फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 25 जून 2010
at 9:03 pm | 0 comments | डॉ. वेदप्रताप वैदिक
हमारे सैकड़ों भोपाल
भोपाल का हादसा हमारे हिंदुस्तान का सच्चा आइना है। भोपाल ने बता दिया है कि हम लोग कैसे हैं, हमारे नेता कैसे हैं, हमारी सरकारें और अदालतें कैसी हैं। कुछ भी नहीं बदला है। ढाई सौ साल पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं। गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! अब से 264 साल पहले पांडिचेरी के फ्रांसीसी गवर्नर के चंद सिपाहियों ने कर्नाटक-नवाब की 10 हजार जवानों की फौज को रौंद डाला। यूरोप के मुकाबले भारत की प्रथम पराजय का यह दौर अब भी जारी है। यूनियन कार्बाइड हो या डाऊ केमिकल्स हो या परमाणु हर्जाना हो, हर मौके पर हमारे नेता गोरी चमड़ी के आगे घुटने टेक देते हैं।आखिर इसका कारण क्या है? हमारी केंद्र और राज्य की सरकारों ने वारेन एंडरसन को भगाने में मदद क्यों की? कीटनाषक कारखाने को मनुष्यनाषक क्यों बनने दिया? 20 हजार मृतकों और एक लाख आहतों के लिए सिर्फ 15 हजार और पांच हजार रू. प्रति व्यक्ति मुआवजा स्वीकार क्यों किया गया? उस कारखाने के नए मालिक डाऊ केमिकल्स को शेष जहरीले कचरे को साफ करने के लिए मजबूर क्यों नहीं किया गया? इन सब सवालों का जवाब एक ही है कि भारत अब भी अपनी दिमागी गुलामी से मुक्त नहीं हुआ है। सबसे पहला सवाल तो यही है कि यूनियन कार्बाइड जैसे कारखाने भारत में लगते ही कैसे हैं? कोई भी तकनीक, कोई भी दवा, कोई भी जीवन-षैली पष्चिम में चल पड़ी तो हमें उसे आंख मींचकर अपना लेते हैं। हम यह क्यों नहीं सोचते कि यह नई चीज़ हमारे कितनी अनुकूल है। जिस कारखाने की गैस इतनी जहरीली है कि जिससे हजारों-लाखों लोग मर जाएं, उससे बने कीटनाषक यदि हमारी फसलों पर छिड़के जाएंगे तो कीड़े-मकोड़े तो तुरंत मरेंगे लेकिन क्या उससे मनुष्यों के मरने का भी अदृष्य और धीमा इंतजाम नहीं होगा? इसी प्रकार हमारी सरकारें आजकल परमाणु-ऊर्जा के पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई हैं। वे किसी भी क़ीमत पर उसे भारत लाकर उससे बिजली पैदा करना चाहती हैं। बिजली पैदा करने के बाकी सभी तरीके अब बेकार लगने लगे हैं। यह बेहद खर्चीली और खतरनाक तकनीक यदि किसी दिन कुपित हो गई तो एक ही रात में सैकड़ों भोपाल हो जाएंगे। रूस के चेर्नाेबिल और न्यूयार्क के थ्रीमाइललाँग आइलेंड में हुए परमाणु रिसाव तो किसी बड़ी भयावह फिल्म का एक छोटा-सा ट्रेलर भर हैं। यदि हमारी परमाणु भट्रिठयों में कभी रिसाव हो गया तो पता नहीं कितने शहर और गांव या प्रांत के प्रांत साफ हो जाएंगे। इतनी भयावह तकनीकों को भारत लाने के पहले क्या हमारी तैयारी ठीक-ठाक होती है ? बिल्कुल नहीं। परमाणु-बिजली और जहरीले कीटनाषकों की बात जाने दें, हमारे देष में जितनी मौतें रेल और कारों से होती हैं, दुनिया में कहीं नहीं होतीं। अकेले मुंबई शहर में पिछले पांच साल में रेल-दुर्घटनाओं में 20706 लोग मारे गए। भोपाल में तो उस रात सिर्फ 3800 लोग मारे गए थे और 20 हजार का आंकड़ा तो कई वर्षों का है। यदि पूरे देष पर नज़र दौड़ाएँ तो लगेगा कि भारत में हर साल एक न एक भोपाल होता ही रहता है। इस भोपाल का कारण कोई आसमानी-सुलतानी नहीं है, बल्कि इंसानी है। इंसानी लापरवाही है। इसे रोकने का तगड़ा इंतजाम भारत में कहीं नहीं है। यूनियन कार्बाइड के टैंक 610 और 611 को फूटना ही है, उनमें से गैस रिसेगी ही यह पहले से पता था, फिर भी कोई सावधानी नहीं बरती गई। इस लापरवाही के लिए सिर्फ यूनियन कार्बाइड ही जिम्मेदार नहीं है, हमारी सरकारें भी पूरी तरह जिम्मेदार हैं। यूनियन कार्बाइड का कारखाना किसी देष का दूतावास नहीं है कि उसे भारत के क्षेत्रधिकार से बाहर मान लिया जाए। भोपाल की मौतों के लिए जितनी जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड है, उतनी ही भारत सरकार भी है। जैसे रेल और कार-दुर्घटनाओं के कारण इस देष में कोई फांसी पर नहीं लटकता, वैसे ही वारेन एंडरसन भी निकल भागता है। एंडरसन के पलायन पर जैसी शर्मनाक तू-तू-मैं-मैं हमारे यहां हो रही है, वैसी क्या किसी लोकतंत्र में होती है? अगर भारत की जगह जापान होता तो कई कलंकित नेता या उन मृत नेताओं के रिष्तेदार आत्महत्या कर लेते। हमारे यहां बेषर्मी का बोलबाला है। हमारे नेताओं को दिसंबर के उस पहले सप्ताह में तय करना था कि किसका कष्ट ज्यादा बड़ा है, एंडरसन का या लाखों भोपालियों का? उन्होंने अपने पत्ते एंडरसन के पक्ष में डाल दिए? आखिर क्यों? क्या इसलिए नहीं कि भोपाल में मरनेवालों के जीवन की क़ीमत कीड़े-मकोड़े से ज्यादा नहीं थी और एंडरसन गौरांग शक्ति और श्रेष्ठता का प्रतीक था। हमारे भद्रलोक के तार अब भी पष्चिम से जुड़े हैं। दिमागी गुलामी ज्यों की त्यों बरकरार है। यदि एंडरसन गिरफ्तार हुआ रहता तो उसे फांसी पर चढ़ाया जाता या नहीं, लेकिन यह जरूर होता कि यूनियन कार्बाइड को 15 हजार रू. प्रति व्यक्ति नहीं, कम से कम 15 लाख रू. प्रति व्यक्ति मुआवज़ा देने के लिए मजबूर होना पड़ता। यह मुआवज़ा भी मामूली ही होता, क्योंकि अभी मेक्सिकों की खाड़ी में जो तेल रिसाव चल रहा है, उसके कारण मरने वाले दर्जन भर लोगों को करोड़ों रू. प्रति व्यक्ति के हिसाब से मुआवज़ा मिलने वाला है। असली बात यह है कि औसत हिंदुस्तानी की जान बहुत सस्ती है।यही हादसा भोपाल में अगर श्यामला हिल्स और दिल्ली में रायसीना हिल्स के पास हो जाता तो नक्षा ही कुछ दूसरा होता। ये नेताओं के मोहल्ले हैं। भोपाल में वह गरीब-गुरबों का मोहल्ला था। ये लोग बेजुबान और बेअसर हैं। जिंदगी में तो वे जानवरों की तरह गुजर करते हैं, मौत में भी हमने उन्हें जानवर बना दिया है। यही हमारा लोकतंत्र है। हमारी अदालतें काफी ठीक-ठाक हैं लेकिन जब गरीब और बेजुबान का मामला हो तो उनकी निर्ममता देखने लायक होती है। सामूहिक हत्या को कार-दुर्घटना- जैसा रूप देनेवाली हमारी सबसे बड़ी अदालत को क्या कहा जाए? क्या ये अदालतें हमारे प्रधानमंत्रियों के हत्यारों के प्रति भी वैसी ही लापरवाही दिखा सकती थीं, जैसी कि उन्होंने 20 हजार भोपालियों की हत्या के प्रति दिखाई है? पता नहीं, हमारी सरकारों और अदालतों पर डॉलर का चाबुक कितना चला लेकिन यह तर्क बिल्कुल बोदा है कि अमेरिकी पंूजी भारत से पलायन न कर जाए, इस डर के मारे ही हमारी सरकारों ने एंडरसन को अपना दामाद बना लिया। पता नहीं, हम क्या करेंगे, इस विदेषी पूंजी का? जो विदेषी पंूजी हमारे नागरिकों को कीड़ा-मकोड़ा बनाती हो, उसे हम दूर से ही नमस्कार क्यों नहीं करते? यह ठीक है कि जो मर गए, वे लौटनेवाले नहीं और यह भी साफ है कि जो भुगत रहे हैं, उन्हें कोई राहत मिलनेवाली नहीं है लेकिन चिंता यही है कि हमारी सरकारें और अदालतें अब भी भावी भोपालों और भावी चेर्नाेबिलों से सचेत हुई हैं या नहीं? यदि सचेत हुई होतीं तो परमाणु हर्जाने के सवाल पर हमारा ऊँट जीरा क्यों चबा रहा होता?
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी ब्लॉग सूची
-
CUT IN PETROL-DIESEL PRICES TOO LATE, TOO LITTLE: CPI - *The National Secretariat of the Communist Party of India condemns the negligibly small cut in the price of petrol and diesel:* The National Secretariat of...5 वर्ष पहले
-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र - विधान सभा चुनाव 2017 - *भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र* *- विधान सभा चुनाव 2017* देश के सबसे बड़े राज्य - उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के गठन के लिए 17वीं विधान सभा क...7 वर्ष पहले
-
No to NEP, Employment for All By C. Adhikesavan - *NEW DELHI:* The students and youth March to Parliament on November 22 has broken the myth of some of the critiques that the Left Parties and their mass or...7 वर्ष पहले
Side Feed
Hindi Font Converter
Are you searching for a tool to convert Kruti Font to Mangal Unicode?
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
Go to the link :
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/converters
लोकप्रिय पोस्ट
-
सहारनपुर की स्थिति को शीघ्र काबू में करे राज्य सरकार: भाकपा लखनऊ- 10 मई 2017, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया है क...
-
कर्जमाफी: एक बार फिर ठगे गये किसान – भाकपा लखनऊ- 4 अप्रेल 2017, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के कि...
-
भारतीय खेत मजदूर यूनियन की केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक 23 एवं 24 अगस्त 2010 को नई दिल्ली में यूनियन के अध्यक्ष अजय चक्रवर्ती पूर्व स...
-
लखनऊ- उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस(प्री) परीक्षा का परचा लीक होने, और उससे संबंधित मांगों पर आन्दोलन कर रहे अभ्यर्थियों को इलाहाबाद...
-
कामेरड अजय घोष द्वारा पार्टी संविधान में परिवर्तन के लिए अमृतसर में विशेष पार्टी महाधिवेशन बुलाया था जिसमें पार्टी ने घोषित किया था- ‘‘कम्य...
-
लखनऊ 12 सितम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य मंत्रिपरिषद की ओर से जारी प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सह सचिव अरविन्द राज स्वरूप न...
-
लखनऊ- उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद में 3 दिसंबर को हुये अराजकता के नाच को जिसमें कि एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या और एक ...
-
लखनऊ- २६ अप्रैल २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल लखनऊ में बाबा रामदेव द्वारा दलितों, दलित लड़कियों और महिलाओं के प्रत...
-
लखनऊ 22 जून। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी केन्द्र एवं उड़ीसा सरकार द्वारा जगतसिंहपुर जिले में पॉस्को के संयंत्र की स्थापना के लिए दी गयी मंजूरी...
-
इक्कीसवाँ सम्मेलन ए0आई0एस0एफ0 का इक्कीसवाँ सम्मेलन त्रिची, तमिलनाडु में 28-31 जनवर 1983 को हुआ। मार्च 1983 को दिल्ली में 7वाँ ...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें