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शनिवार, 3 जुलाई 2010
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कौंसिल बैठक 1-2 जुलाई 2010 द्वारा पारित कार्य रिपोर्ट
पार्टी की राज्य कौंसिल की पिछली बैठक 23 जनवरी 2010 को लखनऊ में सम्पन्न हुई थी। उक्त बैठक में हमने इंगित किया था कि पार्टी की राजनैतिक लाइन को उत्तर प्रदेष की जनता के बीच में ले जाने के लिये पार्टी के दैनंदिन कार्यों को अत्यन्त सक्रियतापूर्वक करना होगा तथा लगातार आन्दोलनात्मक और सांगठनिक गतिविधियों को अंजाम देना पड़ेगा।हमने पिछली राज्य कौंसिल बैठक तक महंगाई, खाद्य सुरक्षा, नरेगा, भ्रष्टाचार, उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण आदि प्रष्नों पर 20 जुलाई 2009 से 30 जुलाई 2009 तक जन जागरण अभियान चलाया था। 31 जुलाई को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्षन किये। चारो वामपंथी दलों के साथ मिलकर अभियान चलाया। 9 सितम्बर को जिला मुख्यालयों पर व्यापक धरने प्रदर्षन किये। 25 नवम्बर से 5 दिसम्बर तक जन अभियान चला कर पूरे प्रदेष में सभायें कीं। 7-8-9 दिसम्बर को तहसील मुख्यालयों पर धरने/प्रदर्षन किये। यमुना एक्सप्रेस वे के नाम पर उपजाऊ जमीन को हड़पने के विरोध में अक्टूबर में मथुरा में सम्मेलन किया। वामपंथी एकता बनाये रखते हुए हमने वामपंथी संकीर्णतावाद से भी मुकाबला किया। उक्त समस्त कार्यों का उल्लेख इसलिए पुनः किया है कि 23 जनवरी 2010 के बाद की हमारी गतिविधियाँ इसी सक्रियता को बनाये रखने वाली सिद्ध हुई है।पार्टी की राज्य कौंसिल ने हमको निर्देष दिया था कि आगामी कुछ महीनों के लिये हमको निम्न कार्य करने हैं: 5 मार्च 2010 को ट्रेड यूनियनों के संयुक्त जेल भरो आन्दोलन को सक्रिय सहयोग देना। 12 मार्च को महंगाई, खाद्य सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण, नरेगा, रोजगार और षिक्षा के प्रष्न पर वामपंथी दलों की दिल्ली रैली की तैयारी। 20 फरवरी से 8 मार्च तक रैली की सफलता के लिए जन-जागृति एवं जन-सम्पर्क अभियान चलाना। ग्राम पंचायत, ग्राम सभाओं तथा नगर निकायों के चुनावों की तैयारी। उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण के विरूद्ध आन्दोलन।उपरोक्त कार्यों को अंजाम देने के दौरान ही 8 अप्रैल को जेल भरो तथा 27 अप्रैल के भारत बन्द का देषव्यापी नारा आ गया। उन नारों को भी कामयाब बनाना हमारी प्रमुख राजनैतिक जिम्मेदारी थी।आन्दोलन एवं अभियानश्रमिकों का जेल भरो: 5 मार्च को मजदूर वर्ग के संयुक्त आह्वान पर पूरे प्रदेष में जेल भरो आन्दोलन सम्पन्न हुआ। यह पिछले 2-3 दषक के संयुक्त मजदूर आन्दोलन में परिवर्तन का द्योतक था क्योंकि वामपंथी मजदूर संगठनों के अतिरिक्त इंटक एवं भारतीय मजदूर संघ ने भी इस नारे का समर्थन किया। पार्टी ने भी अपना भाई चारा और समर्थन व्यक्त करने हेतु पार्टी के प्रांतीय सचिव के नेतृत्व में लखनऊ में लगभग 150 कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी।12 मार्च की दिल्ली रैली: महंगाई के विरोध में 12 मार्च की दिल्ली रैली अभूतपूर्व थी। केन्द्रीय सरकार के रेल और आम बजट ने ऐसी नीतियों का निरूपण किया था जिसमें देष की अर्थव्यवस्था में निजीकरण को आगे बढ़ाना, पूंजीपतियों को छूट देना और आर्थिक संकट का बोझा आम जनता पर लादना निहित था। उत्तर प्रदेष पार्टी के सूबाई नेतृत्व एवं जिला पार्टी के नेतृत्व के संयुक्त प्रयासों से हम दिल्ली की सड़कों पर 14 हजार से अधिक लोगों को उतारने में सफल हुए। हमारी इस सामूहिक सफलता ने हमको भारी विष्वास प्रदान किया है। उल्लेख करना उचित होगा कि राष्ट्रीय केन्द्र ने हमको 10 हजार लोगों को लाने का कोटा दिया था। वे सभी जिले प्रषंसा के पात्र हैं जिन्होंने यथासंभव जनता के साथ भागीदारी की। जिन जिलों ने उपेक्षा बरती है उनसे अपेक्षा है कि वे अपनी गतिविधियों में सुधार करेंगे।8 अप्रैल 2010 का जेल भरो: 12 मार्च की रैली में ही महंगाई सहित अन्य सवालों पर पूरे देष में जेल भरो आन्दोलन को चलाने का ऐलान किया गया था। उत्तर प्रदेष में भी हमने इस नारे को पूर्ण किया और सूबे के अधिकतर जिलों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जेल भरो आन्दोलन को कामयाब किया। व्यापक रूप से पार्टी द्वारा जेल भरो आन्दोलन में भागीदारी करना पार्टी की निरन्तर क्रियाषीलता का परिचायक है।27 अप्रैल 2010 की आम हड़ताल: महंगाई के विरोध में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं अन्य वामपंथी पार्टियों के द्वारा पूरे देष में बनाये गये राजनैतिक माहौल ने अन्य जनवादी दलों को भी महंगाई विरोधी आन्दोलन को चलाने के प्रष्न को केन्द्र में ला खड़ा किया। आम हड़ताल के लिए वामपंथी दलों के अतिरिक्त समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोक दल एवं अन्य जनवादी दल एवं षक्तियां भी सक्रिय हो गईं। भाकपा के सूबाई नेतृत्व के प्रयास से इस बन्द में कई अन्य दल एवं किसान संगठन भी षामिल हो गये।उत्तर प्रदेष में यह बन्द षानदार रूप से कामयाब हुआ। पार्टी सूबा केन्द्र ने आम हड़ताल की तैयारी में अपेन प्रयासों में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। अन्य वामपंथी दलों एवं जनवादी दलों से पूरा समन्वय स्थापित किया। जनवादी दलों के साथ संपन्न कई बैठकों में यद्यपि कभी-कभी भागीदारों द्वारा यह भावना व्यक्त की जाती थी कि अब वामपंथी दल और जनवादी दल विषेष रूप से समाजवादी पार्टी साथ आ गये हैं तो ‘तीसरे मोर्चे’ का निर्माण हो जाएगा। अखबारों में भी कुछ इस प्रकार की टीका-टिप्पणी आती थी। परन्तु समाजवादी पार्टी के वर्गीय चरित्र को देखते हुए पार्टी के नेतृत्व ने हमेषा यह कहा कि यह संयुक्त संघर्ष महंगाई के सीमित मुद्दे पर है और इसका कोई अन्य अर्थ न लगाया जाये।उत्तर प्रदेष में षानदार बन्द के बाद समाजवादी पार्टी द्वारा लोकसभा में कटौती प्रस्ताव के समय बर्हिगमन करके केन्द्रीय सरकार की मदद करना जनता के साथ एक बड़ा धोखा था जिसने समाजवादी पार्टी के वर्गीय चरित्र और मजबूरियों को एक बार फिर उजागर कर दिया।फिर भी उत्तर प्रदेष बन्द ने महंगाई के प्रष्न को जन-जन तक पहुंचाने में अपनी भूमिका का निर्वाह किया है।यहां यह भी उल्लेख करना आवष्यक होगा कि 27 अप्रैल को गिरफ्तारी के बाद जब जिला प्रषासन समाजवादी पार्टी के कुछ लोगों को बसें जलाने के आरोप में रिहा नहीं करना चाहता था तो पार्टी का नेतृत्व अड़ गया और स्पष्ट कहा कि जितने लोग गिरफ्तार हुए हैं, वे सभी रिहा होंगे अन्यथा सभी लोगों को जेल लेकर जाना होगा। पार्टी नेतृत्व की उस पहल पर जिला प्रषासन को सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा करना पड़ा।निजीकरण विरोधी अभियान: उत्तर प्रदेष सरकार की आर्थिक नीति पूंजीपतिपरस्त है। वह बड़े पैमाने पर सरकारी उद्यमों और सेवा क्षेत्रों का निजीकरण करना चाहती है। उसने आगरा जिले की विद्युत व्यवस्था टोरेन्ट नाम की निजी कम्पनी को सौंप दी है। सरकार की इस नीति का आगरा की जनता बड़े पैमाने पर विरोध कर रही है। पार्टी भी आगरा में जनता की इच्छाओं के अनुकूल आन्दोलनरत है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिजली कर्मचारी संगठनों ने सरकार से निजीकरण करने हेतु समझौता किया है।अब सरकार ने कानपुर की बिजली व्यवस्था को टोरेन्ट के हवाले करने की घोषणा की है। परन्तु यह संतोष की बात है कि कानपुर के बिजली कर्मी सरकार की मंषा के खिलाफ मजबूती से संघर्ष कर रहे हैं। पार्टी भी उनको पूरा सहयोग प्रदान कर रही है। अब श्रमिक संगठनों ने भी इसके खिलाफ प्रदेषव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है।अस्पतालों के निजीकरण का ऐलान एवं पार्टी का विरोध: सरकार ने अपने निजीकरण करने के भूत पर सवार होकर कानपुर, इलाहाबाद, फिरोजाबाद तथा बस्ती के जिला अस्पतालों तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी एजेन्सियों को सौंपने का ऐलान किया था। चारों ही षहरों में पार्टी द्वारा इसका विरोध किया गया। कुछ अन्य वामपंथी पार्टियों और जनवादी षक्तियों ने भी इसका विरोध किया। जनता की इस स्वतःस्फूर्त नाराजगी और पार्टी की पहलकदमी ने सरकार को फिलहाल निजीकरण करने के फैसले को रोकने के ऐलान से पीछे हटने को मजबूर कर दिया है।जन-जागरण अभियान तथा धन एवं अन्न संग्रह अभियान: विगत राज्य कौंसिल की बैठक के बाद 20 फरवरी से 8 मार्च तक जनजागरण अभियान का आह्वान किया गया था। अधिकतर जिलों ने इस अभियान को चलाया और प्रदेष के विभिन्न जनपदों में सभायें/जुलूस/प्रदर्षन तथा धरने आदि संगठित किये गये। इस जन-जागरण अभियान से जनता को दिल्ली की 12 मार्च की रैली में ले जाने में बहुत मदद मिली।जिलों एवं राज्य केन्द्र को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने के लिए धन एवं अन्न संग्रह करना बेहद जरूरी है और पार्टी कौंसिल एवं कार्यकारिणी इस ओर बार-बार ध्यान आकर्षित करवाती है। 11, 12, 13 दिसम्बर 2009 की तिथियों के बाद एक बार फिर 6 से 9 मई 2010 तक धन एवं अन्न संग्रह का आह्वान किया गया। कुछ जिलों ने तो किया पर इस अभियान में अभी सम्यक रूप से भारी सुधार की आवष्यकता है। इस मोर्चे पर भी पार्टी कतारों को मुस्तैदी दिखाने की दरकार है। जून माह में विभिन्न जन समस्याओं पर जन आन्दोलन चलाने की रिपोर्ट भी अभी प्राप्त होनी षेष हैं।पार्टी स्कूल एवं कार्यषाला: पार्टी षिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर पार्टी सदस्य को पार्टी की रीति-नीति, कार्य व्यवहार, पार्टी संगठन एवं जन संगठनों के निर्माण हेतु मूल सिद्धान्तों से लैस होना अत्यन्त अनिवार्य है।इस दौरान मऊ, गाजियाबाद, षाहजहांपुर, सीतापुर आदि जिलों में पार्टी कार्यषालायें आयोजित की गयीं। आवष्यकता है कि प्रत्येक जिला इस ओर भी अपना ध्यान लगाये।पंचायत एवं नगर निकाय चुनाव: पंचायत चुनावों हेतु सरकार की तैयारियां चल रही हैं। वोटर लिस्टें तैयार हो चुकी हैं। निर्धारित समय पर चुनाव होंगे। पार्टी को इन चुनावों में बड़े पैमाने पर भागीदारी करने के लिए अपने को तैयार रखने की आवष्यकता है।राज्य सरकार ने नगर निकाय चुनावों हेतु पार्टी चिन्ह से चुनाव लड़ने का प्राविधान खत्म कर दिया है। राज्य सरकार का यह फैसला राजनैतिक डर से लिया गया है। वह विधान सभा चुनावों से पहले किसी भी प्रांतव्यापी चुनाव में उलटे संकेत नहीं भेजना चाहती है। संभवतः राज्य सरकार की पूंजीपत परस्त नीतियों और व्याप्त भारी भ्रष्टाचार से उसको डर है कि जनवादी प्रक्रिया में ग्रास-रूट स्तर पर कहीं जनता राज्य सरकार की नीतियों को नकार न दे। पार्टी चिन्ह को समाप्त करने हेतु मुख्यमंत्री अथवा राज्य सरकार का कोई भी तर्क न तो न्याय संगत है और न ही तर्क संगत। राज्य पार्टी नेतृत्व ने इस घोषणा के तत्काल बाद इस पर प्रतिरोध जताते हुए राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजें। भूमि अधिग्रहण पर विषेष पहल: विकास के नाम पर उपजाऊ जमीनों के प्रदेष सरकार के कारनामों पर लगाम लगाने में पार्टी ने सफलता अर्जित की है। आगरा, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस जनपदों के 850 ग्रामों की जमीनों के अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलन जारी है। सरकार अभी तक अधिग्रहण हेतु कदम बढ़ाने से बच रही है। बिजली घर के निर्माण के लिए ललितपुर में ली जा रही बेहद उपजाऊ जमीनों को भी आन्दोलन के जरिये वहां से षिफ्ट कराया गया। लखनऊ के फलपट्टी क्षेत्र की जमीनों को भी पार्टी ने आन्दोलन कर बचाया है। अब वहां कूड़ाघर बनाने के नाम पर ली जा रही जमीनों के सवाल पर आन्दोलन छेड़ा गया है। फ्रेट कारीडोर के निर्माण के नाम पर रेलवे द्वारा चंदौली की उत्तम धान पैदा करने वाली भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई गयी और उसे निरस्त कराया गया।दादरी में अंबानी की परियोजना के लिये 2762 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई थी। हमने अन्य के साथ मिलकर आन्दोलन चलाया था। बाद में उच्च न्यायालय ने किसानों को मुआवजा लौटाने पर जमीन वापस करने का फैसला सुनाया। लेकिन निष्चित अवधि के भीतर किसान मुआवजा वापस नहीं कर पाये। उन पर तमाम केस भी चल रहे हैं। आन्दोलनकारी किसानों के संयोजकत्व में वहां 25 जून को रैली सम्पन्न हुई जिसमें पार्टी के महासचिव का। ए.बी.बर्धन, राज्य सचिव डा. गिरीष तथा अन्य ने संबोधित किया।पेट्रो मूल्य वृद्धि: हाल ही में हुई इस भारी मूल्यवृद्धि पर राज्य नेतृत्व ने त्वरित कार्यवाही की और जिलों को 26 जून को ही विरोध प्रदर्षनों का निर्देष दिया। तमाम जिलों ने पुतले जलाये। धरने-प्रदर्षनों का क्रम अब भी जारी है। अब 5 जुलाई के भारत बन्द की तैयारी में पूरी षिद्दत से जुटना है।
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