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शनिवार, 3 जुलाई 2010
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कौंसिल बैठक 1-2 जुलाई 2010 द्वारा पारित
राष्ट्रीय परिदृश्य
पार्टी की पिछली राज्य कौंसिल की बैठक (23 जनवरी 2010) के बाद से उत्तर प्रदेश, देश और दुनियां में कई राजनैतिक घटनाक्रम हुये हैं जो राजनीति की दिशा बदलने वाले हैं।
लोकसभा में पूर्ण बहुमत न होने के कारण संप्रग-2 सरकार लगातार संकटग्रस्त है। यह बाहर से समर्थन दे रहे अपने समर्थकों के ब्लैकमेल का शिकार है। इसके समर्थक दलों के मंत्रियों सहित तमाम मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
मुख्य विपक्षी दल भाजपा यद्यपि विरोध प्रदर्शन करती रहती है लेकिन नीतियों के मामले में वह संप्रग-2 से अलग नहीं है। राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा जातिवादी पूंजीवादी दल सभी के सभी भूमंडलीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के फार्मूले पर ही काम कर रहे हैं। इससे राजनैतिक संकट बढ़ा है।
वामपंथ यद्यपि आर्थिक नीतियों खासकर आसमान छूती महंगाई के विरूद्ध एक के बाद एक अभियान चलाता रहा है लेकिन अभी तक पूंजीवादी दलों का विकल्प नहीं बन सका है। 12 मार्च का दिल्ली मार्च और 8 अप्रैल का जेल भरो अभियान वामपंथ के अपने अभियान थे जो बेहद सफल रहे। 27 अप्रैल की आम हड़ताल में अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने भी भाग लिया और वह भी बेहद सफल रही। लेकिन सपा एवं राजद ने लोकसभा में महंगाई पर लाये गये कटौती प्रस्ताव पर सरकार का साथ देकर इस अभियान की उपलब्धि को सीमित कर दिया। बसपा ने तो सीधे ही सरकार का साथ दिया। चर्चा है कि इन दलों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का लाभ सरकार ने उठाया और उन पर दवाब बनाया। इन दलों के अवसरवादी रवैये के चलते जनता को राहत दिलाना कठिन हो गया है। यदि इन दलों ने कटौती प्रस्ताव पर सरकार का साथ नहीं दिया होता तो शायद केन्द्र सरकार की पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन और रसोई गैस के दाम दोबारा बढ़ाने की हिम्मत न होती। इनके अवसरवादी रूख को ध्यान में रखते हुए ही हमें आगे की योजनायें निर्धारित करनी होंगी।
विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने भारत सहित तमाम विकासशील देशों पर बुरी तरह प्रभाव डाला। लेकिन भारत पर इसका प्रभाव इसलिये कम पड़ा कि वामपंथ और भाकपा ने सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को उस गति से नहीं होने दिया जिस गति से सरकार करना चाहती थी। आसमान छूती मंहगाई इस संकट के सबसे घिनौने रूप में सामने आई है। केन्द्र सरकार द्वारा अनाजों एवं अन्य जरूरी वस्तुओं के वायदा कारोबार को इजाजत देने तथा व्यापारीपरस्त नीतियां अपनाने से महंगाई बढ़ी है। जमाखोरी और कालाबाजारी बेरोकटोक चलती रही है। मनमोहन सरकार इस सबको रोकने की कोई इच्छा नहीं रखती है। अभी-अभी पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर और केरोसिन की कीमतों में भारी वृद्धि करके महंगाई की छलांग लगवाने का रास्ता तैयार कर दिया है। अतएव हमें और सघन तथा व्यापक आन्दोलन करना होगा।
संप्रग-2 सरकार का सवा साल का कार्यकाल उथलपुथल भरा रहा है। दौलत पैदा हो रही है लेकिन वह चन्द हाथों में सिमटती जा रही है। अमीरी और गरीबी के बीच फासला लगातार बढ़ रहा है। महंगाई को रोक पाने में विफलता के अतिरिक्त सरकार विदेशी और आर्थिक नीतियों में अमरीकी निर्देशों पर लगातार बदलाव कर रही है। आंतरिक सुरक्षा के मामले में वह विफल है। आतंकवाद और माओवादी गतिविधियां बढ़ रही हैं। संप्रग-2 में शामिल दलों और मंत्रियों के बीच स्वार्थपरक टकराव चल रहे हैं। आईपीएल विवाद, उसके कई मंत्रियों के अशोभनीय व्यवहार के हिचकोले इस सरकार को लगते रहे हैं। रेल दुर्घटनाओं ने जान-माल को भारी हानि पहुंचाई है।
उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार जिसमें आईपीएल तथा जी-2 स्पेक्ट्रम घोटाले शामिल हैं, संप्रग-2 सरकार को उसकी कथनी से बहुत दूर ले जा खड़ा करते हैं। इसी कारण मनमोहन सरकार ने सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्तावित किया है। भ्रष्टाचार रक्षातंत्र तथा न्यायपालिका तक में घुस गया है।
शिक्षा के अधिकार, महिला आरक्षण एवं खाद्य सुरक्षा बिल के मामले में सरकार का रवैया आंखो में धूल झोंकने वाला साबित हो रहा है। भोपाल गैस त्रासदी के मामले में न्यायालय के फैसले के बाद की परिस्थितियों ने परमाणु जिम्मेदारी बिल के बारे में सरकार के दृष्टिकोण को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इन बिलों को जनहित की दृष्टि से दुरूस्त कराने की जरूरत है।
नेशनल स्टूडेन्ट्स कौंसिल आफ नागालैण्उ (एनएससीएन आईएम) के नेता मुइवा को मणिपुर स्थित उसके जन्मग्राम में जाने की केन्द्र सरकार ने इजाजत दे दी। मुइवा ने इस अवसर का लाभ अपने ‘स्वतंत्र महान नागालैण्ड’ आन्दोलन को फैलाने को उठाने की कोशिश की। मणिपुर की जनता एवं भाकपा सहित कई राजनैतिक दलों की मांग पर मणिपुर सरकार ने इस यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया। नागा संगठनों ने प्रतिक्रिया में मणिपुर जाने वाले दो राष्ट्रीय मार्गों को बन्द कर दिया। दो महीने तक मणिपुर की जनता ने भारी यातनाओं को झेला। केन्द्र ने इस बैरीकेड को हटाने में बेहद देरी की। विघटनकारी शक्तियों के प्रति केन्द्र के ढुलमुल और अवसरवादी रवैये से राष्ट्रीय एकता की नींव कमजोर पड़ती है।
आंतरिक आर्थिक नीतियों की ही भांति संप्रग-2 सरकार विदेश नीति में लगातार अमरीकापरस्त रूख अपना रही है जो हमारे राष्ट्रीय हितों के विपरीत है। यह हमारी विकासषील देषों के साथ एकजुटता एवं गुटनिरपेक्षता की नीति को पलटने जैसा है।
सामाजिक-आर्थिक शोषण से पैदा हुई अमीरी-गरीबी की खाई से उत्पन्न असंतोष को भुनाकर माओवादियों ने आदिवासियों, दलितों एवं कमजोरों के बीच जगह बना ली है। लेकिन स्पष्ट राजनैतिक दृष्टिकोण न होने के कारण अब वे आम जनता यहां तक कि रेलों पर हमले कर रहे हैं। केन्द्र सरकार यद्यपि मानती है कि यह खाली कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है लेकिन वह कानून-व्यवस्था के तौर पर ही इससे निपटने में लगी है। इस अभियान में सेना को लगाने की बातें भी हो रही हैं जो हमारी सेना की प्रतिष्ठा के लिए नकारात्मक साबित होगा। भ्रमित लोगों से वार्ता करने, माओवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सामाजिक आर्थिक पैकेज देने, वहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की घुसपैठ रोकने तथा विकास योजनाओं को ठीक से क्रियान्वित करने की जरूरत है।
पश्चिम बंगाल में पहले पंचायत, फिर लोकसभा एवं अब नगर निकायों के चुनावों में वामपंथ की करारी हार हुई है। वह भी तब जब तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। यद्यपि वहां वाम मोर्चे ने आमजनों के लिए बहुत कुछ किया। लेकिन आज वह भूमि अधिग्रहण, नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के अपनाने तथा जनता शासन की जगह अफसरशाही तरीके से राज चलाने के कारण किसानों, मजदूरों, अल्पसंख्यकों के बीच पहले की तरह लोकप्रिय नहीं रहा। वहां वामपंथ में जनहितैषी सुधार लाने और भाकपा की स्वतंत्र छवि को स्थापित करने की जरूरत है।
महंगाई, भूमि अधिग्रहण/भूमि सुधार, भ्रष्टाचार, गरीबी, रोजगार, स्वच्छ जल, शिक्षा एवं भारतीय हितों के अनुकूल विदेश नीति जैसे सवालों पर एक कार्यक्रम तैयार कर सघन और व्यापक आन्दोलन ही वामपंथ को मजबूत करेंगे और साम्प्रदायिक भाजपा को परिस्थतियों का लाभ उठाने से रोकेंगे। क्षेत्रीय और जातिवादी दलों, जो समय-समय पर राजनैतिक पलटी मारने को अभिशप्त हैं, हमें बहुत सावधानी के साथ अंतर्क्रिया करनी चाहिये ताकि उनकी अवसरवादी छवि का ग्रहण हमारे ऊपर चस्पा न हो। मौजूदा वामपंथ को बेहतर वामपंथ बनाने को भाकपा को अहम एवं सकारात्मक भूमिका अदा करनी होगी।
उत्तर प्रदेश
निजीकरण की राह पर प्रदेष सरकार:
गत राज्य कौंसिल बैठक में पारित रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के सम्बंध में कहा गया था - ”उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली बसपा की सरकार है जो राजनैतिक दृष्टि से संप्रग-2सरकार के विपक्ष में खड़ी है। परन्तु यह सरकार भी विकास के पूंजीवादी मार्ग को अपनाते हुए भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की राह पर चल रही है। लेकिन सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक उथल-पुथल के इस दौर में वह अपने मत आधार (दलित, अति पिछड़े और आदिवासी) को अपने साथ जोड़े रखने को कई कदम उठाती रहती है।“
आज भी प्रदेश सरकार इसी रास्ते पर चल रही है।
सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण लगातार करने की कोशिशें जारी हैं। आगरा की विद्युत वितरण व्यवस्था को निजी कंपनी टोरंट को सौंप दिया गया। पार्टी ने इसका कड़ा विरोध किया। अब मुख्यमंत्री ने धमकी दी है कि कानपुर आदि शहरों के बिजली वितरण को निजी कंपनियों को सौंप दिया जायेगा। वैसे उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन की नई परियोजनाओं के निर्माण से विद्युत वितरण तक के कई कामों में ठेकेदारी प्रथा और निजीकरण का बोलबाला है। विभागीय भ्रष्टाचार के कारण ही 30 करोड़ रूपये की लागत से बनी परीछा परियोजना की नवनिर्मित चिमनी भरभरा कर गिर गयी। इससे पूर्व दो बार हरदुआगंज की निर्माणाधीन परियोजनायें गिरकर नष्ट हो चुकी हैं। टोरन्ट द्वारा अधिग्रहण के बाद से आगरा की विद्युत व्यवस्था लगभग ध्वस्त पड़ी है। स्पष्ट है कि समस्या का समाधान सुधार है निजीकरण नहीं।
प्रदेश में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा पंसारी की दुकान बन गयी है। निजी स्कूलों और अनुदानित विद्यालयों में खोले जा रहे स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों के शुल्क इतने अधिक हैं कि गरीब और औसत आमदनी वाले परिवार को शिक्षा पाना बेहद कठिन हो गया है।
राज्य सरकार की बदनीयती का शिकार स्वास्थ्य सेवायें भी हो रही हैं। गरीबों को महंगे नर्सिंग होम्स में इलाज कराना बेहद कठिन है। आज भी वह राजकीय चिकित्सालयों में ही इलाज कराते हैं। सरकार ने उनको भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संचालित बड़े अस्पतालों को सौंपने की चेष्टा की। बस्ती, इलाहाबाद, कानपुर और फिरोजाबाद के चार जिला अस्पतालों तथा इन जिलों में मौजूद सैकड़ों प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी अस्पतालों को दे डालने की योजना बना ली थी।
प्रदेश भाकपा ने इसका पुरजोर विरोध किया और सरकार को अपना फैसला वापस लेने को मजबूर होना पड़ा।
14 चीनी मिलों को बेचने की तैयारी चल रही है। सड़क निर्माण, भवन निर्माण सभी में निजी क्षेत्र को भारी भागीदारी दी जा रही है। राज्य की अर्थव्यवस्था को निजीकरण के जरिये चूसा जा रहा है।
नगर निकाय चुनावों का गैर-राजनीतीकरण:
अपने दलीय हितों को पूरा करने हेतु राज्य सरकार ने नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर होने की प्रक्रिया को उलट दिया। बसपा सरकार को डर है कि जिन जनविरोधी नीतियों पर वह चल रही है, उनके चलते आम जनता निकाय चुनावों में उसे शिकस्त दे देगी। 2012 के भावी विधान सभा चुनावों में इसका विपरीत असर पड़ेगा। उप चुनावों में 16 में से 13 विधान सभा सीटों पर जीतने वाली बसपा इसी कारण से अब किसी मध्यावधि चुनावों में हिस्सा न लने की घोषणा कर चुकी है। भाकपा तथा कई अन्य दलों ने लोकतंत्र का हनन करने वाली इस कार्यवाही का विरोध किया लेकिन बसपा प्रमुख आज भी इस कार्यवाही को उचित ठहरा कर हठवादिता का परिचय दे रही हैं।
कृषि भूमि का अधिग्रहण-दर-अधिग्रहण:
भूमि सुधार का सवाल सरकार की प्रतिकूल नीतियों का शिकार बन चुका है। आगरा, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा जनपदों में 850 ग्रामों की जमीन जमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के लिए अधिसूचित कर दी गई। भाकपा, लोकदल के विरोध के कारण फिलहाल सरकार आगे कदम नहीं बढ़ा पा रही है।
लखनऊ के चारों ओर आमों के हरे-भरे बागों से आच्छादित फलपट्टी की भूमि को अधिग्रहण करने की योजना को भी भाकपा और फलपट्टी किसान वेलफेयर एसोसिएशन के संयुक्त आन्दोलन के जरिये फिलहाल विफल बना दिया गया है। अब लखनऊ के कचरे को डम्प करने के नाम पर दशहरी आम के उद्गमस्थल दशहरी गांव एवं अन्य चार गांवों की 88 एकड़ जमीन को अधिगृहीत करने की योजना के खिलाफ भी आन्दोलन छेड़ा गया है। आन्दोलन का बिगुल बजाते हुए 250 वर्ष पुराने दशहरी आम के पितृ वृक्ष पर भाकपा का ध्वज फहरा दिया गया है। 6 जुलाई को वहां संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्षन होगा।
दादरी परियोजना में उच्च न्यायालय द्वारा किसानों को मुआवजा लौटाकर जमीन वापस पाने का फैसला होने के बावजूद किसान अभी मुआवजा लौटा नहीं पाये हैं। उन पर आन्दोलन से जुड़े मुकदमें भी चल रहे हैं। भाकपा ने वहां भी हस्तक्षेप किया है। मुआवजा वापसी की अवधि 3 माह बढ़ाने और मुकदमें वापस लेने की मांग को लेकर आन्दोलनरत किसानों की रैली 25 जून को धौलाना कस्बे में की गई जिसमें भाकपा महासचिव का. ए.बी.बर्धन और राज्य सचिव डा. गिरीश और गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद तथा मेरठ के भाकपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भाग लिया।
हाईवे, कूड़ाघर अथवा अन्य निर्माणों के नाम पर उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण का अन्यत्र भी विरोध किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को बदले जाने की आवाज भी उठाई जा रही है। गैरकानूनी तरीके से संचित जमीनों के वितरण की दिशा में भी राज्य सरकार काम नहीं कर रही है।
पेट्रो-पदार्थों की मूल्यवृद्धि और बसपा सरकार:
केन्द्र सरकार द्वारा दोबारा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन तथा रसोई गैस के दामों में की गई भारी वृद्धि से महंगाई की मार से पीड़ित प्रदेश की जनता और भी तबाह होने को है। राज्य सरकार ने इन वस्तुओं पर लगने वाले राज्य के करों को यदि घटा दिया होता तो कुछ राहत अवश्य मिलती। जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटखोरी सूबे में बेधड़क जारी है। बसपा ने महंगाई के खिलाफ कटौती प्रस्ताव का विरोध कर साबित कर दिया है कि वह जनता को महंगाई से निजात दिलाने की इच्छा शक्ति नहीं रखती। राशन प्रणाली भी प्रदेश में अस्तव्यस्त पड़ी है।
निष्कर्ष:
भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था की बदतर स्थिति, अति अल्प विद्युत आपूर्ति, खादों का अभाव, नहर बंबों में पानी न आना, पुलिस दमन, कमजोर तबकों के बेहद उत्पीड़न आदि से जनता बेहद परेशान है। वह एक विकल्प चाहती है लेकिन सक्षम और बेहतर विकल्प का निर्माण नहीं हो पा रहा है।
प्रदेश में भाकपा ने स्वतंत्र रूप से लगातार आन्दोलन चलाये हैं। कई आन्दोलन अन्य वामपंथी दलों के साथ चलाये हैं। 27 अप्रैल के भारत बन्द में अन्य दल भी साथ थे। इससे प्रदेश में भाकपा की प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है और पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ा है। यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है।
कई जिलों में पार्टी संगठन पर कार्यशालायें एवं पार्टी स्कूल आयोजित किये गये हैं परन्तु मूल तौर पर यह दौर आन्दोलनकारी गतिविधियों का ही रहा है।
इन आन्दोलनों में हम आम जनता को उतारने में अभी कामयाब नहीं हुये हैं। इसके लिए हमें जनता के बीच पहुंचना होगा। जन संगठनों की सक्रियता और विकास इस काम में मददगार होंगे। पार्टी को स्वतंत्र रूप से गतिविधियां जारी रखनी होंगी और वाम दलों के साथ समय-समय पर गतिविधियां चलानी होंगी। जातिवादी दलों, साम्प्रदायिक शक्तियों और आर्थिक आपात्काल खड़ा कर रही शक्तियों के चंगुल से जनता को मुक्त करा अपने साथ लाना होगा। तदनुसार हमें भावी राजनैतिक और सांगठनिक कदम निर्धारित करने होंगे।
भविष्य की कार्यवाहियां
केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और रसाई गैस की कीमतों को वापस लेने, आसमान छूती महंगाई पर रोक लगाने तथा खाद्य सुरक्षा प्रदान करने हेतु अभियान।
इस विषय में 1 जुलाई को चारों वामदलों के संयुक्त कन्वेंशन में लिये गये फैसलों एवं 5 जुलाई के प्रस्तावित भारत बंद को मुस्तैदी से सफल बनाने की पुरजोर कोशिश।
विकास हो मगर उपजाऊ जमीनों का अधिग्रहण नहीं, भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को बदला जाये। इस अभियान को और जोरदार तरीके से चलाना।
सीलिंग की जमीन, कालेधन के बल पर बनाये बड़े फार्म हाउसों की जमीन, बंद उद्योगों की वह जमीन जो किसानों से अधिगृहीत की गई थी, का लेखा-जोखा तैयार कराने को प्रदेश में एक भूमि सुधार आयोग गठन करने की मांग को उठाना। इससे भूमिहीनों में भूमि वितरण का रास्ता खुलेगा।
सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण रोके जाने को अभियान।
नगर निकाय के त्रिस्तरीय चुनाव दलीय आधार पर कराने की मांग को अभियान।
केन्द्र एवं राज्य सरकार की जनहितैषी योजनाओं को अमल में लाने को अभियान।
भ्रष्टाचार एवं कानून व्यवस्था की स्थिति का पर्दाफाश करना।
सांगठनिक
राजनैतिक रिपोर्टिंग के लिये जिला कौंसिलों की विस्तारित बैठक/जनरल बॉडी बैठकें बुलाना।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों/नगर निकायों के चुनावों में व्यापक भागीदारी की सांगठनिक तैयारी।
केन्द्र एवं राज्य के अखबारों के ग्राहक बनाना।
जन संगठनों की सक्रियता और विस्तार विभिन्न विभागों की बैठकें बुलाना।
पार्टी में महिला, नौजवान, दलित एवं अल्पसंख्यकों की भर्ती पर विशेष जोर।
प्रशिक्षण शिविर और कार्यशालायें अधिक से अधिक जिलों में लगाना।
धन एवं अन्न संग्रह अभियान को गंभीरता से लेना और उसे नियमित तौर पर चलाना।
पार्टी की पिछली राज्य कौंसिल की बैठक (23 जनवरी 2010) के बाद से उत्तर प्रदेश, देश और दुनियां में कई राजनैतिक घटनाक्रम हुये हैं जो राजनीति की दिशा बदलने वाले हैं।
लोकसभा में पूर्ण बहुमत न होने के कारण संप्रग-2 सरकार लगातार संकटग्रस्त है। यह बाहर से समर्थन दे रहे अपने समर्थकों के ब्लैकमेल का शिकार है। इसके समर्थक दलों के मंत्रियों सहित तमाम मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
मुख्य विपक्षी दल भाजपा यद्यपि विरोध प्रदर्शन करती रहती है लेकिन नीतियों के मामले में वह संप्रग-2 से अलग नहीं है। राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा जातिवादी पूंजीवादी दल सभी के सभी भूमंडलीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के फार्मूले पर ही काम कर रहे हैं। इससे राजनैतिक संकट बढ़ा है।
वामपंथ यद्यपि आर्थिक नीतियों खासकर आसमान छूती महंगाई के विरूद्ध एक के बाद एक अभियान चलाता रहा है लेकिन अभी तक पूंजीवादी दलों का विकल्प नहीं बन सका है। 12 मार्च का दिल्ली मार्च और 8 अप्रैल का जेल भरो अभियान वामपंथ के अपने अभियान थे जो बेहद सफल रहे। 27 अप्रैल की आम हड़ताल में अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने भी भाग लिया और वह भी बेहद सफल रही। लेकिन सपा एवं राजद ने लोकसभा में महंगाई पर लाये गये कटौती प्रस्ताव पर सरकार का साथ देकर इस अभियान की उपलब्धि को सीमित कर दिया। बसपा ने तो सीधे ही सरकार का साथ दिया। चर्चा है कि इन दलों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का लाभ सरकार ने उठाया और उन पर दवाब बनाया। इन दलों के अवसरवादी रवैये के चलते जनता को राहत दिलाना कठिन हो गया है। यदि इन दलों ने कटौती प्रस्ताव पर सरकार का साथ नहीं दिया होता तो शायद केन्द्र सरकार की पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन और रसोई गैस के दाम दोबारा बढ़ाने की हिम्मत न होती। इनके अवसरवादी रूख को ध्यान में रखते हुए ही हमें आगे की योजनायें निर्धारित करनी होंगी।
विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने भारत सहित तमाम विकासशील देशों पर बुरी तरह प्रभाव डाला। लेकिन भारत पर इसका प्रभाव इसलिये कम पड़ा कि वामपंथ और भाकपा ने सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को उस गति से नहीं होने दिया जिस गति से सरकार करना चाहती थी। आसमान छूती मंहगाई इस संकट के सबसे घिनौने रूप में सामने आई है। केन्द्र सरकार द्वारा अनाजों एवं अन्य जरूरी वस्तुओं के वायदा कारोबार को इजाजत देने तथा व्यापारीपरस्त नीतियां अपनाने से महंगाई बढ़ी है। जमाखोरी और कालाबाजारी बेरोकटोक चलती रही है। मनमोहन सरकार इस सबको रोकने की कोई इच्छा नहीं रखती है। अभी-अभी पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर और केरोसिन की कीमतों में भारी वृद्धि करके महंगाई की छलांग लगवाने का रास्ता तैयार कर दिया है। अतएव हमें और सघन तथा व्यापक आन्दोलन करना होगा।
संप्रग-2 सरकार का सवा साल का कार्यकाल उथलपुथल भरा रहा है। दौलत पैदा हो रही है लेकिन वह चन्द हाथों में सिमटती जा रही है। अमीरी और गरीबी के बीच फासला लगातार बढ़ रहा है। महंगाई को रोक पाने में विफलता के अतिरिक्त सरकार विदेशी और आर्थिक नीतियों में अमरीकी निर्देशों पर लगातार बदलाव कर रही है। आंतरिक सुरक्षा के मामले में वह विफल है। आतंकवाद और माओवादी गतिविधियां बढ़ रही हैं। संप्रग-2 में शामिल दलों और मंत्रियों के बीच स्वार्थपरक टकराव चल रहे हैं। आईपीएल विवाद, उसके कई मंत्रियों के अशोभनीय व्यवहार के हिचकोले इस सरकार को लगते रहे हैं। रेल दुर्घटनाओं ने जान-माल को भारी हानि पहुंचाई है।
उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार जिसमें आईपीएल तथा जी-2 स्पेक्ट्रम घोटाले शामिल हैं, संप्रग-2 सरकार को उसकी कथनी से बहुत दूर ले जा खड़ा करते हैं। इसी कारण मनमोहन सरकार ने सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्तावित किया है। भ्रष्टाचार रक्षातंत्र तथा न्यायपालिका तक में घुस गया है।
शिक्षा के अधिकार, महिला आरक्षण एवं खाद्य सुरक्षा बिल के मामले में सरकार का रवैया आंखो में धूल झोंकने वाला साबित हो रहा है। भोपाल गैस त्रासदी के मामले में न्यायालय के फैसले के बाद की परिस्थितियों ने परमाणु जिम्मेदारी बिल के बारे में सरकार के दृष्टिकोण को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इन बिलों को जनहित की दृष्टि से दुरूस्त कराने की जरूरत है।
नेशनल स्टूडेन्ट्स कौंसिल आफ नागालैण्उ (एनएससीएन आईएम) के नेता मुइवा को मणिपुर स्थित उसके जन्मग्राम में जाने की केन्द्र सरकार ने इजाजत दे दी। मुइवा ने इस अवसर का लाभ अपने ‘स्वतंत्र महान नागालैण्ड’ आन्दोलन को फैलाने को उठाने की कोशिश की। मणिपुर की जनता एवं भाकपा सहित कई राजनैतिक दलों की मांग पर मणिपुर सरकार ने इस यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया। नागा संगठनों ने प्रतिक्रिया में मणिपुर जाने वाले दो राष्ट्रीय मार्गों को बन्द कर दिया। दो महीने तक मणिपुर की जनता ने भारी यातनाओं को झेला। केन्द्र ने इस बैरीकेड को हटाने में बेहद देरी की। विघटनकारी शक्तियों के प्रति केन्द्र के ढुलमुल और अवसरवादी रवैये से राष्ट्रीय एकता की नींव कमजोर पड़ती है।
आंतरिक आर्थिक नीतियों की ही भांति संप्रग-2 सरकार विदेश नीति में लगातार अमरीकापरस्त रूख अपना रही है जो हमारे राष्ट्रीय हितों के विपरीत है। यह हमारी विकासषील देषों के साथ एकजुटता एवं गुटनिरपेक्षता की नीति को पलटने जैसा है।
सामाजिक-आर्थिक शोषण से पैदा हुई अमीरी-गरीबी की खाई से उत्पन्न असंतोष को भुनाकर माओवादियों ने आदिवासियों, दलितों एवं कमजोरों के बीच जगह बना ली है। लेकिन स्पष्ट राजनैतिक दृष्टिकोण न होने के कारण अब वे आम जनता यहां तक कि रेलों पर हमले कर रहे हैं। केन्द्र सरकार यद्यपि मानती है कि यह खाली कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है लेकिन वह कानून-व्यवस्था के तौर पर ही इससे निपटने में लगी है। इस अभियान में सेना को लगाने की बातें भी हो रही हैं जो हमारी सेना की प्रतिष्ठा के लिए नकारात्मक साबित होगा। भ्रमित लोगों से वार्ता करने, माओवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सामाजिक आर्थिक पैकेज देने, वहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की घुसपैठ रोकने तथा विकास योजनाओं को ठीक से क्रियान्वित करने की जरूरत है।
पश्चिम बंगाल में पहले पंचायत, फिर लोकसभा एवं अब नगर निकायों के चुनावों में वामपंथ की करारी हार हुई है। वह भी तब जब तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। यद्यपि वहां वाम मोर्चे ने आमजनों के लिए बहुत कुछ किया। लेकिन आज वह भूमि अधिग्रहण, नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के अपनाने तथा जनता शासन की जगह अफसरशाही तरीके से राज चलाने के कारण किसानों, मजदूरों, अल्पसंख्यकों के बीच पहले की तरह लोकप्रिय नहीं रहा। वहां वामपंथ में जनहितैषी सुधार लाने और भाकपा की स्वतंत्र छवि को स्थापित करने की जरूरत है।
महंगाई, भूमि अधिग्रहण/भूमि सुधार, भ्रष्टाचार, गरीबी, रोजगार, स्वच्छ जल, शिक्षा एवं भारतीय हितों के अनुकूल विदेश नीति जैसे सवालों पर एक कार्यक्रम तैयार कर सघन और व्यापक आन्दोलन ही वामपंथ को मजबूत करेंगे और साम्प्रदायिक भाजपा को परिस्थतियों का लाभ उठाने से रोकेंगे। क्षेत्रीय और जातिवादी दलों, जो समय-समय पर राजनैतिक पलटी मारने को अभिशप्त हैं, हमें बहुत सावधानी के साथ अंतर्क्रिया करनी चाहिये ताकि उनकी अवसरवादी छवि का ग्रहण हमारे ऊपर चस्पा न हो। मौजूदा वामपंथ को बेहतर वामपंथ बनाने को भाकपा को अहम एवं सकारात्मक भूमिका अदा करनी होगी।
उत्तर प्रदेश
निजीकरण की राह पर प्रदेष सरकार:
गत राज्य कौंसिल बैठक में पारित रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के सम्बंध में कहा गया था - ”उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली बसपा की सरकार है जो राजनैतिक दृष्टि से संप्रग-2सरकार के विपक्ष में खड़ी है। परन्तु यह सरकार भी विकास के पूंजीवादी मार्ग को अपनाते हुए भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की राह पर चल रही है। लेकिन सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक उथल-पुथल के इस दौर में वह अपने मत आधार (दलित, अति पिछड़े और आदिवासी) को अपने साथ जोड़े रखने को कई कदम उठाती रहती है।“
आज भी प्रदेश सरकार इसी रास्ते पर चल रही है।
सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण लगातार करने की कोशिशें जारी हैं। आगरा की विद्युत वितरण व्यवस्था को निजी कंपनी टोरंट को सौंप दिया गया। पार्टी ने इसका कड़ा विरोध किया। अब मुख्यमंत्री ने धमकी दी है कि कानपुर आदि शहरों के बिजली वितरण को निजी कंपनियों को सौंप दिया जायेगा। वैसे उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन की नई परियोजनाओं के निर्माण से विद्युत वितरण तक के कई कामों में ठेकेदारी प्रथा और निजीकरण का बोलबाला है। विभागीय भ्रष्टाचार के कारण ही 30 करोड़ रूपये की लागत से बनी परीछा परियोजना की नवनिर्मित चिमनी भरभरा कर गिर गयी। इससे पूर्व दो बार हरदुआगंज की निर्माणाधीन परियोजनायें गिरकर नष्ट हो चुकी हैं। टोरन्ट द्वारा अधिग्रहण के बाद से आगरा की विद्युत व्यवस्था लगभग ध्वस्त पड़ी है। स्पष्ट है कि समस्या का समाधान सुधार है निजीकरण नहीं।
प्रदेश में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा पंसारी की दुकान बन गयी है। निजी स्कूलों और अनुदानित विद्यालयों में खोले जा रहे स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों के शुल्क इतने अधिक हैं कि गरीब और औसत आमदनी वाले परिवार को शिक्षा पाना बेहद कठिन हो गया है।
राज्य सरकार की बदनीयती का शिकार स्वास्थ्य सेवायें भी हो रही हैं। गरीबों को महंगे नर्सिंग होम्स में इलाज कराना बेहद कठिन है। आज भी वह राजकीय चिकित्सालयों में ही इलाज कराते हैं। सरकार ने उनको भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संचालित बड़े अस्पतालों को सौंपने की चेष्टा की। बस्ती, इलाहाबाद, कानपुर और फिरोजाबाद के चार जिला अस्पतालों तथा इन जिलों में मौजूद सैकड़ों प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी अस्पतालों को दे डालने की योजना बना ली थी।
प्रदेश भाकपा ने इसका पुरजोर विरोध किया और सरकार को अपना फैसला वापस लेने को मजबूर होना पड़ा।
14 चीनी मिलों को बेचने की तैयारी चल रही है। सड़क निर्माण, भवन निर्माण सभी में निजी क्षेत्र को भारी भागीदारी दी जा रही है। राज्य की अर्थव्यवस्था को निजीकरण के जरिये चूसा जा रहा है।
नगर निकाय चुनावों का गैर-राजनीतीकरण:
अपने दलीय हितों को पूरा करने हेतु राज्य सरकार ने नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर होने की प्रक्रिया को उलट दिया। बसपा सरकार को डर है कि जिन जनविरोधी नीतियों पर वह चल रही है, उनके चलते आम जनता निकाय चुनावों में उसे शिकस्त दे देगी। 2012 के भावी विधान सभा चुनावों में इसका विपरीत असर पड़ेगा। उप चुनावों में 16 में से 13 विधान सभा सीटों पर जीतने वाली बसपा इसी कारण से अब किसी मध्यावधि चुनावों में हिस्सा न लने की घोषणा कर चुकी है। भाकपा तथा कई अन्य दलों ने लोकतंत्र का हनन करने वाली इस कार्यवाही का विरोध किया लेकिन बसपा प्रमुख आज भी इस कार्यवाही को उचित ठहरा कर हठवादिता का परिचय दे रही हैं।
कृषि भूमि का अधिग्रहण-दर-अधिग्रहण:
भूमि सुधार का सवाल सरकार की प्रतिकूल नीतियों का शिकार बन चुका है। आगरा, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा जनपदों में 850 ग्रामों की जमीन जमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के लिए अधिसूचित कर दी गई। भाकपा, लोकदल के विरोध के कारण फिलहाल सरकार आगे कदम नहीं बढ़ा पा रही है।
लखनऊ के चारों ओर आमों के हरे-भरे बागों से आच्छादित फलपट्टी की भूमि को अधिग्रहण करने की योजना को भी भाकपा और फलपट्टी किसान वेलफेयर एसोसिएशन के संयुक्त आन्दोलन के जरिये फिलहाल विफल बना दिया गया है। अब लखनऊ के कचरे को डम्प करने के नाम पर दशहरी आम के उद्गमस्थल दशहरी गांव एवं अन्य चार गांवों की 88 एकड़ जमीन को अधिगृहीत करने की योजना के खिलाफ भी आन्दोलन छेड़ा गया है। आन्दोलन का बिगुल बजाते हुए 250 वर्ष पुराने दशहरी आम के पितृ वृक्ष पर भाकपा का ध्वज फहरा दिया गया है। 6 जुलाई को वहां संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्षन होगा।
दादरी परियोजना में उच्च न्यायालय द्वारा किसानों को मुआवजा लौटाकर जमीन वापस पाने का फैसला होने के बावजूद किसान अभी मुआवजा लौटा नहीं पाये हैं। उन पर आन्दोलन से जुड़े मुकदमें भी चल रहे हैं। भाकपा ने वहां भी हस्तक्षेप किया है। मुआवजा वापसी की अवधि 3 माह बढ़ाने और मुकदमें वापस लेने की मांग को लेकर आन्दोलनरत किसानों की रैली 25 जून को धौलाना कस्बे में की गई जिसमें भाकपा महासचिव का. ए.बी.बर्धन और राज्य सचिव डा. गिरीश और गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद तथा मेरठ के भाकपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भाग लिया।
हाईवे, कूड़ाघर अथवा अन्य निर्माणों के नाम पर उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण का अन्यत्र भी विरोध किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को बदले जाने की आवाज भी उठाई जा रही है। गैरकानूनी तरीके से संचित जमीनों के वितरण की दिशा में भी राज्य सरकार काम नहीं कर रही है।
पेट्रो-पदार्थों की मूल्यवृद्धि और बसपा सरकार:
केन्द्र सरकार द्वारा दोबारा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन तथा रसोई गैस के दामों में की गई भारी वृद्धि से महंगाई की मार से पीड़ित प्रदेश की जनता और भी तबाह होने को है। राज्य सरकार ने इन वस्तुओं पर लगने वाले राज्य के करों को यदि घटा दिया होता तो कुछ राहत अवश्य मिलती। जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटखोरी सूबे में बेधड़क जारी है। बसपा ने महंगाई के खिलाफ कटौती प्रस्ताव का विरोध कर साबित कर दिया है कि वह जनता को महंगाई से निजात दिलाने की इच्छा शक्ति नहीं रखती। राशन प्रणाली भी प्रदेश में अस्तव्यस्त पड़ी है।
निष्कर्ष:
भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था की बदतर स्थिति, अति अल्प विद्युत आपूर्ति, खादों का अभाव, नहर बंबों में पानी न आना, पुलिस दमन, कमजोर तबकों के बेहद उत्पीड़न आदि से जनता बेहद परेशान है। वह एक विकल्प चाहती है लेकिन सक्षम और बेहतर विकल्प का निर्माण नहीं हो पा रहा है।
प्रदेश में भाकपा ने स्वतंत्र रूप से लगातार आन्दोलन चलाये हैं। कई आन्दोलन अन्य वामपंथी दलों के साथ चलाये हैं। 27 अप्रैल के भारत बन्द में अन्य दल भी साथ थे। इससे प्रदेश में भाकपा की प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है और पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ा है। यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है।
कई जिलों में पार्टी संगठन पर कार्यशालायें एवं पार्टी स्कूल आयोजित किये गये हैं परन्तु मूल तौर पर यह दौर आन्दोलनकारी गतिविधियों का ही रहा है।
इन आन्दोलनों में हम आम जनता को उतारने में अभी कामयाब नहीं हुये हैं। इसके लिए हमें जनता के बीच पहुंचना होगा। जन संगठनों की सक्रियता और विकास इस काम में मददगार होंगे। पार्टी को स्वतंत्र रूप से गतिविधियां जारी रखनी होंगी और वाम दलों के साथ समय-समय पर गतिविधियां चलानी होंगी। जातिवादी दलों, साम्प्रदायिक शक्तियों और आर्थिक आपात्काल खड़ा कर रही शक्तियों के चंगुल से जनता को मुक्त करा अपने साथ लाना होगा। तदनुसार हमें भावी राजनैतिक और सांगठनिक कदम निर्धारित करने होंगे।
भविष्य की कार्यवाहियां
केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और रसाई गैस की कीमतों को वापस लेने, आसमान छूती महंगाई पर रोक लगाने तथा खाद्य सुरक्षा प्रदान करने हेतु अभियान।
इस विषय में 1 जुलाई को चारों वामदलों के संयुक्त कन्वेंशन में लिये गये फैसलों एवं 5 जुलाई के प्रस्तावित भारत बंद को मुस्तैदी से सफल बनाने की पुरजोर कोशिश।
विकास हो मगर उपजाऊ जमीनों का अधिग्रहण नहीं, भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को बदला जाये। इस अभियान को और जोरदार तरीके से चलाना।
सीलिंग की जमीन, कालेधन के बल पर बनाये बड़े फार्म हाउसों की जमीन, बंद उद्योगों की वह जमीन जो किसानों से अधिगृहीत की गई थी, का लेखा-जोखा तैयार कराने को प्रदेश में एक भूमि सुधार आयोग गठन करने की मांग को उठाना। इससे भूमिहीनों में भूमि वितरण का रास्ता खुलेगा।
सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण रोके जाने को अभियान।
नगर निकाय के त्रिस्तरीय चुनाव दलीय आधार पर कराने की मांग को अभियान।
केन्द्र एवं राज्य सरकार की जनहितैषी योजनाओं को अमल में लाने को अभियान।
भ्रष्टाचार एवं कानून व्यवस्था की स्थिति का पर्दाफाश करना।
सांगठनिक
राजनैतिक रिपोर्टिंग के लिये जिला कौंसिलों की विस्तारित बैठक/जनरल बॉडी बैठकें बुलाना।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों/नगर निकायों के चुनावों में व्यापक भागीदारी की सांगठनिक तैयारी।
केन्द्र एवं राज्य के अखबारों के ग्राहक बनाना।
जन संगठनों की सक्रियता और विस्तार विभिन्न विभागों की बैठकें बुलाना।
पार्टी में महिला, नौजवान, दलित एवं अल्पसंख्यकों की भर्ती पर विशेष जोर।
प्रशिक्षण शिविर और कार्यशालायें अधिक से अधिक जिलों में लगाना।
धन एवं अन्न संग्रह अभियान को गंभीरता से लेना और उसे नियमित तौर पर चलाना।
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