, शाहजहांपुर, सीतापुर, सहारनपुर, बिजनौर, गोंडा, बलरामपुर, कुशी नगर, देवरिया, गोरखपुर, बलिया, बनारस, भदोही, फतेहपुर, सोनभद्र, कौशांबी, बांदा, चित्रकूट, झांसी, औरय्या, बदायूं, पीलीभीत, हरदोई, आदि जनपदों से कार्यक्रम संपन्न होने की सूचना मिल चुकी है.
डा. गिरीश
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मंगलवार, 16 अगस्त 2016
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स्वतंत्रता दिवस मोदी जी और मैं
कल लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के भाषण पर मीडिया में खूब सराहना उंडेली गयी है. क्यों न उंडेली जाय. आखिर मीडिया भी तो उनका है जिनके श्री मोदी जी हैं. कार्पोरेट्स और धन कुबेरों के.
लेकिन श्री मोदीजी ने यह नहीं बताया कि कश्मीर में शांति बहाली के लिये उनकी सरकार क्या कदम उठाने जा रही है. सरकार कश्मीर में तनाव खत्म करने, लोगों का विश्वास जीतने और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिये क्या कर रही है? न हीं उन्होने कश्मीर में भाजपा की सहभागी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस आरोप का जबाव दिया कि कश्मीर में पूर्व का और आज का राष्ट्रीय नेत्रत्व विफल रहा है.
मोदी जी! आपने पाक अधिकृत कश्मीर, बलूचिस्तान और गिलगिट पर जुमले फेंक खूब वाह वाही बटोरी है. पर क्या इसका यह कारण नहीं कि कश्मीर और पाकिस्तान के संबंध में आपकी विफल नीति और कथित गोरक्षकों पर आपकी टिप्पणी से बौखलाये संघियों को आप पुन: प्रशन्न करना चाहते थे. और वे प्रशन्न हो भी गये हैं. मोदी जी, आपसे बेहतर कौन जानता है कि फिल्म शोले गब्बर की वजह से देखी जाती है, तीन सुपर स्टारों और एक सुपर हीरोइन की वजह से नहीं.
मोदी जी, जब आप लाल किले की प्राचीर से दहाड़ रहे थे, आपके ही राज्य गुजरात के ऊना में दलितों पर आग्नेयास्त्रों से नृशंस हमले हो रहे थे. आपके मात्र संगठन द्वारा बोयी गयी विष बेल का रस पान कर मदमत्त लोग दलितों और अल्पसंख्यकों पर अमानुषिक हमलों का सिलसिला लगातार चलाये हुये हैं लेकिन आपने अपने संबोधन में उनके लिये एक भी शब्द नहीं बोला. पीड़ितों को अन्याय से छुटकारा कैसे मिलेगा, आप मौन ही रहे. ‘मौनं स्वीकृति लक्षणम’ यह शास्त्रों में विहित है, कोई मार्क्सवादी अवस्थापना नहीं.
आपने ठीक कहा मोदी जी कि आपकी सरकार अपेक्षाओं की सरकार है, पर यह नहीं बताया कि गत 27 महीनों में आपने कौनसी अपेक्षाओं को पूरा कर दिया. कोई एक भी की हो तो बताइये जरूर. आपने मुद्रास्फीति 6 फीसदी के भीतर रखने का कीर्तिमान बनाने का दाबा किया है, पर हमें तो दाल रु.- 200 प्रति किलो मिल रही है उसका जिम्मेदार कौन? बेरोजगारों को हर वर्ष दो करोड़ रोजगार और किसानों को पचास फीसदी लाभ देने का क्या हुआ मोदी जी. गन्ना किसानों को सौ फीसद भुगतान दिलाने और हाथरस के ग्राम- फतेला में बिजली दौड़ाने के आपके दाबों की सच्चाई तो आपने अपने परमप्रिय मीडिया पर देख ही ली होगी.
और भी कुछ लिखना चाहता था. पर आपके स्वच्छता अभियान का शिकार हुआ बैठा हूँ. लखनऊ में थोडी सी वारिश होगयी है, और हमारे 22, केसरबाग स्थित कार्यालय में हर रोज की तरह जल प्लावन होगया है. मेज के पायदान पर पैर रख कर टिप टिप कर रहा हूँ. बिजली भी नहीं है, लेपटाप के स्क्रीन की रोशनी का सहारा मिला हुआ है. बिजली की रोशनी के लिये तो मान लेता हूँ कि अखिलेश बाबू जिम्मेदार हैं. पर यह जलप्लावन तो आपके ही चहेतों की देन है. लखनऊ के मेयर तो सौ प्रतिशत आपके हैं पर आपके स्वच्छता हो या कोई और अभियान. आपके ही लोग पलीता लगा रहे हैं. इससे पहले कि बैटरी भी जबाव देजाय- भवं भवानी, सहितं नमामि,
डा. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा , उत्तर प्रदेश
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at 5:16 pm | 0 comments |
ऊना में दलितों पर हमले बंद करो, हमले के दोषियों को कड़ी सजा दो: भाकपा
लखनऊ- 16, अगस्त 2016. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल गुजरात के ऊना में दलितों और अल्पसंख्यकों की संयुक्त रैली में उमडी भारी भीड़ से बौखलाये सामंती और संघी सोच वाले तत्वों द्वारा दलितों पर किये गये जानलेवा हमलों की कठोर शब्दों में निंदा की है.
भाकपा ने गुजरात और समूचे देश में अपने भयावह उत्पीड़न के खिलाफ और आर्थिक और सामाजिक आज़ादी पाने के लिये संघर्षरत दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों के आंदोलनों के प्रति पूर्ण एकजुटता प्रदर्शित की है.
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गुजरात और देश के दूसरे भागों में गौहत्या और अन्य बहानों से दलितों और अल्पसंख्यकों पर होरहे निर्मम हमलों के खिलाफ गुजरात के अहमदाबाद से यात्रा निकाली गयी थी जिसका कल स्वतंत्रता दिवस पर ऊना में समापन होना था. इस रैली में भाग लेने को दलितों के भीतर भारी आक्रोशजनित उत्साह था. अल्पसंख्यकों की इसमें शिरकत की खबरों से यह उत्साह और भी बढ गया था.
इससे पहले से ही हमलाबर सामंती और संघी तत्व पूरी तरह बौखला गये. रैली में आने से पूर्व दलितों को गांव गांव में न केवल धमकाया गया अपितु कई जगह तो उन्हें गांवों से बाहर निकलने तक नहीं दिया गया. पुलिस और सामंती तत्व मिल कर उन्हें रैली की ओर जाने वाले रास्तों पर रोक रहे थे. पूरा ऊना शहर छावनी बना दिया गया था ताकि दहशत के मारे दलित रैली में शामिल न हों.
लेकिन फिर भी रैली में जब भारी भीड़ जुट गयी तो इन्हीं तत्वों ने रैली से लौट रहे दलितों पर गोलियां बरसाईं और उनके वाहनों में आग लगा दी. सैकडों की तादाद में दलित जख्मी हुये हैं और सरकारी तथा गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. आज भी गांवों में दलितों पर हमले होने की खबर है. इतना ही नहीं इस रैली में भाग लेने पहुंचे जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और दलित नेताओं की अहमदाबाद में होने वाली प्रेस कांफ्रेंस को सरकार ने रद्द करा दिया जबकि उसकी पहले से अनुमति थी. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर शर्मनाक हमला है.
डा. गिरीश ने कहा कि यह सब उस समय होरहा है जब कल ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने दलितों पर अनाचार को लेकर कठोर टिप्पणियां की हैं और कडी कार्यवाही किये जाने पर बल दिया है. इससे श्री मोदी के गुजरात माडल और संघ के कथित हिंदू राष्ट्र का मुखौटा उतर गया है. सवाल उठता है कि ये कठोर कार्यवाही कब होगी. भाकपा का स्पष्ट मत है कि गुजरात सरकार से पीड़ितों को न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती. अतएव इस समूचे प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत न्यायधीश से कराई जानी चाहिये.
डा. गिरीश
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शुक्रवार, 12 अगस्त 2016
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दल बदल के खेल के जरिये मुद्दोंं से किनाराकशी में जुटी हैं उत्तर प्रदेश में प्रमुख पार्टियांं- भाकपा
लखनऊ-12 अगस, 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने प्रदेश में सत्ता की दौड में शामिल प्रमुख दलों पर आरोप लगाया है कि वे आगामी विधान सभा चुनाव को जनता के सवालों से भटकाने और मतदाता को एक बटन दबाने वाले रोबोट की हैसियत में पहुंचाने की कवायद में जुटे हैं. दल- बदल और पाला बदल कराने की ताजा कोशिशें इसी उद्देश्य से प्रेरित है. भाकपा इस पर कडी नजर बनाये हुये है और पूंजीवादी, सांप्रदायिक और जातिवादी दलों की इस करतूत को जनता के बीच ले जायेगी और प्रदेश के आगामी चुनाव जनता के बुनियादी सवालों पर लडे जायें इसके लिये हर संभव प्रयास करेगी.
भाकपा के राज्य सचिव मंडल ने एक बैठक कर प्रदेश के मौजूदा हालातों का संज्ञान लिया. पार्टी के प्रदेश सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में संपन्न इस बैठक में शामिल सचिवमंडल के सदस्यों में इस सवाल पर एकमत था कि गत ढाई दशक से अधिक समय से प्रदेश में सपा, बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों और सांप्रदायिक भाजपा का शासन रहा है, और इस बीच प्रदेश का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है. प्रदेश की जनता गहरे सामाजिक आर्थिक संकटों से गुजर रही है और इन दलों से उसका मोहभंग हुआ है. यही वजह है कि किसी दल को आगामी विधान सभा चुनावों में जीत का भरोसा नहीं है. अतएव इन दलों में कई किस्म के अंतर्विरोध पैदा होगये हैं और उनमें भगदड मची है.
पिछले कुछ दिनो में उत्तर प्रदेश में कई विधायकों, पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों ने जिस तरह से पाला बदल किया है इसका जनहित, राजनैतिक विचारधारा और सिध्दांतों से कोई लेना देना नहीं है अपितु यह अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ठा है और हर कोई सुरक्षित घर की तलाश में है. विधान सभा चुनावों से छह माह पहले ही चल पडे इस घृणित खेल ने दल बदल कानून को भी प्रभावहीन बना डाला है. इस आवाजाही के आने वाले दिनों में और गति पकडने की प्रबल संभावनायें हैं.
जनता खुली आंखों से देख रही है कि इस खेल में अपने को ‘औरों से अलग’ पार्टी बताने वाली भाजपा सबसे आगे है. केंद्र की उसकी सरकार की नीतियों और कारगुजारियों का पूरी तरह भंडाफोड होजाने और उसके नेताओं में भी मची भगदड के चलते उसने सारी मर्यादायें ताक पर रख दी हैं और केंद्र की सता का लाभ उठा कर उसने दल बदल को ही मुख्य औजार बना लिया है. अरुणांचल और उत्तराखंड में न्यायालय के हस्तक्षेप के चलते अपने मंसूबों को पूरा करने में विफल रही भाजपा अब उत्तर प्रदेश मे सत्ता हथियाने को बडे पैमाने पर दल बदल का खेल खेल रही है.
खराब कानून व्यवस्था और सत्ता विरोधी रुझान से हतप्रभ सपा भरपाई करने को किसी को भी पार्टी में लाने को उतारु है. उसने कई ऐसे लोगों को शामिल किया है जो सीधे आर.एस.एस. से जुडे हैं और जिन पर दंगा फसाद कराने के संगीन आरोप लगे हैं. बहुजन समाज के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव के सपनों से खिलवाड करते हुये सत्ता के लिये पूरी तरह सामंतवाद और पूंजीवाद के सामने घुटने टेक देने की बसपा की नीति अब पूरी तरह उजागर हो चुकी है और वह सर्वाधिक भगदड का शिकार बनी हुयी है. इससे उबरने को बसपा भी दल बदल के काम में जुटी है.
इस सबके जरिये प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य से जनता के मुद्दों को पूरी तरह से पृष्ठभूमि में धकेला जारहा है. भाकपा ने जनता के मुद्दों पर जन लामबंदी पर गहनता से विचार किया और तात्कालिक और दूरगामी कदमों पर चर्चा की.
डा. गिरीश ने बताया है कि आगामी 17 अगस्त को महंगाई, एफडीआई, बेरोजगारी, महंगी और दोहरी शिक्षा प्रणाली, सूखा और बाढ की तबाही, दलितॉ, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर होरहे हमलों जैसे प्रमुख सवालों पर जिला केंद्रों पर प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे. सांप्रदायिकता के खिलाफ तथा उपर्युक्त सवालों पर प्रदेश के छह वामपंथी दलों के साथ मिल कर कई क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किये जायेंगे. वाराणसी में 28 अगस्त, मुरादाबाद में 4 सितंबर तथा मथुरा में 10 सितंबर को संयुक्त सम्मेलन होंगे. प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनावों को जनता के ज्वलंत सवालों के इर्द-गिर्द रखने की हर संभव कोशिश की जायेगी, भाकपा राज्य सचिव मंडल ने संकल्प व्यक्त किया है.
डा. गिरीश
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सोमवार, 1 अगस्त 2016
at 3:55 pm | 0 comments |
महंगाई और एफडीआई; दुराचार और गुंडाराज के खिलाफ भाकपा का प्रदेश भर में आंदोलन 17 अगस्त को
लखनऊ- 1 अगस्त 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल की दो दिवसीय बैठक यहां का. फूलचंद यादव की अध्यक्षता में संपन्न हुयी.
बैठक में देश और उत्तर प्रदेश की राजनैतिक स्थिति पर रिपोर्ट राज्य सचिव डा. गिरीश और पार्टी द्वारा गत माहों में किये गये क्रियाकलापों और संगठन संबंधी रिपोर्ट सहसचिव का. अरविंदराज स्वरुप ने प्रस्तुत की. रिपोर्ट्स पर गहन चर्चा हुयी और उन्हें सर्वसम्मति से पारित किया गया. चर्चा में दो दर्जन साथियों ने भाग लिया. सहसचिव का. इम्तियाज़ अहमद पूर्व विधायक ने दिवंगत साथियों के लिये शोक प्रस्ताव रखा.
बैठक में भाकपा के केंद्रीय सचिव मंडल के सदस्य का. अतुल कुमार सिंह अंजान भी दोनों दिन उपस्थित रहे.
बैठक में उत्तर प्रदेश की जनता को हलकान कर रहे सवालों पर पार्टी द्वारा लगातार कई आंदोलन चलाने के निर्णय लिये गये. साथ ही आगामी विधान सभा चुनावों की तैयारियों को रफ्तार देने पर भी चर्चा की गयी. पार्टी की गतिविधियों को विस्तार देने हेतु आम जनता से फंड एकत्रित करने का निर्णय लिया गया तथा सांगठनिक कमजोरियों को दुरुस्त करने की योजना बनाई गयी. वामपंथी दलों के साथ चल रही संयुक्त कार्यवाहियों को और अधिक सुगठित तरीके से चलाने पर भी चर्चा हुयी.
बैठक के फैसलों की जानकारी देते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि केंद्र सरकार की कारपोरेटपरस्त और आमजन विरोधी नीतियों के स्वरुप महंगाई ने अभूतपूर्व छलांग लगायी है. हालात यह हैं कि गरीब ही नहीं मध्यम वर्ग भी जरुरी चीजों की महंगाई से तिलामिला उठा है. मुद्रास्फीति बढी है. स्वदेशी की बात करने वाले संघ और भाजपा की सरकार ने संवेदनशील रक्षा क्षेत्र से लेकर फार्मास्यूटिकल्स तक 9 क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) को इजाजत दी है जिससे देश के उद्योग, व्यापार, खेती और चिकित्सा क्षेत्र को भारी हानि होने का रास्ता खुल गया है. बेरोजगारी बढेगी और देश की पूंजी का बढा भाग विदेशों को चला जायेगा.
उन्होने कहाकि उत्तर प्रदेश सूखा से हलकान था ही अब पंगु होचुकी कानून व्यवस्था ने लोगों को स्तब्ध कर दिया है. गोवध का बहाना लेकर दलितों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जारहा है. उनको मारा पीटा जा रहा है, उनकी हत्यायें की जारही हैं और उन्हें उनके रोजगारों से बाहर धकेला जारहा है. मैनपुरी जनपद के सैफई जो प्रदेश के सत्ताधारी परिवार का विचरण क्षेत्र है, दलित दंपत्ति को कुल्हाडी से काट कर मार डाला. महिलाओं की आबरु और जान न घर में सुरक्षित है न घर के बाहर. बुलंदशहर में नेशनल हाईवे पर मां बेटी के साथ हुयी बदसलूकी की घटना ने सभी को अंदर तक हिला दिया है. भाजपा और संघ परिवार द्वारा बोये जहर और राज्य सरकार से मिली शह के चलते अल्पसंख्यकों को हर तरीके से आतंकित किया जा रहा है और प्रदेश में हर रोज कम से कम दर्जन भर सांप्रदायिक मुठभेडें हो रही हैं.
श्री राम मनोहर लोहिया जी का चौखंभा राज का सपना उनके अनुयाइयों ने दंगाराज, गुंडाराज, दुष्कर्मराज और दरोगाराज के रुप में पूरा कर दिया है.
किसानों को सूखे से हुयी हानि का मुआबजा और फसलों की बाजिव कीमत नहीं दी जारही है. बेरोजगारों को रोजगार नहीं और छात्रों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है. राशन विक्रेता दो रुपये किलो के सामान को ढाई रुपये किलो और तीन रुपये किलो के सामान को साढे तीन रुपये किलो की दर से सरे आम बेच रहे हैं. प्रति यूनिट 5 किलो राशन देने के बजाय सभी को केवल 20 किलो राशन ही दिया जा रहा है. साधन संपन्नों के राशन कार्ड बना दिये गय्रे हैं. आपूर्ति विभाग की मिली भगत से यह सब होरहा है. प्रशासन की मिली भगत से बीमा कंपनियां किसानों को चीट कर रही हैं.
अतएव राज्य काउंसिल ने कमरतोड महंगाई, मुद्रास्फीति, एफडीआई, बेरोजगारी, महंगी शिक्षा, दलितों महिलाओं अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, राशन और बीमा में भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे प्रदेश में 17 अगस्त को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है. इससे पूर्व 9 अगस्त से 14 अगस्त के बीच गांव और शहरों में पदयात्रायें और साईकिल मार्च आयोजित कर जनजाग्रति अभियान चलाया जायेगा.
भाकपा ने उपर्युक्त सवालों पर और सांप्रदायिकता के खिलाफ वामपंथी दलों द्वारा आयोजित किये जारहे संयुक्त क्षेत्रीय सम्मेलनों को सफल बनाने का संकल्प लिया. ये सम्मेलन 21 अगस्त को मुरादाबाद में, 28 अगस्त को वाराणसी में तथा 10 सितंबर को मथुरा में आयोजित किये जायेंगे. लखनऊ, मुजफ्फर नगर और फैज़ाबाद में पहले ही ऐसे सम्मेलन होचुके हैं. वाम अभियान को सुदृड बनाने को प्रदेश के वामपंथी दलों की एक बैठक 3 अगस्त को लखनऊ में आयोजित करने का निश्चय भी किया गया है.
अपने सभी अभियानों को चलाने हेतु भाकपा 1 सितंबर से 10 सितंबर तक जनता से आर्थिक सहयोग मांगने को सडकों पर उतरेगी.
भाकपा ने उत्तर प्रदेश के भावी चुनावी परिदृश्य की समीक्षा की और इस परिदृश्य में भाकपा और वामपंथ की प्रासंगिकता तथा जनहित में आगामी विधान सभा में भाकपा और वामपंथ के प्रवेश को जरूरी मानते हुये चुनावी तैयारियों की रुपरेखा तैयार की. इस उद्देश्य से जिला काउंसिलों की बैठकें अगस्त माह में की जायेंगी और चयनित विधान सभा क्षेत्रों में कार्यकर्ता बैठकें तथा आमसभा आयोजित की जायेंगी. जनता से अपील की जायेगी कि वह जाति धर्म की चहारदीवारी से बाहर आकर जनता के मुद्दों पर राजनीति करने वाली भाकपा और वामपंथ को अपनी प्राथमिकता बनायें.
पार्टी काउंसिल ने अगस्त और सितंबर माहों में शाखाओं के सम्मेलन आयोजित करने का निर्देश जिला इकाइयों को दिया है.
डा. गिरीश
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