फ़ॉलोअर
सोमवार, 31 मई 2010
at 10:08 am | 0 comments | सत्य नारायण ठाकुर
मई दिवस: तीन ऐतिहासिक घटनाओं की जयंतियां
मई दिवस के बारे में हर साल बहुत कुछ लिखा जाता है। आगे भी लिखा जाएगा। कुछ लोग मई दिवस के अनजान पन्नों की खोज में घटनाओं का अंबार लगाते हैं, तब भी वे अधूरे ही दिखते हैं। असल में श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच हुए संघषों का संपूर्ण कलैंडर बनाना कठिन है। फिर भी ऐसे प्रयत्न होते रहेंगे। लेकिन यहां जो बात ध्यान देने की है, वह यह कि औद्योगिक क्रान्ति के बाद दुनिया में पूंजी और श्रम के रूप मंे जो दो संघर्षशील विपरीत ध्रुव पैदा हो गये, उनके बीच का टकराव इतना सर्वांगीण व्यापक साबित हुआ कि इसने प्रचीन समाज रचना का आमूल-चूल हिला दिया। पूंजी और श्रम के बीच का टकराव बहुआयामी है और इसकी दिशा युगांतकारी एवं क्रांन्तिकारी है। इसलिए इसे अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग का त्यौहार कहा जाता है। मई दिवस का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह दिन दुनिया भर के मेहनतकशों को एक वर्ग के रूप में एक साथ खड़े होने की वर्ग चेतना का अहसास कराता है।मई दिवस का जन्म अकस्मात स्वतः स्फूर्त नहीं हुआ, बल्कि यह सचेत क्रान्तिकारी विचारधारा का क्रमिक सामाजिक रूपातंरण है। मई दिवस स्फुटिक स्थानिक घटनाओं का संगम नहीं है, प्रत्युत्त यह इंकलाबी तहरीक है, जो व्यवस्था परिवर्तन के जद्दोजहद के मध्य विकसित हुआ। शोषण पर आधारित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था और उसे बरकरार रखने के अन्यायपूर्ण दमन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह का आहवान करता है मई दिवस। यही नहीं कि मई दिवस विद्रोह का प्रतीक है, प्रत्युत्त यह इससे आगे बढ़कर समतामूलक शोषणविहीन न्यायपूर्ण समाज व्यवस्था स्थापित करने का संकल्प दुहराता हैंवास्तव में हर साल की पहली मई को हम तीन ऐतिहासिक घटनाओं की तीन जयंतियां एक साथ मई दिवस के रूप में मनाते हैं। पहली जयंती शिकागो के शहीदों को समर्पित है जो आठ घंटे के कार्य दिवस हासिल करने की लड़ाई में शहीद हुए। यह जयंती 1886 इस्वी के मई महीने की उन तारीखों की याद दिलाती है, जब अमेरिका में लाखों मजदूरों ने आठ घंटे के कार्य दिवस के लिए हड़तालें की थी और उन हड़तालों को कुचलने के लिए शिकांगो पुलिस ने बहशियाना गोलियां चलायी थी। तत्कालीन प्रशासन ने झूठा मुकदमा चलाकर हड़ताली नेता पार्सन्स, श्पीस, फीशर और इंगेल को फांसी दे दी तथा अन्यों को कठोर कारावास में बंद कर दिया था।सर्वविदित है कि 1886 की पहली मई को अमेरिका के अनेक शहरों में लाखों मजदूरों ने “आठ घंटे काम आठ घंटे आराम और आठ घंटे अपनी मर्जी” के नारे के साथ व्यापक हड़तालंे की थी। हड़ताल इतनी जबर्दस्त थी कि पुलिस प्रशासन ने 3 मई को बौखलाहट में मैकार्मिक कारखाना के शांतिपूर्ण हड़तालियों पर गोलियां चलाकर छः मजदूरों की हत्या कर दी और अनेकों को घायल किया। इस अनावश्यक गोलीकांड के विरोध में और मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए 4 मई को हे मार्केट स्क्वायर में शोकसभा आयोजिज की गयी। शोकसभा शान्तिपूर्ण तरीके से सम्पन्न होने को थी यकायक पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर 10 मजदूरों की हत्या कर दी और सैकड़ों को घायल। पहली मई को हड़ताल प्रारंभ हुई थी। इसलिए पहली मई को उन सभी शहीदों की शहादत को हम याद करते हैं और हक हासिल करने के लिए अनवरत संघर्ष का संकल्प लेते हैं।सेकेंड इंटरनेशनलदूसरी जयंती 1889 की 14 जुलाई से 20 जुलाई की याद दिलाती है, जब पेरिस में सेकंड इंटरनेशनल की स्थापना हुई और शिकागो के शहीदों की याद में प्रत्येक वर्ष पहली मई को दुनिया भर के मजदूरों का अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता दिवस मनाने का आहवान किया गया। यह एक क्रान्तिकारी ऐतिहासिक फैसला था, जब शिकागो की स्थानिक घटना का अंतर्राष्ट्रीयकरण हुआ। अमेरिकन लेबर फैडरेशन (एएफएल) ने इस तारिख को पहले ही शिकागो के मजदूरों की शहादत का दिवस मनाने का फैसला लिया था। लेकिन सेकंड इंटरनेशनल ने अपने प्रस्ताव द्वारा पहली मई की तारीख को अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता दिवस के लिए स्वीकार करके इसे विश्वव्यापक बना दिया। प्रस्ताव में कहा गया है: “हरेक देश के मजदूर इस प्रदर्शन को इस तरीके से मनायेंगे जो उस देश की परिस्थिति में संभव है।”सेकंड इंटरनेशनल के इस फैसले ने शिकागो की घटनाओं और एएफएल के दिवस मनाने के फैसले को गुणात्मक ऊंचाई पर पहुंचा दिया और उसे क्रान्तिकारी दिशा प्रदान की। मई दिवस इसलिए सेकंड इंटरनेशनल के इस क्रान्तिकारी फैसले की जयंती के रूप में भी याद की जाती है।1890 का प्रथम मई दिवससेकंड इंटरनेशनल के इस फैसले के मुताबिक सर्वप्रथम 1890 की पहली मई को अमेरिका और अमेरिका के बाहर दुनिया भर में खासतौर पर यूरोप में सर्वहारा वर्ग ने अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता दिवस मनाया। 1890 का यह प्रथम मई दिवस बहुत कठिन परिस्थिति में मनाया गया। फ्रांस के शासकों ने फरमान जारी किया कि जो मई दिवस में भाग लेगा उसे देश निकाला किया जाएगा। इस सरकारी फरमान की अवहेलना कर 10 लाख फ्रांसीसी मजदूरों ने 1890 की पहली मई को अनेक शहरों में जुलूस निकाले और सभाएं की। जर्मन सरकार ने उस दिन मजदूरों को गिरफ्तार करने की धमकियां दी, फिर भी लाखों जर्मन मजदूरों ने मई दिवस मनाया। लंदन हाइड पार्क में 4 मई को पांच लाख मजदूरों ने इकट्ठा होकर मई दिवस मनाया। बेलजियम, आस्ट्रिया, हंगरी, इटली, स्पेन, स्विटजरलैंड, रूमानिया, रूस और अमेरिका के अनेक शहरों में इस दिन बड़े-बड़े प्रदर्शन किये गये और सभाएं की गयीं। इसलिए हर साल का मई दिवस 1890 की पहली मई की भी जयंती है, जिस दिन ‘मई दिवस’ सही मायने में अमेरिका से बाहर निकलकर अंतर्राष्ट्रीय चरित्र ग्रहण करता है। यह निश्चय ही मामूली घटना नहीं थी कि सेकंड इंटरनेशनल के आह्वान पर दुनिया के जागृत मजदूर वर्ग ने सरकारी दमन की परवाह किये बगैर सरकारी फरमान की अवज्ञा करके 1890 की पहली मई को अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता का जबरदस्त इजहार किया। 1890 के मई दिवस का खौफ पूंजीपति वर्ग पर इतना गहरा था कि अनेक फ्रांसीसी और जर्मन पूंजीपतियों ने अपने बैंक खाते का स्थानांतरण सुरक्षित बैंकों में कराया।1890 में जब पहला मई दिवस मनाया गया तो उसे देखकर एंगेल्स भाव-विहृवल हो गये। उन्होंने लिखा: “जब हम लोगों (मार्क्स और एंगेल्स)” ने बयालिस वर्ष पहले 1848 में “दुनिया के मजदूरों एक हो” का नारा दिया था तो कुछ ही लोगों ने अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त की थी... आज यूरोपीय और इमेरिकी सर्वहारा अपनी जुझारू ताकतों को... एक झंडे के नीचे एक सेना के रूप में गोलबंद है। उन्होंने अपने साथी कार्ल मार्क्स, जिनका निधन हो चुका था, के बारे में लिखा: “क्या ही अच्छा होता यदि मार्क्स मेरी बगल में इसे अपनी आंखों से देखने के लिए जीवित होते।”इसी तारीख के 100 वर्ष पूरे होने पर दुनिया भर में मई दिवस की शतवार्षिकी 1990 की पहली मई को मनायी गयी थी। भारत में भी एटक के आह्वान पर 1990 की पहली मई को मई दिवस की शतवार्षिकी के भव्य समारोह देशभर में आयोजित किये गये थे। इसी तरह 1986 में दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग द्वारा शिकागो के शहीदों की याद में शतवार्षिकी समारोह आयोजित किया गया और 1989 में फ्रांसीसी जनगण जन फ्रांसीसी क्रान्ति की द्विसहस्राब्दी मना रहे तो अंतराष्ट्रीय मजदूर वर्ग द्वारा सेकंड इंटरनेशनल की शताब्दी मनायी गयी थी। इस तरह हर साल का मई दिवस तीन युगांतकारी ऐतिहासिक घटनाओं की जयंति का सम्मिलित प्रतीक बन गया।मजदूरवर्गीय अर्थशास्त्र की जीत1847 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 10 घंटे का कार्य दिवस का कानून पास किया। यह ब्रिटिश मजदूरों के तीस वर्षों के कठिन संघर्षों का परिणाम था। इस घटना की चर्चा कार्ल मार्क्स ने इंटरनेशनल ऐसोसिएशन, जिसे प्रथम इंटरनेशनल भी कहा जाता है, के स्थापना समारोह में दिये गये अपने भाषण में की है। 10 घंटे के कानून पास करने को मार्क्स ने “एक सिद्धांत की जीत” और एक “महान व्यावहारिक सफलता” के रूप में चित्रित किया। कार्ल मार्क्स के शब्दों में “यह पहला मौका था, जब मजदूर वर्ग के राजनीतिक अर्थशास्त्र की विजय बुर्जुआ वर्ग के राजनीतिक अर्थशास्त्र के ऊपर दर्ज हुई।” कार्लमार्क्स और फ्रेडरिक ऐंगेल्स द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव में लिखा गयाः “हम कार्य दिवस में आठ घंटे की कानूनी सीमा का प्रस्ताव करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के मजदूरों द्वारा ऐसी सीमा निर्धारित करने की मांग की जा रही है, जिसे हमने इस प्रस्ताव के जरिये व्यापक बना दिया है, और दुनिया के मजदूर वर्ग को एक समान मंच पर ला खड़ा किया है।”जनता की आवाज सुनो11 नवम्बर 1887 को पार्सस, श्पीस और इंगेल को फांसी की सजा दी गयी। फांसी के तख्ते पर झूलते हुए अलबर्ट पार्संस ने ऊंची आवाज में कहाः “ओ अमेरिका के लोगों, जनता की आवाज सुनने दो।” अगस्त श्पीस ने भी फांसी के तख्ते को चूमते हुए कहाः “तुम मेरी आवाज घोंट सकते हो, किंतु एक दिन ऐसा आएगा, जब हमारी यह चुप्पी (फांसी) ज्यादा ताकतवर होगी... इस आवाज से ज्यादा, जिसे आज तुम घोंट रहेे हो।” जाहिर है इस घटना के तीन साल के अंदर 1890 में जब पहली मर्तबा अमेरिका समेत संपूर्ण यूरोप में मई दिवस मनाया गया तो वह “आवाज”, जिसे पहले घोंटकर चुप किया गया था, दुनियाभर में ज्यादा मुखर और प्रखर सुनाई दे रही थी। इसलिए काम का घंटा कम करने का संघर्ष बुनियादी तौर पर पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक अर्थशास्त्र के विरुद्ध मजदूर वर्ग की संगठित आवाज है।अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने स्वीकार किया है कि अनौपचारिक मजदूरों की तादाद आज बेशुमार बढ़ रही है। अनौपचारिक रोजगार का मतलब है, अधिकतम समय काम, किंतु कम से कम पारिश्रमिक। असुरक्षित कार्यदशा, किंतु कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। कैजुअल रोजगार, किंतु लगातार काम मिलने की गारंटी नहीं। स्थायी प्रकृति के कामों का ठेकाकरण/ आउटसोर्सिंग आदि इत्यादि। ये सब कार्पोरेट मुनाफा बढ़ाने के ताजा उपाय हैं। पूंजीपति वर्ग का यह नया पैंतरा है। वैज्ञानिक तकनीकी क्रान्ति की उपलब्धियों को पूंजीपति वर्ग ने हथिया लिया है। फलस्वरूप शोषण का परिमाण आज सैंकड़ों गुना बढ़ गया है।इसलिए यह अकारण और अकस्मात नहीं था कि कार्ल मार्क्स ने इंटरनेशनल वर्किंगमेंस ऐसोसिएशन के स्थापना सम्मेलन में काम के घंटे कम करने के संघर्ष को पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक अर्थशास्त्र के ऊपर मजदूरवर्ग के राजनीतिक अर्थशास्त्र की जीत बताया था।
- सत्य नारायण ठाकुर
- सत्य नारायण ठाकुर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CPI Condemns Attack on Kanhaiya Kumar - *The National Secretariat of the Communist Party of India issued the following statement to the Press:* The National Secretariat of Communist Party of I...6 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...8 वर्ष पहले
-
रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा - लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम ...8 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
वामपंथी एवं जनवादी दलों का राज्य स्तरीय ‘ सम्मिलन ’ संपन्न बुलडोजरवाद , पुलिस उत्पीड़न , वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हमले , संविधान और लो...
-
# सरकारी स्तर पर धार्मिक क्रियायेँ आयोजित कराने संबंधी मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश के आदेश को तत्काल निरस्त किया जाये # सर्वोच्च न्यायालय के...
-
उत्तर प्रदेश में निरंतर सामने आ रहे भ्रष्टाचार के मामलों पर केंद्र और राज्य सरकार की चुप्पी हैरान करने वाली भाकपा ने घोटालों की ज़िम्मेदा...
-
हापुड़ में फैक्ट्री मजदूरों की दर्दनाक मौत पर भाकपा ने गहरी वेदना प्रकट की भाकपा की मेरठ मंडल की इकाइयों को आवश्यक कदम उठाने और 8 जून को ...
-
‘ अग्निपथ ’ योजना को फौरन रद्द किया जाये , रिक्तियों को मौजूदा प्रक्रिया से तत्काल भरा जाये: भाकपा लखनऊ- 17 जून 2022 , भारतीय कम्युनि...
-
साम्राज्यवाद का दुःस्वप्नः क्यूबा और फिदेल आइजनहावर, कैनेडी, निक्सन, जिमी कार्टर, जानसन, फोर्ड, रीगन, बड़े बुश औरछोटे बुश, बिल क्लिंटन और अब ...
-
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2019- आर्थिक और अन्य सहयोग हेतु भाकपा राज्य काउंसिल की अपील। प्रिय मित्रो , उत्तर प्रदेश विधान सभा क...
-
The Central Secretariat of the Communist Party of India (CPI) has issued the following statement to the press: The Communist Party of India ...
-
इंडो एशियन न्यूज़ ने आज छापा है कि : "Waving cricket bats, hundreds of Congress activists gave a roaring welcome to former minister of ...
-
रेल मंत्री और उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री की बर्खास्तगी तथा घटनाओं की न्यायिक जांच आदि मांगों को लेकर प्रदेश भर में सड़कों पर उतरे वा...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें