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शनिवार, 10 मई 2014
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आकाशवाणी से ९.५.१४ को प्रसारित डॉ.गिरीश का चुनाव प्रसारण.
देश के मतदाता भाइयो और बहिनों,
16वीं लोकसभा के लिए चुनाव अभियान अपने अंतिम दौर में है। देश की विभिन्न राजनैतिक पार्टियों एवं ताकतों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए आक्रामक अभियान चलाया हुआ है। हमारे देश के चुनावी इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब पूंजीपतिवर्ग खास कर कार्पाेरेट घराने सांप्रदायिक ताकतों के पक्ष में पूरी ताकत से अभियान चला रहे हैं और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये वे प्रचार माध्यमों का भरपूर स्तेमाल कर रहे हैं। कार्पाेरेट्स इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि अपना हित साधने के लिये जितना काम उन्होंने कांग्रेस से लिया है उससे कहीं ज्यादा काम वे भाजपा और उसके काल्पनिक प्रधानमंत्री से ले सकेंगे। कार्पाेरेट घराने यह भी जानते हैं कि यूपीए सरकार ने जब भी कार्पाेरेट्स के पक्ष में फैसला लिया तो विपक्ष में होने के बाबजूद भाजपा ने उसका साथ दिया।
देश की जनता निश्चित ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से आजिज आ चुकी है। अभूतपूर्व महंगाई, हर क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और रोजगारों के छिनते चले जाने, निजीकरण के चलते शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के आमजनों के लिए दुर्लभ हो जाने, डीजल, पेट्रोल और गैस एवं जनहित में अन्य वस्तुओं पर दी जाने वाली सब्सिडीज को योजनाबद्ध तरीके से घटाते जाने तथा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को विभाजित और पंगु बना डालने जैसी उसकी कारगुजारियों ने जनता की मुसीबतों को बेहद बढ़ा दिया है। अतएव लोग कांग्रेस से बेहद नाराज हैं।
आम जनता की इस नाराजगी को भुनाने के लिये ही भाजपा और संघ परिवार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वे देश की शीर्ष सत्ता पर आसीन हो कर अपने संरक्षक कार्पाेरेट घरानों के आर्थिक एवं व्यावसायिक एजेंडे तथा संघ परिवार के सांप्रदायिक एजेंडे को लागू करना चाहते हैं।
परन्तु यहाँ सवाल यह है कि क्या बीजेपी वाकई कोई ऐसा वास्तविक बदलाव ला सकती है जैसा जनता चाहती है? सवाल यह भी है कि यूपीए सरकार ने जब संसद में जनविरोधी, किसान विरोधी और मजदूर विरोधी कई कानून पारित करने की कोशिश की तो क्या कभी भाजपा ने उसे रोकने की कोशिश की? सरकार ने जब जनता की मुसीबतें बढ़ाने वाले कई फैसले लिए अथवा कार्यवाहियां कीं तो क्या कभी भाजपा ने इनको रोकने की कोशिश की? क्या भाजपा की आर्थिक नीतियाँ और दृष्टिकोण कांग्रेस से किसी भी तरह अलग हैं? इन सभी का जबाब है - नहीं, नहीं, बिलकुल नहीं। स्पष्ट है कि भाजपा देश में सांप्रदायिक विभाजन कर अपने विनाशकारी आर्थिक एजेंडे को ही मुस्तैदी से लागू करेगी और जिन समस्यायों से जनता छुटकारा पाना चाहती है, भाजपा के पास उनके समाधान का कोई रास्ता नहीं है।
देश के कई राज्यों में वामदलों से अलग कई दल हैं जो क्षेत्रीय पहचान अथवा सामाजिक न्याय के सवालों को उठाकर सत्ता में आते रहे हैं। परन्तु उनकी आर्थिक नीतियां भी कांग्रेस और भाजपा के समान हैं। राज्यों में सत्ता में आने पर ये पार्टियाँ भी आर्थिक नव उदारवाद की उन्हीं नीतियों को लागू करती हैं जिनसे खेती और कुटीर उद्योग बर्बाद होते हैं और महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कुपोषण जैसी समस्यायें पैदा होती हैं। सत्ता में भागीदारी के लिए ऐसे दल सांप्रदायिक भाजपा से भी जुड़ जाते हैं।
देश के मौजूदा परिदृश्य को सत्ता शीर्ष पर केवल पार्टियों को बदल कर नहीं बदला जा सकता। इसको आर्थिक नव उदारवाद की नीतियों को पलट कर वैकल्पिक नीतियों को लागू कर ही बदला जा सकता है। और केवल वामपंथ ही ऐसी वैकल्पिक नीतियों को पेश करता रहा है और वामपंथ के पास ही हालात बदलने का बुनियादी रास्ता है।
यह मुख्यतः वामपंथ ही है जो मजदूर वर्ग, किसानों, दस्तकारों, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों तथा पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण के शिकार सभी मेहनतकशों के हितों की रक्षा में लगातार संघर्ष करता रहा है। सदन में उसकी संख्या कुछ भी रही हो, जनता के पक्ष में नीतियां बनवाने में और संसद के बाहर संघर्षरत जनता की मांगों को बुलंद करने में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक अग्रणी ताकत के रूप में काम करती रही है।
आज की परिस्थिति का तकाजा है कि देश की संप्रभुता, जनता की रोजी-रोटी, आवास, रोजगार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के अधिकार और धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को संसद के अंदर और बाहर मजबूत करने के लिए वामपंथ और जोरदार तथा लम्बा संघर्ष चलाये। इसके लिए जरूरी है कि १6वीं लोकसभा में वामपंथ का एक मजबूत ब्लाक पहुंचे।
अतएव आप सभी से विनम्र निवेदन है कि लोकसभा चुनावों में जहां-जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार मैदान में हैं, वहां भाकपा के चुनाव निशान - ”बाल हंसिया“ के सामने वाला बटन दबा कर उन्हें भारी बहुमत से विजयी बनायें।
धन्यवाद!
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