मौन आहों में बुझी तलवार
तैरती है बादलों के पार।
चूमकर ऊषाभ आशा अधर
गले लगते हैं किसी के प्राण।
गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न
छोड़ दो न ज्योति का परिधान!
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यह कसकता, यह उभरता द्वंद्व
तुम्हें पाने मधुरतम उर में,
तोड़ देने धैर्य-वलयित हृदय उठा।
परम अंतर्मिलन के उपरांत
प्राप्त कर आनंद मन एकांत
खिला मृदु मधु शांत।
(1945)
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