भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

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गुरुवार, 8 जुलाई 2010

अज्ञात क्राँतिवीर का शिलालेख



क्राँति का
अज्ञात वीर मारा गया
मैंने उसका शिलालेख
सपने में देखा
वह कीचड़ में पड़ा था
दो शिलांश थे
उन पर कुछ नहीं लिखा था
पर उनमें से एक कहने लगा-
जो यहां सोया है
वह दूसरे की धरती को
जीतने नहीं जा रहा था
वह जा रहा था
अपनी ही धरती को मुक्त करने
उसका नाम कोई नहीं जानता
पर इतिहास की पुस्तकों में
उनके नाम हैं
जिन्होंने उसे मिटा दिया
वह मनुष्य की तरह जीना चाहता था
इसीलिए एक जंगली जानवर की तरह
उसे जिबह कर दिया गया
उसने कुछ कहा था
फँसी-फँसी आवाज़ में
मरने से पहले
क्योंकि उसका गला रेता हुआ था
पर ठंडी हवाओं ने उन्हें चारों ओर फैला दिया
उन हज़ारों लोगों तक
जो ठंड से जकड़े हुए थे।
- बर्तोल ब्रेख्त

अंग्रेज़ी से अनुवाद : रामकृष्ण पांडेय
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बुधवार, 7 जुलाई 2010

लोगों के लिए गीत

आओ ! दुख और जंज़ीर के साथियों

हम चलें कुछ भी न हारने के लिए

कुछ भी न खोने के लिए

सिवा अर्थियों के


आकाश के लिए हम गाएंगे

भेजेंगे अपनी आशाएँ

कारखानों और खेतों और खदानों में

हम गाएंगे और छोड़ देंगे

अपने छिपने की जगह

हम सामना करेंगे सूरज का


हमारे दुश्मन गाते हैं--

"वे अरब हैं... क्रूर हैं..."


हाँ, हम अरब हैं

हम निर्माण करना जानते हैं

हम जानते हैं बनाना

कारखाने अस्पताल और मकान

विद्यालय, बम और मिसाईल

हम जानते हैं

कैसे लिखी जाती है सुन्दर कविता

और संगीत...

हम जानते हैं

- महमूद दरवेश
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सोमवार, 5 जुलाई 2010

भोपाल मामले से कुछ सीख - सेवानिवृत्त न्यायधीश उच्चतम न्यायालय






इस सम्बंध में कोर्ट के निर्णय से ऐसा लगता है कि भारत अब भी विक्टोरियन साम्राज्यवादी, सामन्ती दौर में है, और जो सोशलिस्ट सपनों से बहुत दूर है।
उन वर्षों में जिन राजनैतिक दलों के हाथों में सत्ता थी, वे इस भारी अपराधिक लापरवाही के लिये दोषी है। इस घटना से सम्बंधित असाधारण बात तो यह है कि यूनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अधिकारी वारेन एंडरसन तो पिक्चर में लाया ही नहीं गया।
2 दिसम्बर 1984 को भोपाल में जो बड़े पैमाने पर हत्याकाण्ड हुआ वह एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कार्पाेरेशन की भारी गलती का परिणाम था। जिसने भारतीयों की जिन्दगियों को अश्वारोही क्रूर योद्धाओं के समान रौंदा। इसमें लगभग 20,000 लोगों की गैस हत्या हुई फिर भी 26 वर्षों की मुकदमें बाजी के बाद अपराधियों को केवल 2 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा दी गई। ऐसा तो केवल अफरातफरी वाले देश भारत ही में घटित हो सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति एवं श्वेत संसार तथा श्यामल भारतीय, प्रधानमंत्री, तालिबान एवं माओवादी नक्सलवाद पर कर्कश आवाजे उठाते हैं। मगर यह नहीं देखते कि इस जन संहार पर जो, भारत के एक पिछड़े इलाके में अमेरिकन ने किया, अदालती फैसला आने में 26 वर्ष लग गये।
चूँकि भारत एक डालर प्रभावित देश है, इसीलिये गैसजन संहार को एक मामूली अपराध जाना गया। लगता है कि भारत पर मैकाले की विक्टोरियन न्याय व्यवस्था अब भी लागू है। हमारी संसद और कार्यपालिका को उनके जीवन और उस नुकसान से लगता है कोई वास्ता ही नहीं है। न्यायपालिका का भी यही हाल है, वह भी अहम मामलों में तुरन्त फैसला देने के अपने मूल कर्तव्य के प्रति लापरवाह है। संसद को भला इतना समय कहां कि वह अपने नागरिकों के जीवन को सुरक्षित करने के कानून बनाये। वह तो कोलाहल में ही बहुत व्यस्त हैं। इस प्रकार के अपराध के लिये जो तफ़तीशी न्यायिक विलम्ब हुआ वह अक्षम्य है।
अगर कार्यपालिका के पास जरूरी आजादी, तत्परता एवं निष्ठा हो, अगर सही जज नियुक्त हो और सही प्रक्रिया में अपनाई जाये तो भारतीय न्यायालय भी सही न्याय करने में सक्षम होंगे।
विश्वास भंग हुआ
यह भी हुआ कि आम आदमी के लिये यह समाजवादी लोकतंत्र बराबर एक निराशा का कारण बना रहा। यह विरोधाभास समाप्त होना चाहिये। हमारे पास असीमित मानव संसाधन हैं, जिससे हम अपने राष्ट्रपिता की प्रतिज्ञा की पुर्नस्थापना कर सकते हैं, उनकी यह प्रबल इच्छा थी कि हर आंख के आंसू को पोछा जाये। परन्तु भारतीय प्रभु सत्ता के इस विश्वास को भोपाल ने हास्यास्पद ढंग से भंग कर दिया गया। एक समय था जब हर वह गरीब आदमी जो भूखा और परेशान था और ब्रिटिश सामा्रज्य का विरोध कर रहा था, वह कांग्रेसी कहा जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब कांग्रेसी सत्ता में आये, फिर प्रत्येक भूखा लड़ाकू कम्युनिस्ट कहा गया। जब अनेक राज्यों में कम्युनिस्ट सत्ता में आये, और वहां बहुत से भूखे थे, वह भूखे गरीब नक्सलवादी कहे गये। क्या भारत का कुछ भविष्य भी है? हां जरूर है। शर्त यह है कि यहां के गौरवपूर्ण संविधान और अद्भुत सांस्कृति परम्पराओं में कार्ल मार्क्स एवँ महात्मा गाँधी के दष्टिकोण को शमिल करने की समझ पैदा की जाय। क्या हमारे पास इतना विचार-बोध हैं ? क्या न्यायाधीश ऐसी लालसा रखते हैं? भोपाल पर दिया निर्णय तो यही ज़ाहिर करता है कि भारत अब भी साम्राज्यवादी सामंती विकटोरियन युग मे है, और समाजवादी स्वप्नों से कोसों दूर है।
इस परिणाम की असाधारण बात यही है कि युनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अफ़सर वारेन एनडरसन को मामलो से बाहर रक्खा गया। यह तो इन्साफ का मज़ाक बनाया गया। मुख्य अपराधी को तो व्युह रचना से अलग हीं रक्खा गया। अब जो छोटों को अभियुक्त बनाया तो इससे यही प्रतीत हुआ कि उन लाखों का मज़ाक बना जिन लोगों को भुगतान पड़ा। अपराध क्षेत्र से शक्तिशालियों को मुक्त कर देने का अर्थ क़ानून को लंगड़ा कर देना। क्या एक अमेरिकी अपराधी की भारतीय कोर्ट के आर्डर के अर्न्तगत जांच नहींे की जा सकती ? इस प्रकार के भेद-भाव से न्याय हास्यास्पद बनता है। जब मूल अधिकारों का हनन हो तो जजों के कार्यक्षेत्र कें ऐसे केसों की सुनवाई निहित है, 26वर्ष बीत गये, इतने जज होते हुए भी सुप्रीम कोर्ट नें अब तक क्या किया ? तुरन्त सुनवाई हेतु भारत-सरकार भी कोर्ट तक नहीं गई ? अब क़ानून मंत्री कहते है कि जो दो वर्ष की सश्रम करावास की सज़ा दी गई है, उससे वह प्रसन्न नहीं है। इस 26 वर्ष की अवधि में भारतीय दण्ड विधान की धारा 300 से 304 में कोई संशोधन न प्रस्तावित किया गया न ही किया गया और न सख्त दण्ड का प्रावधान किया गया। यह बात भी संसद एवँ कार्यपालिका की अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही की द्योतक है। उन दिनों में जो भी राजनैतिक दल सत्ता में रहे वह भी इस अपराधिक चूक के लिये दोषी हैं। क्योंकि भारतीय मानव पर अपराधिक कृत्य हुआ और वे सोते रहे। भुक्त भोगियों को मुनासिब मुआवज़ा तक नहीं दिया गया। यूनियन कारबाइड द्वारा वित्त-पोषित एक बड़े अस्पताल का निर्माण भोपाल में जरूर करवाया गया, लेकिन यह भी गरीबों के लिये नहीं अमीरों के लिए था। यह समझने कि अस्पताल लशों पर बना फिर भी वंचितो की पहुँच वहाँ तक नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट बजाय इसके कि निचले कोर्ट से मुकदमा मंगा कर तुरन्त निर्णय देता, वह अपने ही भत्ते और सुविधायें बढ़ाने में तल्लीन रहा।
यू0एस0 के लिये वारेन एंनडरसन एक बन्द अध्याय है। इस अत्यंत शक्तिशाली परमाणु राष्ट्र की न्याय अध्याय करने की अलग सोच है। इस बात से भारतीय जन मानस में इतना साहस होना चाहिये कि वह ‘डालर-उपनिवेशवाद‘ का कड़ा विरोध करे। अमेरिकन विधि के शासन से मुक्त हैं ? जब बहुं राष्ट्रीय निगम अधिनायकों के दोष की बात आ जाए तब श्यामल भारत को श्वेत-न्याय से संतुष्ट होना ही हैं ? हालांकि वाशिंगटन हमेशा व्यापक मानवाधिकार घोषणा-पत्र के प्रति वफ़ादारी की क़समें खाता है, परन्तु पब परमाणु-सन्धि की बात आती है तो उसकी डंडी अपने हितों की तरफ़ झुका देता है। भारत में यह साहस भी नहीं होता कि वह धोके के विरोध में कोई आवाज़ उठाये। हमारे पास बहुराष्ट्रीय निगम है जिसका वैश्विक अधिकार क्षेत्र है। एंडरसन एक अमेरिकी है और यूनियन कारबाइड थी ?
इसके आज्ञापत्र एशियाई ईधन के लिए ही हैं, भारतीय न्याय व्यवस्था लगता है कि केवल नगर पालिकाओं एवँ पंचायतों के लिये ही है, इससे आगे नहीं।
-वी0आर0 कृष्णा अय्यर
सेवानिवृत्त न्यायाधीश
उच्चतम न्यायलय
हिन्दू से साभारअनुवादक: डॉक्टर एस.एम हैदर
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July 5 Hartal: Unprecedented Success

Date: 5 July 2010

The Left parties, the Communist Party of India, Communist Party of India (Marxist), the Revolutionary Socialist Party and the Forward Bloc have issued the following statement:

July 5 Hartal: Unprecedented Success

The all India hartal to protest against the steep increase in the prices of petroleum products has been an unprecedented success. Despite detention and arrests of thousands of protesters, there was a bandh like situation in all parts of the country with shops, business establishments, transport and educational institutions being closed. Left leaders, A.B. Bardhan, D Raja and Brinda Karat were arrested for picketing in Delhi. This has been the most widespread protest action in the country in recent years.

The Left parties congratulate the people and the tens of thousands of activists who have made the hartal a complete success. By this action the people have expressed their anger and strong opposition to the anti-people policies of inflicting successive burdens on the people through price hikes of petroleum products.

The Left parties in consultation with secular opposition parties will chalk out plans for further intensifying the movement against price rise to compel the government to reverse these harmful steps.


Sd/-

(A.B. Bardhan)

General Secretary, CPI

(Prakash Karat)

General Secretary, CPI(M)

(T.K. Chandrachoodan)

General Secretary, RSP

Debabrata Biswas

General Secretary, AIFB
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CPI INFORMATION ABOUT BANDH

According to the message received from different states, nationwide hartal is completely successful. It is unprecedented success in many states. In North East, Assam, Manipur, Arunachal Pradesh and other places it is total bandh. Several CPI cadres were arrested in the morning at Imphal. But all shops were closed. All transport stopped from 6 a.m. in the morning in Manipur.

Com. A.B. Bardhan, General Secretary, Coms. Sudhakar Reddy, D. Raja, Atul Kumar Anjan, Amarjeet Kaur CPI leaders, Brinda Karat of CPIM) were arrested along with 300 volunteers at ITO Centre after they successfully stopped the traffic for more than 90 minutes.

The Punjab bandh was total with all shops and traffic stopped.

In Jharkhand Com. Bhuvaneswar Mehta Ex M.P., Secretary CPI was arrested at Ranchi with thousands arrested all over Jharkhand. But bandh was total.

Police attacked CPI office and SP Office at Lucknow. There were clashes. CPI Secretary Dr. Girish was injured and number of CPI, CPI(M) leaders were lathicharged and arrested at CPI office, Kaisar Bagh, Lucknow. Lucknow and all other cities observed bandh. Uttarakhand observed successful bandh.

Large number of cadres of opposition parties were arrested all over Maharashtra from early hours but government could not prevent total bandh. Com. Prakash Reddy Mumbai City Secretary, Com. Tukaram Bhamse, Assistant Secretary state party, Narayan Ghagri Rambaheti were arrested.

West Bengal, Tripura, Kerala observed total and peaceful bandh on the call of the Left Parties. Even airport had a desert look at Kolkata. Rajasthan had a big bandh and Left Parties organised rallies at Jaipur and other cities. Gujarat, M.P. Karnataka observed bandh. Chhattisgarh observed bandh, Left and NDA organised separate rallies.

Jammu also observed bandh. Pondicherry several hundreds of CPI leaders and cares were arrested and bandh was successful.

Andhra Pradesh observed successful bandh. Chandrababu Naidu former C.M., Com. Narayana CPI State Secretary Com. B.V. Raghavulu CPI(M) State Secretary and others were arrested. Hyderabad and other cities were totally closed shops and rallies were organised. Large number of arrests were there.

There was bandh in Chennai, Tiruchrapalli, Coimbatore and other cities and towns in Tamilnadu. Himachal Pradesh, Haryana, Delhi and other places also observed bandh.

Peoples’ angry and unhappiness is reflected in the spontaneous response to the bandh.

Left Parties cadre took the challenge and worked hard, to make the bandh success.

The arrogant UPA Governemnt was given a big slap by the people for its anti-peoples policies.
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मज़दूरों का गीत

मिल कर क़दम बढ़ाएँ हम
जय, फिर होगी वाम की !

शोषित जनता जागी है
पीड़ित जनता बाग़ी है
आएँ, सड़कों पर आएँ,
क्या अब चिंता धाम की !

ना यह अवसर छोड़ेंगे
काल-चक्र को मोडेंगे
शक्लें बदलेंगे, साथी
मूक सुबह की, शाम की !

नारा अब यह घर-घर है
हर इंसान बराबर है
रोटी जन-जन खाएगा
अपने-अपने काम की !

झेलें गोली सीने से
लथपथ ख़ून-पसीने से
इज़्ज़त कभी घटेगी ना
‘मेहनतकश’ के नाम की !

- महेंद्र भटनागर
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उत्तर प्रदेश में बन्द की सफलता पर प्रदेश की जनता को वामपंथ की बधाई

लखनऊ 5 जुलाई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), फारवर्ड ब्लाक और इंडियन जस्टिस पार्टी के नेताओं ने आज महंगाई विरोधी हड़ताल को बसपा सरकार द्वारा दमन का निशाना बनाने की कड़े से कड़े शब्दों में भर्त्सना की है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में इन दलों के नेताओं क्रमशः डा. गिरीश, एस.पी.कश्यप, राम किशोर एवं काली चरन सोनकर ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब लखनऊ में राजनैतिक दलों के कार्यालयों पर आने जाने वालों को ही पुलिस ने सुबह से ही गिरफ्तार करना शुरू कर दिया और पार्टी दफ्तरों को सील कर दिया। वाम दलों के लखनऊ में अब तक पांच सौ से अधिक पार्टी कार्यकर्ता गिरफ्तार किये चुके हैं।
चारों दलों के नेताओं ने प्रदेश की समस्त जनता को हड़ताल को सफल बनाने के लिये बधाई दी है।
इन दलों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को चारों दलों के उपर्युक्त नेताओं के साथ उस समय भाकपा कार्यालय से बाहर आते ही गिरफ्तार कर लिया गया जब वे हड़ताल की अपील करने बाजारों की ओर जाना चाहते थे। प्रदर्शनकारियों एवं पुलिस के मध्य बारादरी के पास करीब आधा घंटे से संघर्ष चल रहा है जिसमें भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश जख्मी भी हो गये हैं।
वाम दलों ने प्रदेश सरकार की दमनकारी नीतियों की कड़े शब्दों में निन्दा की है और कहा है कि इस दमनचक्र से सिद्ध हो गया है कि बसपा सरकार महंगाई बढ़ाने वाली केन्द्र सरकार के पक्ष में खड़ी है।
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रविवार, 4 जुलाई 2010

महंगाई तथा मूल्यवृद्धि के खिलाफ पांच जुलाई को आंदोलन

दैनिक हिन्दुस्तान ने आज छापा है:

महंगाई तथा पेट्रोलियम में मूल्यवृद्धि के खिलाफ पांच जुलाई को होने वाली आम हड़ताल को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पूरी तरह सफल बनाने का निर्णय लिया है।
पार्टी के अनुसार भाकपा कार्यकर्ता अन्य वामपंथी दलों के साथ एकजुट होकर हड़ताल के पक्ष में सभाएं, साइकिल मार्च तथा मशाल जुलूस निकालेंगे। पार्टी नेताओं ने प्रदेश में उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण किए जाने पर कड़ी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि यह खेती और किसानों को उजाड़ने का प्रयास है।
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भारत बंद कल, सब एकजुट

दैनिक भाषकर ने आज छापा है:
जोधपुर. महंगाई के मुद्दे पर आहूत भारत बंद को लेकर भारतीय जनपा पार्टी समेत अनेक पार्टियों व संगठनों ने कमर कस ली है। पांच जुलाई को होने वाले बंद को व्यापक समर्थन मिल रहा है।
!!!!!!!!!!!!!!!!
विभिन्न पार्टियों का समर्थन
भारत की माकर््सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यूनाइटेड, राजस्थान ट्रेड यूनियन केंद्र आरसीटू, ऑटो रिक्शा एकता यूनियन ने बंद को समर्थन दिया है। कामरेड गोपीकिशन, बृजकिशोर, दिलीप जोशी, वाहिद अली, सुबराती उस्ताद, अशोक आचार्य, चांदअली रंगरेज, बाबूखान, अहमद खान, इमामुद्दीन चौहान, अब्दुल रसीद, ताज मोहम्मद, भैरू, जाकिर हुसैन, भाणु भाई, चौनाराम देवासी, सुनील दाधीच, पप्पू गुर्जर व दशरथ ने बंद को सफल बनाने की तैयारी कर ली है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव विजय मेहता ने बंद को समर्थन दिया है।
अमरचंद पुरोहित, बीएम नथानी, चरणदास हंस, सन्नू महाराज, सद्दीक कुरैशी, मोहम्मद आरिफ, रोशन जूनियर, निजाम, चांद मोहम्मद, अब्दुल रसीद, परमेंद्र चौधरी, देवाराम गुर्जर, बृजमोहन चौधरी, विष्णु गांधी, एडब्ल्यू अंसारी ने बंद को समर्थन देने की घोषणा की है। !!!!!!!!!!!!!!!!
भारत की जनवादी नौजवान सभा और अखिल भारतीय किसान सभा ने संयुक्त रूप से बंद को समर्थन देने की घोषणा की है। संयोजक जयदेव सिंह भाटी, सह संयोजिका अफसाना खान ढाका ने बताया कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में बढ़ती महंगाई से आम आदमी त्रस्त है। इसलिए बंद को समर्थन दिया जाएगा। महंगाई के विरोध में विपक्षी दलों की ओर पांच जुलाई को आहूत भारत बंद में ट्रांसपोर्टर व ट्रक ऑपरेटर भी भाग लेंगे।
जोधपुर गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के सचिव प्रवीण कुभंट के अनुसार पेट्रोलियम पदार्थाे के मूल्य में हुई बढ़ोतरी से ट्रांसपोर्ट व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है। महंगाई के विरोध में विपक्ष के भारत बंद को राजस्थान मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव यूनियन भी सहयोग करेगी। यूनियन के सचिव प्रमोद कश्यप, सह सचिव रणवीर सिंह व राज्य कार्यकारिणी सदस्य सुनील भाटी ने बताया कि यूनियन बंद को समर्थन देगी। !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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शनिवार, 3 जुलाई 2010

Bharat Bandh on 5th July will change the history?

http://blog.mp3hava.com today published the following :
On July - 2 - 2010

13 Political Parties against of current government Congress called 12 Hour of Bharat Bandh due to price increase in Petrol, Diesel, Gasoline etc… The Communist Party of India (CPI), Biju Janata Dal, Communist Party of India (M), Lok Janshakti Party (LJP), Indian National Lok Dal (INLD), Samajwadi Party (SP) and the Rashtriya Samajwadi Party (RSP).

The Raj Thackeray Mumbai said today that they would also support the ‘Bharat bandh’ on July 5 called by Opposition parties to protest against the fuel price hike. Raj also added to the Marathi people to participate in the shutdown by closing down all their businesses and establishments for the day.

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This is becoming the ridiculous position for a Common Man who just earn 5000 – 6000 INR per month and survive 3-4 people in it. Petrol and Gasoline Price hikes on each and every year after congress comes to rule in india. There was not too much hike when BJP was ruling.

This Bharat Bandh will hack the people life for 12 hours, their may be possibilities to stop the transportation services for 12 hours and it might create a riots between people and government. The Opposition parties are protesting against the Congress government’s economic policies and calling for roll back of gain in prices of petrol, diesel, kerosene and LPG / Gasoline. This is the second time, after the emergency in 1975, that the entire Opposition is ganging up to protest against the ruling regime.

Petroleum Minister Murli Deora added that the recent price hike will have a minimal impact on inflation and hit out at opposition parties for calling a bandh next week. Deora says the diesel deregulation will follow soon but said the government will not remain a silent spectator if oil prices reach abnormal levels.

Tags:Bharat Bandh, Bharat Bandh 5th July, 5th July Bharat Bandh, Bharat Bandh on Monday, Bharat Bandh 2010

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CPI, CPM to join bandh

TOI published the following today :

MANGALORE: The Communist Party of India (CPI), Communist Party of India-Marxist (CPM) and Janata Dal have called for all India bandh opposing the hike in the prices of fuel for the second time on July 5.

At a joint press conference here on Friday, CPI district secretary P Sanjeeva and CPM district secretary B Madhava said the Congress-led UPA government at the Centre has delivered yet another blow by hiking the prices of petrol, diesel, kerosene oil and LPG gas for the second time in a span of one year.

The hartal would be observed from 6am to 6pm. But essential services including supply of water, milk, electricity, hospital and emergency services would be exempted from the hartal, they said.
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महंगाई विरोधी आम हड़ताल को सफल बनाने हेतु भाकपा ने किया जन सम्पर्क एवम् नुक्कड़ सभायें

महंगाई के विरोध में 5 जुलाई को होने वाली आम हड़ताल को सफल यबनाने की आम जनता से अपील करने हेतु भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आज समूचे प्रदेश में जनसम्पर्क अभियान चलाया, पर्चे बांटे एवं नुक्कड़ सभायें कीं।
लखनऊ में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश के नेतृत्व में भाकपा के एक जत्थे ने पार्टी के कैसरबाग स्थित कार्यालय से झंडे, बैनर, पर्चों के साथ पैदल जनसम्पर्क शुरू किया। यह जत्था बारादरी, कैसरबाग चौराहा, गणेशगंज, अमीनाबाद, बांसमंडी, लाटूश रोड, विशेश्वरनाथ रोड़ आदि स्थलों पर पहुंचा और व्यापारियों, पटरी दुकानदारों तथा अन्य नागरिकों से महंगाई के खिलाफ आम हड़ताल में भागीदारी की अपील की। कई जगहों पर नुक्कड़ सभायें भी की गयीं।
सभाओं को सम्बोधित करते हुए राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गत दो वर्ष पूर्व तक केन्द्र सरकार पर वामपंथी दलों का अंकुश था। वामपंथी दलों ने उस दरम्यान या तो पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ने नहीं दीं या बहुत मामूली बढ़ोतरी की ही इजाजत दी। लेकिन जब से यह सरकार वाम दलों के समर्थन के बिना अन्य दलों के समर्थन पर चली है तबसे 5 बार और वह भी भारी तादाद में महंगाई बढ़ा चुकी है और पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, कैरोसिन के दाम बढ़ाती ही चली जा रही है। इस महंगाई से देश की जनता त्राहि-त्राहि कर उठी है। अब इसे और सहना बर्दाश्त के बाहर हो चुका है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट टैक्स प्रदेश सरकार ने लगाया हुआ है। इन पदार्थों की अतिरिक्त बढ़ी कीमतों पर वैट टैक्स भी लागू हुआ है और प्रदेश की जनता पर इसका अतिरिक्त भार पड़ा है। राज्य सरकार को इस अतिरिक्त वैट टैक्स को वापस लेकर प्रदेश की जनता को राहत पहुंचाना चाहिये। जमाखोरी, कालाबाजारी और मिलावटखोरी पर कड़ा अंकुश लगाना चाहिये।
भाकपा के इस जत्थे में प्रदीप तिवारी, मो. खालिक, फूल चन्द यादव, मुख्तार अहमद, ओ.पी.अवस्थी, चन्द्रशेखर, रिजवान, मोईद खान आदि प्रमुख लोग शामिल थे।
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LEFT PARTIES APPEAL TO THE PUBLIC OF INDIA

Left Parties along with other secular democratic parties and opposition in general have called for a countrywide hartal on 5th July from 6 a.m. to 6 p.m. The menace of price rise affects all sections of the people.

In this context we appeal to all sections of people to participate massively in the hartal and express their vigorous protest against the UPA Government’s policies which are responsible for inflicting the unbearable burden on the masses.

We appeal to the Trading Community, - retail traders,- market associations etc. to voluntarily suspend business and keep their shutters down.

We appeal to all the transporters’ associations, trucks and buses, both private and public, taxis and rickshaws to keep off the streets as a mark of protest.

We appeal to all student organisations and the teaching community to keep schools, colleges and other educational institutions closed.

We appeal to the organised and unorganized workers, industrial associations of and all sections employees to strike work and join the hartal.

Essential services like milk, water, hospitals are exempt from participation in the hartal.

We hope that the success of the hartal will give a message to the Government to reverse its policies, roll back the decontrol of fuel, and stop any moves for further de-control.

A.B. Bardhan
General Secretary, CPI

Prakash Karat
General Secretary, CPI(M)


Debabrata Biswas
General Secretary, AIFB

T.J. Chandrachoodan
General Secretary, RSP
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कौंसिल बैठक 1-2 जुलाई 2010 द्वारा पारित कार्य रिपोर्ट

पार्टी की राज्य कौंसिल की पिछली बैठक 23 जनवरी 2010 को लखनऊ में सम्पन्न हुई थी। उक्त बैठक में हमने इंगित किया था कि पार्टी की राजनैतिक लाइन को उत्तर प्रदेष की जनता के बीच में ले जाने के लिये पार्टी के दैनंदिन कार्यों को अत्यन्त सक्रियतापूर्वक करना होगा तथा लगातार आन्दोलनात्मक और सांगठनिक गतिविधियों को अंजाम देना पड़ेगा।हमने पिछली राज्य कौंसिल बैठक तक महंगाई, खाद्य सुरक्षा, नरेगा, भ्रष्टाचार, उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण आदि प्रष्नों पर 20 जुलाई 2009 से 30 जुलाई 2009 तक जन जागरण अभियान चलाया था। 31 जुलाई को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्षन किये। चारो वामपंथी दलों के साथ मिलकर अभियान चलाया। 9 सितम्बर को जिला मुख्यालयों पर व्यापक धरने प्रदर्षन किये। 25 नवम्बर से 5 दिसम्बर तक जन अभियान चला कर पूरे प्रदेष में सभायें कीं। 7-8-9 दिसम्बर को तहसील मुख्यालयों पर धरने/प्रदर्षन किये। यमुना एक्सप्रेस वे के नाम पर उपजाऊ जमीन को हड़पने के विरोध में अक्टूबर में मथुरा में सम्मेलन किया। वामपंथी एकता बनाये रखते हुए हमने वामपंथी संकीर्णतावाद से भी मुकाबला किया। उक्त समस्त कार्यों का उल्लेख इसलिए पुनः किया है कि 23 जनवरी 2010 के बाद की हमारी गतिविधियाँ इसी सक्रियता को बनाये रखने वाली सिद्ध हुई है।पार्टी की राज्य कौंसिल ने हमको निर्देष दिया था कि आगामी कुछ महीनों के लिये हमको निम्न कार्य करने हैं: 5 मार्च 2010 को ट्रेड यूनियनों के संयुक्त जेल भरो आन्दोलन को सक्रिय सहयोग देना। 12 मार्च को महंगाई, खाद्य सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण, नरेगा, रोजगार और षिक्षा के प्रष्न पर वामपंथी दलों की दिल्ली रैली की तैयारी। 20 फरवरी से 8 मार्च तक रैली की सफलता के लिए जन-जागृति एवं जन-सम्पर्क अभियान चलाना। ग्राम पंचायत, ग्राम सभाओं तथा नगर निकायों के चुनावों की तैयारी। उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण के विरूद्ध आन्दोलन।उपरोक्त कार्यों को अंजाम देने के दौरान ही 8 अप्रैल को जेल भरो तथा 27 अप्रैल के भारत बन्द का देषव्यापी नारा आ गया। उन नारों को भी कामयाब बनाना हमारी प्रमुख राजनैतिक जिम्मेदारी थी।आन्दोलन एवं अभियानश्रमिकों का जेल भरो: 5 मार्च को मजदूर वर्ग के संयुक्त आह्वान पर पूरे प्रदेष में जेल भरो आन्दोलन सम्पन्न हुआ। यह पिछले 2-3 दषक के संयुक्त मजदूर आन्दोलन में परिवर्तन का द्योतक था क्योंकि वामपंथी मजदूर संगठनों के अतिरिक्त इंटक एवं भारतीय मजदूर संघ ने भी इस नारे का समर्थन किया। पार्टी ने भी अपना भाई चारा और समर्थन व्यक्त करने हेतु पार्टी के प्रांतीय सचिव के नेतृत्व में लखनऊ में लगभग 150 कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी।12 मार्च की दिल्ली रैली: महंगाई के विरोध में 12 मार्च की दिल्ली रैली अभूतपूर्व थी। केन्द्रीय सरकार के रेल और आम बजट ने ऐसी नीतियों का निरूपण किया था जिसमें देष की अर्थव्यवस्था में निजीकरण को आगे बढ़ाना, पूंजीपतियों को छूट देना और आर्थिक संकट का बोझा आम जनता पर लादना निहित था। उत्तर प्रदेष पार्टी के सूबाई नेतृत्व एवं जिला पार्टी के नेतृत्व के संयुक्त प्रयासों से हम दिल्ली की सड़कों पर 14 हजार से अधिक लोगों को उतारने में सफल हुए। हमारी इस सामूहिक सफलता ने हमको भारी विष्वास प्रदान किया है। उल्लेख करना उचित होगा कि राष्ट्रीय केन्द्र ने हमको 10 हजार लोगों को लाने का कोटा दिया था। वे सभी जिले प्रषंसा के पात्र हैं जिन्होंने यथासंभव जनता के साथ भागीदारी की। जिन जिलों ने उपेक्षा बरती है उनसे अपेक्षा है कि वे अपनी गतिविधियों में सुधार करेंगे।8 अप्रैल 2010 का जेल भरो: 12 मार्च की रैली में ही महंगाई सहित अन्य सवालों पर पूरे देष में जेल भरो आन्दोलन को चलाने का ऐलान किया गया था। उत्तर प्रदेष में भी हमने इस नारे को पूर्ण किया और सूबे के अधिकतर जिलों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जेल भरो आन्दोलन को कामयाब किया। व्यापक रूप से पार्टी द्वारा जेल भरो आन्दोलन में भागीदारी करना पार्टी की निरन्तर क्रियाषीलता का परिचायक है।27 अप्रैल 2010 की आम हड़ताल: महंगाई के विरोध में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं अन्य वामपंथी पार्टियों के द्वारा पूरे देष में बनाये गये राजनैतिक माहौल ने अन्य जनवादी दलों को भी महंगाई विरोधी आन्दोलन को चलाने के प्रष्न को केन्द्र में ला खड़ा किया। आम हड़ताल के लिए वामपंथी दलों के अतिरिक्त समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोक दल एवं अन्य जनवादी दल एवं षक्तियां भी सक्रिय हो गईं। भाकपा के सूबाई नेतृत्व के प्रयास से इस बन्द में कई अन्य दल एवं किसान संगठन भी षामिल हो गये।उत्तर प्रदेष में यह बन्द षानदार रूप से कामयाब हुआ। पार्टी सूबा केन्द्र ने आम हड़ताल की तैयारी में अपेन प्रयासों में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। अन्य वामपंथी दलों एवं जनवादी दलों से पूरा समन्वय स्थापित किया। जनवादी दलों के साथ संपन्न कई बैठकों में यद्यपि कभी-कभी भागीदारों द्वारा यह भावना व्यक्त की जाती थी कि अब वामपंथी दल और जनवादी दल विषेष रूप से समाजवादी पार्टी साथ आ गये हैं तो ‘तीसरे मोर्चे’ का निर्माण हो जाएगा। अखबारों में भी कुछ इस प्रकार की टीका-टिप्पणी आती थी। परन्तु समाजवादी पार्टी के वर्गीय चरित्र को देखते हुए पार्टी के नेतृत्व ने हमेषा यह कहा कि यह संयुक्त संघर्ष महंगाई के सीमित मुद्दे पर है और इसका कोई अन्य अर्थ न लगाया जाये।उत्तर प्रदेष में षानदार बन्द के बाद समाजवादी पार्टी द्वारा लोकसभा में कटौती प्रस्ताव के समय बर्हिगमन करके केन्द्रीय सरकार की मदद करना जनता के साथ एक बड़ा धोखा था जिसने समाजवादी पार्टी के वर्गीय चरित्र और मजबूरियों को एक बार फिर उजागर कर दिया।फिर भी उत्तर प्रदेष बन्द ने महंगाई के प्रष्न को जन-जन तक पहुंचाने में अपनी भूमिका का निर्वाह किया है।यहां यह भी उल्लेख करना आवष्यक होगा कि 27 अप्रैल को गिरफ्तारी के बाद जब जिला प्रषासन समाजवादी पार्टी के कुछ लोगों को बसें जलाने के आरोप में रिहा नहीं करना चाहता था तो पार्टी का नेतृत्व अड़ गया और स्पष्ट कहा कि जितने लोग गिरफ्तार हुए हैं, वे सभी रिहा होंगे अन्यथा सभी लोगों को जेल लेकर जाना होगा। पार्टी नेतृत्व की उस पहल पर जिला प्रषासन को सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा करना पड़ा।निजीकरण विरोधी अभियान: उत्तर प्रदेष सरकार की आर्थिक नीति पूंजीपतिपरस्त है। वह बड़े पैमाने पर सरकारी उद्यमों और सेवा क्षेत्रों का निजीकरण करना चाहती है। उसने आगरा जिले की विद्युत व्यवस्था टोरेन्ट नाम की निजी कम्पनी को सौंप दी है। सरकार की इस नीति का आगरा की जनता बड़े पैमाने पर विरोध कर रही है। पार्टी भी आगरा में जनता की इच्छाओं के अनुकूल आन्दोलनरत है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिजली कर्मचारी संगठनों ने सरकार से निजीकरण करने हेतु समझौता किया है।अब सरकार ने कानपुर की बिजली व्यवस्था को टोरेन्ट के हवाले करने की घोषणा की है। परन्तु यह संतोष की बात है कि कानपुर के बिजली कर्मी सरकार की मंषा के खिलाफ मजबूती से संघर्ष कर रहे हैं। पार्टी भी उनको पूरा सहयोग प्रदान कर रही है। अब श्रमिक संगठनों ने भी इसके खिलाफ प्रदेषव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है।अस्पतालों के निजीकरण का ऐलान एवं पार्टी का विरोध: सरकार ने अपने निजीकरण करने के भूत पर सवार होकर कानपुर, इलाहाबाद, फिरोजाबाद तथा बस्ती के जिला अस्पतालों तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी एजेन्सियों को सौंपने का ऐलान किया था। चारों ही षहरों में पार्टी द्वारा इसका विरोध किया गया। कुछ अन्य वामपंथी पार्टियों और जनवादी षक्तियों ने भी इसका विरोध किया। जनता की इस स्वतःस्फूर्त नाराजगी और पार्टी की पहलकदमी ने सरकार को फिलहाल निजीकरण करने के फैसले को रोकने के ऐलान से पीछे हटने को मजबूर कर दिया है।जन-जागरण अभियान तथा धन एवं अन्न संग्रह अभियान: विगत राज्य कौंसिल की बैठक के बाद 20 फरवरी से 8 मार्च तक जनजागरण अभियान का आह्वान किया गया था। अधिकतर जिलों ने इस अभियान को चलाया और प्रदेष के विभिन्न जनपदों में सभायें/जुलूस/प्रदर्षन तथा धरने आदि संगठित किये गये। इस जन-जागरण अभियान से जनता को दिल्ली की 12 मार्च की रैली में ले जाने में बहुत मदद मिली।जिलों एवं राज्य केन्द्र को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने के लिए धन एवं अन्न संग्रह करना बेहद जरूरी है और पार्टी कौंसिल एवं कार्यकारिणी इस ओर बार-बार ध्यान आकर्षित करवाती है। 11, 12, 13 दिसम्बर 2009 की तिथियों के बाद एक बार फिर 6 से 9 मई 2010 तक धन एवं अन्न संग्रह का आह्वान किया गया। कुछ जिलों ने तो किया पर इस अभियान में अभी सम्यक रूप से भारी सुधार की आवष्यकता है। इस मोर्चे पर भी पार्टी कतारों को मुस्तैदी दिखाने की दरकार है। जून माह में विभिन्न जन समस्याओं पर जन आन्दोलन चलाने की रिपोर्ट भी अभी प्राप्त होनी षेष हैं।पार्टी स्कूल एवं कार्यषाला: पार्टी षिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर पार्टी सदस्य को पार्टी की रीति-नीति, कार्य व्यवहार, पार्टी संगठन एवं जन संगठनों के निर्माण हेतु मूल सिद्धान्तों से लैस होना अत्यन्त अनिवार्य है।इस दौरान मऊ, गाजियाबाद, षाहजहांपुर, सीतापुर आदि जिलों में पार्टी कार्यषालायें आयोजित की गयीं। आवष्यकता है कि प्रत्येक जिला इस ओर भी अपना ध्यान लगाये।पंचायत एवं नगर निकाय चुनाव: पंचायत चुनावों हेतु सरकार की तैयारियां चल रही हैं। वोटर लिस्टें तैयार हो चुकी हैं। निर्धारित समय पर चुनाव होंगे। पार्टी को इन चुनावों में बड़े पैमाने पर भागीदारी करने के लिए अपने को तैयार रखने की आवष्यकता है।राज्य सरकार ने नगर निकाय चुनावों हेतु पार्टी चिन्ह से चुनाव लड़ने का प्राविधान खत्म कर दिया है। राज्य सरकार का यह फैसला राजनैतिक डर से लिया गया है। वह विधान सभा चुनावों से पहले किसी भी प्रांतव्यापी चुनाव में उलटे संकेत नहीं भेजना चाहती है। संभवतः राज्य सरकार की पूंजीपत परस्त नीतियों और व्याप्त भारी भ्रष्टाचार से उसको डर है कि जनवादी प्रक्रिया में ग्रास-रूट स्तर पर कहीं जनता राज्य सरकार की नीतियों को नकार न दे। पार्टी चिन्ह को समाप्त करने हेतु मुख्यमंत्री अथवा राज्य सरकार का कोई भी तर्क न तो न्याय संगत है और न ही तर्क संगत। राज्य पार्टी नेतृत्व ने इस घोषणा के तत्काल बाद इस पर प्रतिरोध जताते हुए राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजें। भूमि अधिग्रहण पर विषेष पहल: विकास के नाम पर उपजाऊ जमीनों के प्रदेष सरकार के कारनामों पर लगाम लगाने में पार्टी ने सफलता अर्जित की है। आगरा, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस जनपदों के 850 ग्रामों की जमीनों के अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलन जारी है। सरकार अभी तक अधिग्रहण हेतु कदम बढ़ाने से बच रही है। बिजली घर के निर्माण के लिए ललितपुर में ली जा रही बेहद उपजाऊ जमीनों को भी आन्दोलन के जरिये वहां से षिफ्ट कराया गया। लखनऊ के फलपट्टी क्षेत्र की जमीनों को भी पार्टी ने आन्दोलन कर बचाया है। अब वहां कूड़ाघर बनाने के नाम पर ली जा रही जमीनों के सवाल पर आन्दोलन छेड़ा गया है। फ्रेट कारीडोर के निर्माण के नाम पर रेलवे द्वारा चंदौली की उत्तम धान पैदा करने वाली भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई गयी और उसे निरस्त कराया गया।दादरी में अंबानी की परियोजना के लिये 2762 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई थी। हमने अन्य के साथ मिलकर आन्दोलन चलाया था। बाद में उच्च न्यायालय ने किसानों को मुआवजा लौटाने पर जमीन वापस करने का फैसला सुनाया। लेकिन निष्चित अवधि के भीतर किसान मुआवजा वापस नहीं कर पाये। उन पर तमाम केस भी चल रहे हैं। आन्दोलनकारी किसानों के संयोजकत्व में वहां 25 जून को रैली सम्पन्न हुई जिसमें पार्टी के महासचिव का। ए.बी.बर्धन, राज्य सचिव डा. गिरीष तथा अन्य ने संबोधित किया।पेट्रो मूल्य वृद्धि: हाल ही में हुई इस भारी मूल्यवृद्धि पर राज्य नेतृत्व ने त्वरित कार्यवाही की और जिलों को 26 जून को ही विरोध प्रदर्षनों का निर्देष दिया। तमाम जिलों ने पुतले जलाये। धरने-प्रदर्षनों का क्रम अब भी जारी है। अब 5 जुलाई के भारत बन्द की तैयारी में पूरी षिद्दत से जुटना है।
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कौंसिल बैठक 1-2 जुलाई 2010 द्वारा पारित

राष्ट्रीय परिदृश्य
पार्टी की पिछली राज्य कौंसिल की बैठक (23 जनवरी 2010) के बाद से उत्तर प्रदेश, देश और दुनियां में कई राजनैतिक घटनाक्रम हुये हैं जो राजनीति की दिशा बदलने वाले हैं।
लोकसभा में पूर्ण बहुमत न होने के कारण संप्रग-2 सरकार लगातार संकटग्रस्त है। यह बाहर से समर्थन दे रहे अपने समर्थकों के ब्लैकमेल का शिकार है। इसके समर्थक दलों के मंत्रियों सहित तमाम मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
मुख्य विपक्षी दल भाजपा यद्यपि विरोध प्रदर्शन करती रहती है लेकिन नीतियों के मामले में वह संप्रग-2 से अलग नहीं है। राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा जातिवादी पूंजीवादी दल सभी के सभी भूमंडलीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के फार्मूले पर ही काम कर रहे हैं। इससे राजनैतिक संकट बढ़ा है।
वामपंथ यद्यपि आर्थिक नीतियों खासकर आसमान छूती महंगाई के विरूद्ध एक के बाद एक अभियान चलाता रहा है लेकिन अभी तक पूंजीवादी दलों का विकल्प नहीं बन सका है। 12 मार्च का दिल्ली मार्च और 8 अप्रैल का जेल भरो अभियान वामपंथ के अपने अभियान थे जो बेहद सफल रहे। 27 अप्रैल की आम हड़ताल में अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने भी भाग लिया और वह भी बेहद सफल रही। लेकिन सपा एवं राजद ने लोकसभा में महंगाई पर लाये गये कटौती प्रस्ताव पर सरकार का साथ देकर इस अभियान की उपलब्धि को सीमित कर दिया। बसपा ने तो सीधे ही सरकार का साथ दिया। चर्चा है कि इन दलों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का लाभ सरकार ने उठाया और उन पर दवाब बनाया। इन दलों के अवसरवादी रवैये के चलते जनता को राहत दिलाना कठिन हो गया है। यदि इन दलों ने कटौती प्रस्ताव पर सरकार का साथ नहीं दिया होता तो शायद केन्द्र सरकार की पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन और रसोई गैस के दाम दोबारा बढ़ाने की हिम्मत न होती। इनके अवसरवादी रूख को ध्यान में रखते हुए ही हमें आगे की योजनायें निर्धारित करनी होंगी।
विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने भारत सहित तमाम विकासशील देशों पर बुरी तरह प्रभाव डाला। लेकिन भारत पर इसका प्रभाव इसलिये कम पड़ा कि वामपंथ और भाकपा ने सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को उस गति से नहीं होने दिया जिस गति से सरकार करना चाहती थी। आसमान छूती मंहगाई इस संकट के सबसे घिनौने रूप में सामने आई है। केन्द्र सरकार द्वारा अनाजों एवं अन्य जरूरी वस्तुओं के वायदा कारोबार को इजाजत देने तथा व्यापारीपरस्त नीतियां अपनाने से महंगाई बढ़ी है। जमाखोरी और कालाबाजारी बेरोकटोक चलती रही है। मनमोहन सरकार इस सबको रोकने की कोई इच्छा नहीं रखती है। अभी-अभी पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर और केरोसिन की कीमतों में भारी वृद्धि करके महंगाई की छलांग लगवाने का रास्ता तैयार कर दिया है। अतएव हमें और सघन तथा व्यापक आन्दोलन करना होगा।
संप्रग-2 सरकार का सवा साल का कार्यकाल उथलपुथल भरा रहा है। दौलत पैदा हो रही है लेकिन वह चन्द हाथों में सिमटती जा रही है। अमीरी और गरीबी के बीच फासला लगातार बढ़ रहा है। महंगाई को रोक पाने में विफलता के अतिरिक्त सरकार विदेशी और आर्थिक नीतियों में अमरीकी निर्देशों पर लगातार बदलाव कर रही है। आंतरिक सुरक्षा के मामले में वह विफल है। आतंकवाद और माओवादी गतिविधियां बढ़ रही हैं। संप्रग-2 में शामिल दलों और मंत्रियों के बीच स्वार्थपरक टकराव चल रहे हैं। आईपीएल विवाद, उसके कई मंत्रियों के अशोभनीय व्यवहार के हिचकोले इस सरकार को लगते रहे हैं। रेल दुर्घटनाओं ने जान-माल को भारी हानि पहुंचाई है।
उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार जिसमें आईपीएल तथा जी-2 स्पेक्ट्रम घोटाले शामिल हैं, संप्रग-2 सरकार को उसकी कथनी से बहुत दूर ले जा खड़ा करते हैं। इसी कारण मनमोहन सरकार ने सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्तावित किया है। भ्रष्टाचार रक्षातंत्र तथा न्यायपालिका तक में घुस गया है।
शिक्षा के अधिकार, महिला आरक्षण एवं खाद्य सुरक्षा बिल के मामले में सरकार का रवैया आंखो में धूल झोंकने वाला साबित हो रहा है। भोपाल गैस त्रासदी के मामले में न्यायालय के फैसले के बाद की परिस्थितियों ने परमाणु जिम्मेदारी बिल के बारे में सरकार के दृष्टिकोण को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इन बिलों को जनहित की दृष्टि से दुरूस्त कराने की जरूरत है।
नेशनल स्टूडेन्ट्स कौंसिल आफ नागालैण्उ (एनएससीएन आईएम) के नेता मुइवा को मणिपुर स्थित उसके जन्मग्राम में जाने की केन्द्र सरकार ने इजाजत दे दी। मुइवा ने इस अवसर का लाभ अपने ‘स्वतंत्र महान नागालैण्ड’ आन्दोलन को फैलाने को उठाने की कोशिश की। मणिपुर की जनता एवं भाकपा सहित कई राजनैतिक दलों की मांग पर मणिपुर सरकार ने इस यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया। नागा संगठनों ने प्रतिक्रिया में मणिपुर जाने वाले दो राष्ट्रीय मार्गों को बन्द कर दिया। दो महीने तक मणिपुर की जनता ने भारी यातनाओं को झेला। केन्द्र ने इस बैरीकेड को हटाने में बेहद देरी की। विघटनकारी शक्तियों के प्रति केन्द्र के ढुलमुल और अवसरवादी रवैये से राष्ट्रीय एकता की नींव कमजोर पड़ती है।
आंतरिक आर्थिक नीतियों की ही भांति संप्रग-2 सरकार विदेश नीति में लगातार अमरीकापरस्त रूख अपना रही है जो हमारे राष्ट्रीय हितों के विपरीत है। यह हमारी विकासषील देषों के साथ एकजुटता एवं गुटनिरपेक्षता की नीति को पलटने जैसा है।
सामाजिक-आर्थिक शोषण से पैदा हुई अमीरी-गरीबी की खाई से उत्पन्न असंतोष को भुनाकर माओवादियों ने आदिवासियों, दलितों एवं कमजोरों के बीच जगह बना ली है। लेकिन स्पष्ट राजनैतिक दृष्टिकोण न होने के कारण अब वे आम जनता यहां तक कि रेलों पर हमले कर रहे हैं। केन्द्र सरकार यद्यपि मानती है कि यह खाली कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है लेकिन वह कानून-व्यवस्था के तौर पर ही इससे निपटने में लगी है। इस अभियान में सेना को लगाने की बातें भी हो रही हैं जो हमारी सेना की प्रतिष्ठा के लिए नकारात्मक साबित होगा। भ्रमित लोगों से वार्ता करने, माओवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सामाजिक आर्थिक पैकेज देने, वहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की घुसपैठ रोकने तथा विकास योजनाओं को ठीक से क्रियान्वित करने की जरूरत है।
पश्चिम बंगाल में पहले पंचायत, फिर लोकसभा एवं अब नगर निकायों के चुनावों में वामपंथ की करारी हार हुई है। वह भी तब जब तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। यद्यपि वहां वाम मोर्चे ने आमजनों के लिए बहुत कुछ किया। लेकिन आज वह भूमि अधिग्रहण, नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के अपनाने तथा जनता शासन की जगह अफसरशाही तरीके से राज चलाने के कारण किसानों, मजदूरों, अल्पसंख्यकों के बीच पहले की तरह लोकप्रिय नहीं रहा। वहां वामपंथ में जनहितैषी सुधार लाने और भाकपा की स्वतंत्र छवि को स्थापित करने की जरूरत है।
महंगाई, भूमि अधिग्रहण/भूमि सुधार, भ्रष्टाचार, गरीबी, रोजगार, स्वच्छ जल, शिक्षा एवं भारतीय हितों के अनुकूल विदेश नीति जैसे सवालों पर एक कार्यक्रम तैयार कर सघन और व्यापक आन्दोलन ही वामपंथ को मजबूत करेंगे और साम्प्रदायिक भाजपा को परिस्थतियों का लाभ उठाने से रोकेंगे। क्षेत्रीय और जातिवादी दलों, जो समय-समय पर राजनैतिक पलटी मारने को अभिशप्त हैं, हमें बहुत सावधानी के साथ अंतर्क्रिया करनी चाहिये ताकि उनकी अवसरवादी छवि का ग्रहण हमारे ऊपर चस्पा न हो। मौजूदा वामपंथ को बेहतर वामपंथ बनाने को भाकपा को अहम एवं सकारात्मक भूमिका अदा करनी होगी।
उत्तर प्रदेश
निजीकरण की राह पर प्रदेष सरकार:
गत राज्य कौंसिल बैठक में पारित रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के सम्बंध में कहा गया था - ”उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली बसपा की सरकार है जो राजनैतिक दृष्टि से संप्रग-2सरकार के विपक्ष में खड़ी है। परन्तु यह सरकार भी विकास के पूंजीवादी मार्ग को अपनाते हुए भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की राह पर चल रही है। लेकिन सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक उथल-पुथल के इस दौर में वह अपने मत आधार (दलित, अति पिछड़े और आदिवासी) को अपने साथ जोड़े रखने को कई कदम उठाती रहती है।“
आज भी प्रदेश सरकार इसी रास्ते पर चल रही है।
सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण लगातार करने की कोशिशें जारी हैं। आगरा की विद्युत वितरण व्यवस्था को निजी कंपनी टोरंट को सौंप दिया गया। पार्टी ने इसका कड़ा विरोध किया। अब मुख्यमंत्री ने धमकी दी है कि कानपुर आदि शहरों के बिजली वितरण को निजी कंपनियों को सौंप दिया जायेगा। वैसे उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन की नई परियोजनाओं के निर्माण से विद्युत वितरण तक के कई कामों में ठेकेदारी प्रथा और निजीकरण का बोलबाला है। विभागीय भ्रष्टाचार के कारण ही 30 करोड़ रूपये की लागत से बनी परीछा परियोजना की नवनिर्मित चिमनी भरभरा कर गिर गयी। इससे पूर्व दो बार हरदुआगंज की निर्माणाधीन परियोजनायें गिरकर नष्ट हो चुकी हैं। टोरन्ट द्वारा अधिग्रहण के बाद से आगरा की विद्युत व्यवस्था लगभग ध्वस्त पड़ी है। स्पष्ट है कि समस्या का समाधान सुधार है निजीकरण नहीं।
प्रदेश में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा पंसारी की दुकान बन गयी है। निजी स्कूलों और अनुदानित विद्यालयों में खोले जा रहे स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों के शुल्क इतने अधिक हैं कि गरीब और औसत आमदनी वाले परिवार को शिक्षा पाना बेहद कठिन हो गया है।
राज्य सरकार की बदनीयती का शिकार स्वास्थ्य सेवायें भी हो रही हैं। गरीबों को महंगे नर्सिंग होम्स में इलाज कराना बेहद कठिन है। आज भी वह राजकीय चिकित्सालयों में ही इलाज कराते हैं। सरकार ने उनको भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संचालित बड़े अस्पतालों को सौंपने की चेष्टा की। बस्ती, इलाहाबाद, कानपुर और फिरोजाबाद के चार जिला अस्पतालों तथा इन जिलों में मौजूद सैकड़ों प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी अस्पतालों को दे डालने की योजना बना ली थी।
प्रदेश भाकपा ने इसका पुरजोर विरोध किया और सरकार को अपना फैसला वापस लेने को मजबूर होना पड़ा।
14 चीनी मिलों को बेचने की तैयारी चल रही है। सड़क निर्माण, भवन निर्माण सभी में निजी क्षेत्र को भारी भागीदारी दी जा रही है। राज्य की अर्थव्यवस्था को निजीकरण के जरिये चूसा जा रहा है।
नगर निकाय चुनावों का गैर-राजनीतीकरण:
अपने दलीय हितों को पूरा करने हेतु राज्य सरकार ने नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर होने की प्रक्रिया को उलट दिया। बसपा सरकार को डर है कि जिन जनविरोधी नीतियों पर वह चल रही है, उनके चलते आम जनता निकाय चुनावों में उसे शिकस्त दे देगी। 2012 के भावी विधान सभा चुनावों में इसका विपरीत असर पड़ेगा। उप चुनावों में 16 में से 13 विधान सभा सीटों पर जीतने वाली बसपा इसी कारण से अब किसी मध्यावधि चुनावों में हिस्सा न लने की घोषणा कर चुकी है। भाकपा तथा कई अन्य दलों ने लोकतंत्र का हनन करने वाली इस कार्यवाही का विरोध किया लेकिन बसपा प्रमुख आज भी इस कार्यवाही को उचित ठहरा कर हठवादिता का परिचय दे रही हैं।
कृषि भूमि का अधिग्रहण-दर-अधिग्रहण:
भूमि सुधार का सवाल सरकार की प्रतिकूल नीतियों का शिकार बन चुका है। आगरा, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा जनपदों में 850 ग्रामों की जमीन जमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के लिए अधिसूचित कर दी गई। भाकपा, लोकदल के विरोध के कारण फिलहाल सरकार आगे कदम नहीं बढ़ा पा रही है।
लखनऊ के चारों ओर आमों के हरे-भरे बागों से आच्छादित फलपट्टी की भूमि को अधिग्रहण करने की योजना को भी भाकपा और फलपट्टी किसान वेलफेयर एसोसिएशन के संयुक्त आन्दोलन के जरिये फिलहाल विफल बना दिया गया है। अब लखनऊ के कचरे को डम्प करने के नाम पर दशहरी आम के उद्गमस्थल दशहरी गांव एवं अन्य चार गांवों की 88 एकड़ जमीन को अधिगृहीत करने की योजना के खिलाफ भी आन्दोलन छेड़ा गया है। आन्दोलन का बिगुल बजाते हुए 250 वर्ष पुराने दशहरी आम के पितृ वृक्ष पर भाकपा का ध्वज फहरा दिया गया है। 6 जुलाई को वहां संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्षन होगा।
दादरी परियोजना में उच्च न्यायालय द्वारा किसानों को मुआवजा लौटाकर जमीन वापस पाने का फैसला होने के बावजूद किसान अभी मुआवजा लौटा नहीं पाये हैं। उन पर आन्दोलन से जुड़े मुकदमें भी चल रहे हैं। भाकपा ने वहां भी हस्तक्षेप किया है। मुआवजा वापसी की अवधि 3 माह बढ़ाने और मुकदमें वापस लेने की मांग को लेकर आन्दोलनरत किसानों की रैली 25 जून को धौलाना कस्बे में की गई जिसमें भाकपा महासचिव का. ए.बी.बर्धन और राज्य सचिव डा. गिरीश और गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद तथा मेरठ के भाकपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भाग लिया।
हाईवे, कूड़ाघर अथवा अन्य निर्माणों के नाम पर उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण का अन्यत्र भी विरोध किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को बदले जाने की आवाज भी उठाई जा रही है। गैरकानूनी तरीके से संचित जमीनों के वितरण की दिशा में भी राज्य सरकार काम नहीं कर रही है।
पेट्रो-पदार्थों की मूल्यवृद्धि और बसपा सरकार:
केन्द्र सरकार द्वारा दोबारा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन तथा रसोई गैस के दामों में की गई भारी वृद्धि से महंगाई की मार से पीड़ित प्रदेश की जनता और भी तबाह होने को है। राज्य सरकार ने इन वस्तुओं पर लगने वाले राज्य के करों को यदि घटा दिया होता तो कुछ राहत अवश्य मिलती। जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटखोरी सूबे में बेधड़क जारी है। बसपा ने महंगाई के खिलाफ कटौती प्रस्ताव का विरोध कर साबित कर दिया है कि वह जनता को महंगाई से निजात दिलाने की इच्छा शक्ति नहीं रखती। राशन प्रणाली भी प्रदेश में अस्तव्यस्त पड़ी है।
निष्कर्ष:
भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था की बदतर स्थिति, अति अल्प विद्युत आपूर्ति, खादों का अभाव, नहर बंबों में पानी न आना, पुलिस दमन, कमजोर तबकों के बेहद उत्पीड़न आदि से जनता बेहद परेशान है। वह एक विकल्प चाहती है लेकिन सक्षम और बेहतर विकल्प का निर्माण नहीं हो पा रहा है।
प्रदेश में भाकपा ने स्वतंत्र रूप से लगातार आन्दोलन चलाये हैं। कई आन्दोलन अन्य वामपंथी दलों के साथ चलाये हैं। 27 अप्रैल के भारत बन्द में अन्य दल भी साथ थे। इससे प्रदेश में भाकपा की प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है और पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ा है। यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है।
कई जिलों में पार्टी संगठन पर कार्यशालायें एवं पार्टी स्कूल आयोजित किये गये हैं परन्तु मूल तौर पर यह दौर आन्दोलनकारी गतिविधियों का ही रहा है।
इन आन्दोलनों में हम आम जनता को उतारने में अभी कामयाब नहीं हुये हैं। इसके लिए हमें जनता के बीच पहुंचना होगा। जन संगठनों की सक्रियता और विकास इस काम में मददगार होंगे। पार्टी को स्वतंत्र रूप से गतिविधियां जारी रखनी होंगी और वाम दलों के साथ समय-समय पर गतिविधियां चलानी होंगी। जातिवादी दलों, साम्प्रदायिक शक्तियों और आर्थिक आपात्काल खड़ा कर रही शक्तियों के चंगुल से जनता को मुक्त करा अपने साथ लाना होगा। तदनुसार हमें भावी राजनैतिक और सांगठनिक कदम निर्धारित करने होंगे।
भविष्य की कार्यवाहियां
 केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और रसाई गैस की कीमतों को वापस लेने, आसमान छूती महंगाई पर रोक लगाने तथा खाद्य सुरक्षा प्रदान करने हेतु अभियान।
 इस विषय में 1 जुलाई को चारों वामदलों के संयुक्त कन्वेंशन में लिये गये फैसलों एवं 5 जुलाई के प्रस्तावित भारत बंद को मुस्तैदी से सफल बनाने की पुरजोर कोशिश।
 विकास हो मगर उपजाऊ जमीनों का अधिग्रहण नहीं, भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को बदला जाये। इस अभियान को और जोरदार तरीके से चलाना।
 सीलिंग की जमीन, कालेधन के बल पर बनाये बड़े फार्म हाउसों की जमीन, बंद उद्योगों की वह जमीन जो किसानों से अधिगृहीत की गई थी, का लेखा-जोखा तैयार कराने को प्रदेश में एक भूमि सुधार आयोग गठन करने की मांग को उठाना। इससे भूमिहीनों में भूमि वितरण का रास्ता खुलेगा।
 सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण रोके जाने को अभियान।
 नगर निकाय के त्रिस्तरीय चुनाव दलीय आधार पर कराने की मांग को अभियान।
 केन्द्र एवं राज्य सरकार की जनहितैषी योजनाओं को अमल में लाने को अभियान।
 भ्रष्टाचार एवं कानून व्यवस्था की स्थिति का पर्दाफाश करना।
सांगठनिक
 राजनैतिक रिपोर्टिंग के लिये जिला कौंसिलों की विस्तारित बैठक/जनरल बॉडी बैठकें बुलाना।
 त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों/नगर निकायों के चुनावों में व्यापक भागीदारी की सांगठनिक तैयारी।
 केन्द्र एवं राज्य के अखबारों के ग्राहक बनाना।
 जन संगठनों की सक्रियता और विस्तार विभिन्न विभागों की बैठकें बुलाना।
 पार्टी में महिला, नौजवान, दलित एवं अल्पसंख्यकों की भर्ती पर विशेष जोर।
 प्रशिक्षण शिविर और कार्यशालायें अधिक से अधिक जिलों में लगाना।
 धन एवं अन्न संग्रह अभियान को गंभीरता से लेना और उसे नियमित तौर पर चलाना।
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पेट्रो कीमतों के बारे में कुछ तथ्य - संप्रग जवाब दे - भाग मनमोहन जनता आती है !!!!

कुछ देशों में पेट्रोल की वर्तमान कीमतें इस प्रकार है :
  • पाकिस्तान में २६ रूपये लीटर
  • बंगला देश में २२ रूपये लीटर
  • क्यूबा में १९ रुपये लीटर
  • नेपाल में २४ रूपये लीटर
  • बर्मा में ३० रूपये लीटर
  • अफगानिस्तान में ३६ रूपये लीटर
  • क़तर में ३० रूपये लीटर
लेकिन हिंदुस्तान में ५३ रूपये लीटर
जरा देखिये इन ५३ रुपयों में क्या-क्या शामिल करती है जनद्रोही संप्रग और मायावती सरकारें :
  • एक लीटर पेट्रोल की हिंदुस्तान में लागत कीमत : १६-५० रूपये
  • एक लीटर पेट्रोल पर हम से वसूला जाता है ११.८० रूपये का केन्द्रीय कर
  • एक लीटर पेट्रोल पर हम से वसूला जाता है ९.७५ रूपये का एक्साइज ड्यूटी
  • एक लीटर पेट्रोल पर हम से वसूला जाता है ८.०० रूपये का उत्तर प्रदेश सरकार के टैक्स
  • एक लीटर पेट्रोल पर हम से वसूला जाता है ४.०० का सेस
  • बाकी लिया जाता है सरमायेदारों और सरकार का मुनाफा
फिर भी सरकार रोती है अनुदान के बोझ का !
आयल कंपनियों के नुक्सान का !!
तेल कंपनियों के पिछले दस सालों के मुनाफे देखिए जो जा रहे हैं सरमायेदारों और सरकार की जेब में
भाईयों बहुत हो गया है 5 जुलाई को सरकार को दिखा दो अपनी ताकत
लगाओ नारा भाग मनमोहन जनता आती है !!!!
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शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

वाम दलों ने भारत बंद की तैयारियां शुरू की

हिंदी खबर ने आज यह समाचार छापा है :
जयपुर.एनएनआई.01जुलाई। विपक्षी दलों ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की बढी दरों के विरोध में पांच जुलाई को भारत बंद की तैयारियां शुरू कर दी है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तारा सिंह सिद्धू के अनुसार, प्रस्तावित भारत बंद की तैयारियों के लिए वाम दलों की कल सम्पन्न हुई बैठक में प्रदेशवासियों से भारत बंद को सफल बनाने की अपील की गयी। उन्होंने कहा कि बंद से केन्द्र की जन विरोधी आर्थिक नीतियों को पीछे धकलने का दवाब बनेगा। सिद्धू ने कहा कि केन्द्र सरकार मंहगाई पर अंकुश लगाना तो दूर पेट्रोलियम पदाथरे की दरों में वृद्धि कर आम लोगों की तकलीफ बढ़ा दी है।
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Black balloon protest during Manmohan's Kanpur visit

The Hindu today published the following item :
The Left parties will stage protests against fuel price hike during Prime Minister Manmohan Singh's visit to Kanpur on Saturday.
While All-India Forward Bloc members will release black balloons from their homes when the Prime Minister reaches the industrial metropolis in the afternoon, the Kanpur units of the Communist Party of India (Marxist) and Communist Party of India have been authorised to have their own forms of protest.
This was stated by the U.P. unit leaders of the CPI (M), the CPI, the AIFB, the Republican Socialist Party (RSP) and the Janata Dal (Secular) at a press conference here on Friday.
Accusing Dr. Singh of pushing the common man, farmers and labourers further towards ruination by increasing the prices of petrol, diesel, kerosene and LPG, the leaders said the July 5 Bharat bandh and general strike would take the form of a people's struggle.
State CPI(M) secretary S.P. Kashyap said the Prime Minister's announcement that diesel would be decontrolled was a pointer to what lay in store for the common man.
CPI secretary Girish said that under Left pressure UPA-I could not announce fuel price hike and even if there was an increase, it was just marginal. Now, in the absence of Left pressure and as UPA-II allies were a pro-capitalist class, the country witnessed an unprecedented rise in fuel prices, Mr. Girish said.
The CPI leader urged Uttar Pradesh Chief Minister Mayawati to reduce the value added tax on petrol and diesel.
AIFB secretary Ram Kishore said people who were reeling under the impact of the price hike should join the July 5 strike.
Dr. Singh is scheduled to attend a convocation of the Indian Institute of Technology and address the Uttar Pradesh Chamber of Merchant and Commerce
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CPI to launch stir against price rise

Imphal Free Press today reported :
IMPHAL, July 1: The Communist Party of India (CPI), Manipur State Council, is all set to launch stern agitations against price rise of petroleum products and other essential commodities as a part of the nation wide demonstrations to be carried out from July 3.
Addressing a press conference this afternoon at Irawat Bhawan, state secretary of CPI Manipur State Council, L. Iboyaima stated the party stands for the welfare of the common people and hence it opposes those policies of the government which are anti-people in nature. The recent price hike of petroleum products in the country is a wrong policy of the UPA government which considers only for the welfare of the capitalists, he said.
The government has failed to address the grievances of the poor people who have suffered a lot at the hands of the capitalist forces. The workers and farmers all over the country would join hands to protest the price hike of petroleum products which are used as essential commodities in all sectors, Iboyaima noted.
He also said that the Centre as well as the state government should look into the matter of acute shortage of commodities and its subsequent problem of extreme price rise in Manipur in the aftermath of months long economic blockade imposed along the two national highways. The people of Manipur are facing lots of problems due to acute shortage of food, petroleum and other essential commodities, he observed.
Senior communist leader, L. Sotinkumar maintained that the faulty policies of the state government have aggravated the problems of the people. The Centre as well as the state government should take up effective measures to ensure safety along the national highways. The highway protection force should be deployed along the national highways inorder to curtail the activities of various UG groups which have been collecting illegal taxes from the people of the state, he enjoined.
He also demanded the state government to ensure availability of adequate amount of fertilizers and diesel to the farmers so that the agricultural practices in the state are not hampered.
Meanwhile, the Prime Minister of India, Dr. Manmohon Singh had written a letter to the general secretary of CPI, AB Bardhan, on June 20 regarding the steps taken up the Central and state government to resolve the blockade issue of Manipur and subsequent shortage of essential commodities in the state.
The CPI, Manipur State Council, will be organizing a public meeting on price rise on July 3 at Majorkhul Community Hall, mass rally for women on July 4 and hartal on July 5 as a part of the nation wide protests against price hike of petroleum products.
People belonging to different walks of life including workers, farmers, government employees, transporters, bank and airport staffs are likely to participate in the nation wide hartal called against recent price hike of petroleum products in the country.
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CPI announces series of protest against price hike

North East India News published today :
By Hueiyen News Service
Imphal July 01: Communist Party of India (CPI) Manipur State Council today announced that the party will start launching various forms of protest against the hiking of prices of the essential commodities and petroleum products.Speaking to reporters at a press conference at Irawat Bhavan, Langol Iboyaima said that the state council is to launch the protest as part of countrywide protest planned of the opposition parties at the Centre.
The state council, in a meeting today has decided to launch the protest in the state too, Iboyaima said announcing that the protest will be kicked off with a dharna cum public meeting at Major Khul Community hall on July 3 next.
It will be followed by a demonstration rally which only women will participated on the next day, July 4, he said announcing that on the third day of protest series, down to dusk (6 am to 6 pm) cease work strike will be observed.
The party is demanding control price hike, take action to stop disturbances on the national highways in the state, set up and deploy national highway protection force on the highways and ensure availability of essential commodities to the people among others.
The demand also includes supply of diesel and fertilizers to the farmers at subsidies rate and making regular distribution of fuels at the petrol filling stations and reduction of prices of the petroleum products recently increase by a decision of the UPA government at the Centre etc.
Observing that despite the lifting of the economic blockade on the national highways, people are experiencing scarcity of essential commodities apart from getting at higher rates, Iboyaima demanded that government should take up appropriate action to relief the common people for the clutch of scarcity and consuming at higher prices.
He also criticized the UPA government at the Centre for not enabling people relief from suffering due to uncheck hiking of the prices of goods during its rules for two consecutive terms.
He also appealed the people to participate in the series of protest to be launched by the party.Assistant secretary of the party L Shotinkumar who also spoke at the press conference flayed the governments, both at the Centre and State for not enabling in controlling prices of the essential commodities.
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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

महंगाई के विरोध में 5 को सवाई माधोपुर बंद

दैनिक भास्कर ने आज छापा है :
जुलाई को भारत बंद के आह्वान के तहत सवाई माधोपुर बंद करने का निर्णय लिया गया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव रामगोपाल गुणसारिया ने आम जनता से बंद को सफल बनाने की अपील की.
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भाकपा ने महंगाई के विरोध में लगाया जाम

dainik bhaskar mein aaj chhapa hai :
भास्कर न्यूज & ramgarh diesel, केरोसिन, रसोई गैस एवं पैट्रोल पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के विरोधस्वरूप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की रामगढ़ इकाई की ओर से बुधवार को अलवर-दिल्ली मार्ग जाम कर केंद्र सरकार विरोधी नारे लगाए गए। करीब एक घंटे तक चले जाम के दौरान दोनों ओर वाहनों की लंबी कतार जुड़ गई। भाकपा कार्यकर्ताओं ने मुख्य बाजार से रैली निकालकर प्रदर्शन करते हुए तहसील कार्यालय के बाहर मंच पर सरकार विरोधी नारेबाजी की। इस अवसर पर भाकपा सचिव शंभू सोनी ने कहा कि यदि सरकार ने वक्त रहते उचित कदम नहीं उठाए तो देश में अराजकता का माहौल बन जाएगा। जिसकी जिम्मेवार कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के आश्रय में चल रही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार होगी। जाम और प्रदर्शन में भाकपा की जिला काउंसिल के सदस्य धर्मचंद जैन, रामधन सैनी, इब्राहिम खां, नजीर अहमद व गिर्राज मारवाड़ी सहित दर्जनों काम्युनिस्टों ने भाग लिया।
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बुधवार, 30 जून 2010

पैट्रो पदार्थों में मूल्यवृद्धि के खिलाफ जताया रोष

bhaskar ne aaj chhapa hai :
बलाचौर & पैट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने यूपीए सरकार का पुतला फूंका। प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कामरेड परमिंदर मेनका भिंदा ने कहा कि केंद्र मनमानी पर उतारू है। महंगाई घटाने की बजाए बढ़ाती जा रही है। कामरेड प्यारे लाल ने कहा कि पैट्रो पदार्थों व घरेलू गैस की कीमतें बढ़ाकर सरकार ने लोक विरोधी चेहरा बेनकाब कर दिया है। कामरेड बख्शीश सिंह ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि केंद्र सरकार जिस तरह से गरीब विरोधी फैसले रही है जनता उसे माफ नहीं करेगी। इस मौके पर फौजी चन्नण राम, हेमराज माणेवाल, दविंदर कौर, मलकीत गहूंण, अमरजीत माणेवाल, धर्मपाल सियाणा, शिंदर रत्तेवाल, नरिंदर रत्तेवाल, अश्विनी मेनका, सोढ़ी राम मौजूद थे।बगीचा सिंह, कुलदीप, बूटा मोहम्मद आदि मौजूद रहे।
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भाकपा द्वारा घाटी में शांति की अपील

thatshindi ne aaj chhapa hai :
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के उप महासचिव सुधाकर रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी कश्मीर में जिस तरीके से हिंसा फैल रही है, उससे वाकई में दुखी है।
रेड्डी ने कहा, "भाकपा और वामपंथी पार्टियों की ओर से हम घाटी में शांति बहाली की अपील करते हैं।"
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1857 में हम आज ही के दिन लखनऊ में जीते थे

30 जून 2010वार्तालखनऊ। आजादी की लड़ाई के लिए अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में मेरठ से शुरू हुए गदर की आंच धीरे-धीरे पूरे देश में पहुंची और आज के दिन ही यानी 30 जून को राजधानी लखनऊ के चिनहट इलाके में अंग्रेजों को परास्त होना पड़ा।चिनहट इलाके का महाबीर जी का मंदिर इस युद्ध का गवाह बना।मंदिर के पास आजादी के लिए लड़ रहे विद्रोहियों और अंग्रेज सेना के बीच हुए युद्ध में विद्रोहियों की जीत हुई। अंग्रेज भागकर रेसीडेंसी में छुप गए। इस युद्ध में दो सौ से ज्यादा अंग्रेज सैनिक मारे गए और उनकी पांच तोपों पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया।

भारत का इतिहास राष्ट्रीय अभिलेखागार में संरक्षित है

एक जुलाई 1857 को विद्रोहियों ने मच्छी भवन पर आक्रमण किया। युद्ध में अंग्रेज परास्त हुए और मच्छी भवन पर विद्रोहियों का अधिकार हो गया। इसी रात अंग्रेज सेनापति लॉरेंस ने मच्छी भवन के बारूदखाने को तोप से उड़वा दिया। दो जुलाई को विद्रोहियों ने रेसीडेंसी पर आक्रमण कर दिया। इस हमले में लॉरेंस बुरी तरह घायल हुआ और चार जुलाई को उसकी मौत हो गई। 30 जून 1857 से शुरू हुई लड़ाई 23 मार्च 1858 तक चली और इसमें लखनऊ पूरी तरह अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। इस बीच में मौका कभी अंग्रेजों के हाथ आता, तो कभी विद्राहियों के हाथ। विद्रोहियों ने पांच जुलाई 1857 को नवाब वाजिद अली शाह के ग्यारह साल के बेटे विरजिस कादर को लखनऊ का नवाब घोषित कर दिया और बेगम हजरत महल ने उसके नाम पर शासन का कार्य भार देखना शुरू कर दिया।विद्रोहियों ने एक बार फिर रेसीडेंसी पर 31 जुलाई को हमला किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। नवंबर की 16-17 और 18 तारीख को लखनऊ की गलियों में भयंकर कत्लेआम हुआ। आलमबाग, कैसरबाग, सिकंदरबाग, शाह नजफ रोड और दिलकुशा लड़ाई के प्रमुख केंद्र रहे। आलमबाग के रास्ते जब अंग्रेज लखनऊ में प्रवेश नहीं कर सके तो वे दिलकुशा में जमा हुए और वहां से सिकंदरबाग की ओर कूच कर गए।
‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ वापस आ रही है
धीरे-धीरे विद्रोहियों के हौसले पस्त होते गए, क्योंकि अंग्रेज बड़ी योजना के साथ लड़ रहे थे। अंग्रेजों ने 23 मार्च 1858 को रेसीडेंसी पर फिर से अधिकार कर लिया और पूरे लखनऊ पर उनका शासन हो गया।इसी के साथ लखनऊ में गदर को दबा दिया गया।
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