भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

गुरुवार, 10 जून 2010

माओवाद - ताबूत की आखिरी कील

यह परीक्षा की घड़ी है, हमारे लिए। हमने इस विशाल देश में मेहनतकशों की विचाधारा (मार्क्सवाद) को यथोचित सम्मान दिलाने की कसमें खाई थीं, हमने गरीब के आंगन में खुशी बिछाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देने की ठानी थी, हमने अपनी जिन्दगी इसी उम्मीद में बीता दी, कि कभी रूस और चीन जैसा इस देश के आकाश में भी लाल सितारा उगेगा। सबसे अधिक हमारे लिए परीक्षा की घड़ी आज आ चुकी है, जो हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। आज एक ही प्रश्न सबसे बड़ा बनकर उभर रहा है। क्या हमने किसी गलत विचारधारा पर यकीन किया था? क्या हमने किसी भ्रांत दर्शन को अपना विश्वास सौंपा था? क्या मार्क्सवाद कातिलों की, जल्लादों की, दहशतगर्दों की विचारधारा है, जिसे हमने सर पर ताज जैसा पहन रखा था? समाज हमसे इन सवालों का जवाब मांग रहा है।इन सवालों का जवाब देते हुए, पहले की तरह आज भी हम नहीं झेंपेंगे। बींसवीं कांग्रेस में खुश्चेव ने जब स्तालिन युग के कुकृत्यों का पर्दाफाश किया, तब हमारी पार्टी उनके साथ थी। चीन ने जब भारत की सरहदों पर विश्वासघातपूर्ण हमला किया, तब हमारी पार्टी ने उस हमले की निन्दा की। मार्क्सवाद से किसी भी विचलन को हमने बेपर्द किया चाहे उस विचलन पर स्तालिन का ठप्पा लगा हो, या माओ का। आज जब दन्तेवाड़ा में निश्छल ग्रामीणों को हमले का निशाना बनाया जा रहा है, तब तथाकथित माओवादियों को बेपर्द करने से हम नहीं चूकेंगे। हम साफ तौर पर कहेंगे- यह मार्क्सवाद नहीं है। यह आतंकवाद है, जिसका सहारा घोर नस्लवादी लिट्टेवाले लेते रहा। आखिर एक दिन प्रभाकरण की लाश चील-कौओं का भोजन बन गई। सम्पूर्ण दुनिया में लिट्टे का नामलेवा कोई न रहा। यही दशा गणपति की होगी, माओवादियों की होगी। यह सच्चाई है, इसे कोई टाल नहीं सकता।इसलिए, बिना धीरज खोये, हम इनके विरुद्ध जनमत जाग्रत करने में लगे रहें। हम विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन के उन आदि पुरुषों का स्मरण करें - जिन्होंने बाकूनिन के विरुद्ध लोहा लिया था। मार्क्स ने बाकूनिनवाद के आगे घुटने टेकने से बेहतर यही समझा कि फर्स्ट इन्टरनेशनल को भंग कर दिया जाए। ट्रॉटस्की की कटुक्तियों से बिना विचलित हुए महान लेनिन ने प्रोयोगिक मार्क्सवाद की नींव रखी। बोलशेविक पार्टी धूल का एक कण भर थी। धूल के उस कण से लेनिन ने एक आंधी का सृजन किया। दुनिया के नक्शे को इस आंधी ने बदलकर रख दिया।अवश्य ही यह परीक्षा की घड़ी है, हमारे लिये। एक ओर साम्राज्यवादपरस्त सरकार, दूसरी ओर जनता को अपनी हिंसा का शिकार बनाते माओवादी। दोनों एक दूसरे के पूरक। सरकार में इच्छाशक्ति की कमी, जनता के दिलोदिमाग पर भय का साम्राज्य। हमें सरकार को मजबूर करना है ताकि माओवादियों के विरुद्ध कारगर कदम उठाए जाएं, और जनता को जाग्रत भी करना है। काम आसान नहीं है।लेकिन ऐसे ही कामों के लिए बने हैं हम। जिनकी आंखों के आगे उनके बाल-बच्चे भूख से विलख-विलख कर मर जाए, उस मार्क्स ने हमें सिखाया कि विश्वास पर अड़ना होता है, सच्चाई को अपनाना होता है। और देखिए उनकी सादगी। एक बार किसी के पूछे जाने पर उन्होंने कहा- “मैंने कोई मौलिक काम नहीं किया है, सिर्फ मानव-ज्ञान को व्यवस्थित कर दिया है।” उनका ज्ञान, उनके निष्कर्ष, आज तक हमारी राह को रौशन कर रहा है। हमें फिर किसी से क्या डरना? यह परीक्षा की घड़ी है, लेकिन इस परीक्षा में हम खरे उतरेंगे। माओवादी अब जनता को निशाना बना रहे हैं, यही उनकी व्यर्थता का प्रमाण है। जब क्रांतिकारी आतंक फैलाने लगें, तब आप समझें वह जनता तक से डर रहा है। अब उसका अन्त करीब है। दान्तेवाड़ा की जिस घटना ने ग्रामीणों की, निरीह बस यात्रियों की जान ली, वह माओवाद की ताबूत पर आखिरी कील साबित होगी।
- विश्वजीत सेन

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य