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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

व्यापक संयुक्त किसान आन्दोलन समय की जरुरत

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष सी.के. चन्द्रप्पन ने गुंटूर में अखिल भारतीय किसान सभा (सीपीआई-एम) के 32वें सम्मेलन का अभिनंदन करते हुए भाषण दिया जो प्रस्तुत हैः
मुझे अखिल भारतीय किसान सभा के 32वें सम्मेलन का जो गुंटूर में हो रहा है, अखिल भारत किसान सभा की ओर से जिसकी स्थापना 1936 में साम्राज्यवाद-विरोधी स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हुई थी, हार्दिक एवं बिरादराना अभिनंदन करते हुए प्रसन्नता हो रही है।
जब मैं यहां हूं तो मैं सामान्य विरासत, इतिहास एवं समान ध्येय की याद करता हूं जिसके लिए हमारे दोनों संगठन प्रयास कर रहे हैं और अपने जीवन, अर्थव्यवस्था तथा भारत के भविष्य में मूलगामी परिवर्तन लाने के लिए किसानों एवं ग्रामीण जनता को लामबंद कर रहे हैं।
यह आवश्यक है कि हमारी कृषि अर्थव्यवस्था की स्थिति तथा किसानों एवं ग्रामीण जनता की दुर्दशा पर सरसरी तौर पर गौर किया जाये। यह भयानक बात है कि अभी भी किसानों द्वारा आत्महत्या का क्रम जारी है और प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन तथा आर्थिक संकट के असर के साथ इसमें और अधिक वृद्धि हो गयी है।
भारत सरकार की नव-उदार आर्थिक नीतियों के फलस्वरूप एक और तो कीमतें काफी बढ़ गयी हैं जबकि दूसरी ओर किसानों को उनके उत्पादों के लाभकारी दाम नहीं दिये जा रहे हैं। इसका अर्थ है जनता की गरीबी, अकिंचनता में भारी वृद्धि और ग्रामीण बेरोजगारी, भूख तथा उससे जुड़ी अन्य मुसीबतों में भी भारी वृद्धि। यह अफसोस की बात है कि भारतीय ग्रामांचल आज भी खराब स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं, संचार, सड़कों का अभाव है तथा नागरिक सुविधाएं नहीं के बराबर है जो अत्यधिक चिन्ता की बात है। ग्रामीण कर्जदारी तेजी से बढ़ रही है और किसान कर्जजाल में फंसे हैं।
प्रधानमंत्री अक्सरहां हमारी अर्थव्यवस्था में खासकर उनके विकास एवं जीडीपी के संबंध में कृषि के महत्व के बारे में बोलते हैं। वे कहते हैं कि भारत के आर्थिक विकास की दर यानी 9 प्रतिशत की दर से जीडीपी के विकास को बनाये रखने के लिए कृषि की 4 प्रतिशत विकास दर आवश्यक है। लेकिन आज हम कहां खड़े हैं। यह नोट करना चिन्ताजनक है कि आज कृषि की विकास दर मुश्किल से एक प्रतिशत है। यह हमारे कमजोर आर्थिक विकास की नाजुक स्थिति को ही दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन का खतरा भी जुड़ गया है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारत को खाद्य तथा पानी का गंभीर संकट झेलना होगा। एक प्रतिशत सेल्सियस की दर से तापमान में वृद्धि का अर्थ है 60 लाख टन गेहूं के उत्पादन में कमी। यह कहा गया है कि गेहूं के रेनफेड उत्पादन में 2050 तक 44 प्रतिशत की कमी होगी। यह भविष्य के बारे में एक गंभीर चेतावनी है।
यह नोट करना भी महत्वपूर्ण है कि भारत में क्या हुआ जब गत वर्ष गड़बड़ मानसून की वजह से बेमौसम बारिश हुई और सूखा पड़ा। अब हम बड़ी मात्रा में खाद्यान्न, खाद्य तेल, दाल, चीनी आदि का आयात कर रहे हैं। यह दिखलाता है कि हमारी विकासमान अर्थव्यवस्था एक अत्यंत कमजोर बुनियाद पर टिकी है।
इन सबके मद्देनजर हम अखिल भारतीय किसान के लोग यह महसूस करते हैं कि समय आ गया है कि सभी किसान संगठन एक सशक्त संयुक्त अभियान और आंदोलन शुरू करने के लिए एक सामान्य मंच पर आये और भारत सरकार से यह मांग करें कि वह कृषि क्षेत्र में बड़े आसन्न आर्थिक संकट को दूर करने के लिए तत्काल दीर्घकालिक एंव अल्पकालिक कदम उठाये।
इस संबंध में हमें कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण आधारभूत ढांचे को विकसित करने तथा बढ़ाने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज की मांग करनी चाहिए ताकि एक
निर्धारित समय में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ सके। सिंचाई,
अनुसंधान सुविधाएं, मृदासंरक्षण, उसकी क्वालिटी के रखरखाव समेत कृषि
आधारभूत ढांचे को मजबूत किया जा सके एवं उसे बढ़ाया जा सके।
आज भारत में 5 करोड़ एकड़ जमीन हैं जिसमें सिंचाई की सुविधाएं हंै और करीब 10 करोड़ एकड़ जमीन है जिसमें सिंचाई की व्यवस्था की जानी है। हमारा पहला प्रयास यह होना चाहिए कि इस जमीन में सिंचाई की व्यवस्था की जाये। इसके महत्व को तभी समझा जा सकता है यदि इस बात को महसूस किया जाये कि इस केवल 5 करोड़ एकड़ सिंचित जमीन के साथ ही हम हरित क्रांति, खाद्य सुरक्षा आदि हासिल कर सके। यदि हम इस लक्ष्य को हासिल करें और 10 करोड़ एकड़ जमीन में सिंचाई की व्यवस्था कर लें तो भारत विश्व में सबसे बड़ा ”खाद्य ताकत“ हो जायेगा। इसे कम से कम समय में हाासिल किया जाना चाहिए।
यह लक्षित किया जाना चाहिए कि विश्व में केवल एक देश ही है जहां भारत से अधिक सिंचित जमीन है वह है अमरीका। वहां 6 करेाड़ एकड़ सिंचित जमीन हैं, लेकिन यह भी नोट किया जाना चाहिए कि अमरीका में जमीन जलवायु के दबाव में चलते केवल एक ही फसल दे सकती है जबकि भारत में जमीन दो फसलें और कुछ मामलों में तीन फसलें भी दे सकती हैं। इसका यह अर्थ है कि हमारी 5 करोड़ सिंचित जमीन फसल के रूप में अमरीका की 10 करोड़ सिंचित जमीन के बराबर है।
लेकिन हमारी निम्न उत्पादकता कृषि के वैज्ञानिक तरीके के अभाव, यंत्रीकरण के अभाव, खराब प्रबंधन, खाद्य प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव, फसल की कटाई के बाद प्रबंधन और मूल्य संवृद्धि (वैल्यू एडिशन) के अभाव आदि बड़े दबाव हैं जो हमें पिछड़ा तथा गरीब रखते हैं। कृषि अनुसंधान भी नहीं है जिससे क्वालिटी उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
कृषि के क्षेत्र में भारत की तुलना में चीन की सफलता को भी हमें देखना चाहिए। भारत की तुलना में चीन में खेती की जमीन कम है। लेकिन चीन में उत्पादन तथा उत्पाद का भारत से दूना है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने आधारभूत ढांचा, कृषि के सभी पहलुओं में वैज्ञानिक तरीका विकसित किया है और सफलता हासिल की है।
भारत को भी उसी तरीके से आगे बढ़ना होगा। यदि ऐसा किया जाता है तो भारत विश्व का ”खाद्य बास्केट“ हो जायेगा।
अल्पकालिक योजना इस बात को सुनिश्चित करने के लिए प्रस्तावित की जाती है कि किसानों की हालत में तेजी से सुधार हो। उस उद्देश्य के लिए अखिल भारतीय किसान निम्नलिखित प्रस्ताव करती है:
 सभी राज्यों में मूलगामी भूमि सुधार लागू किया जाये।
 किसानों को उनके उत्पाद के लिए लाभकारी कीमत सुनिश्चित की जाये।
 एक व्यापक एवं कानूनी किसान-मैत्रीपूर्ण फसल बीमा स्कीम लागू की जाये।
 सस्ता कर्ज, उर्वरक, पानी, बिजली, बीज तथा अन्य कृषि सामान
उपलब्ध कराये जायें।
 किसानों के लिए कानूनी कल्याण स्कीमें लागू की जायें जिसमें वृद्धावस्था पेंशन की व्यवस्था हो।
 किसान कल्याण पर डा. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाये।
 किसानों की कर्जग्रस्तता का
समाधान करने के लिए राज्य तथा केन्द्र द्वारा कानूनी आयोग गठित किया जाये जैसा कि केरल में गठित किया गया है।
 किसानों को सीधे उर्वरक सब्सिडी दी जाये।
 उद्योग तथा आधारभूत छांचा विकास के लिए कृषि भूमि का अंधाधुंध
अधिग्रहण नहीं किया जाये। ऐसी स्थिति में जब भूमि का अधिग्रहण आवश्यक हो जाये, पर्याप्त मुआवजा एवं पुनर्वास सुनिश्चित किया जाये।
अखिल भारतीय किसान सभा यह महसूस करती है कि समय आ गया है कि हम इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक सामान्य मंच पर आयें जिससे भारतीय कृषि, हमारे देश के किसान एवं जनता एवं अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
मुझे पूरा विश्वास है कि आपका सम्मानित राष्ट्रीय सम्मेलन पूरी गंभीरता से इन समस्याओं पर विचार करेगा और किसान एकता एवं संयुक्त किसान आंदोलन निर्मित करने के लिए ठोस कदम उठायेगा। यह लक्षित किया जाना चाहिए कि अभी अनेक आंदोलन एवं अभियान संयुक्त रूप से हो रहे हैं। लेकिन समय की जरूरत है कि उन्हें व्यापक बनाया जाये और शक्तिशाली, व्यापक एवं संयुक्त राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलन निर्मित किया जाये। मैं एक बार फिर सम्मेलन का अभिनंदन करता हूं और उसकी सफलता की कामना करता हूं।

सी.के. चन्द्रप्पन
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