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शुक्रवार, 25 जून 2010
at 9:18 pm | 0 comments | प्रो. जे.के. सिंह
गोडसे और कसाव
हाँ! उसे फांसी दे दे
मौत के घाट उतार दो उसको
उसने हत्या की है
नृशंस हत्या-आदमी की,
एक नहीं सैकड़ों
निर्दोष लोगों की
जान ली है उसने
जिन्हें वह जानता भी नहीं था
न थी उनसे उसकी कोई अदावत ही
कुछ लेना-देना भी नहीं था
उसका उनसे।
फिर भी बेरहमी से मार डाला उसने
सैकड़ों निर्दोष लोगों को
उसे फांसी दे दे
मौत के घाट उतार दो उसको।
लेकिन मैं सोच रहा हूं,
शायद
बेवजह ही सोच रहा हूं
और मेरा सोचना
शायद गलत भी हो
बेहद गलत।
शायद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
के खिलाफ भी हो
मेरा सोचना
और मुझे कोई सजा भी सुना दें
वे लोग
लेकिन
सोच को रोक कौन सकता है?
शायद मैं भी नहीं।
इसलिए जो सोच है
उसे आप सब से कह देना चाहता हूं
उसकी सजा जो भी मिलेगी/देखूंगा!
हालांकि मैं चाहता हूँ
कि उस नर पिशाच को
हर हाल फांसी दे दी जाय।
उसने किया ही है
ऐसा अपराध,
देश-धर्म-प्राकृतिक न्याय, इन्सान
और इन्सानियत के खिलाफ
खुल्लम खुल्ला जूर्म किया है
उसने,
उसे फांसी दे दी जाय।
लेकिन क्या वह मरेगा
इस तरह सिर्फ फांसी देने से
(यही सोच रहा हूँ)
ऐसे ही एक फांसी दी गयी थी
गांधी के हत्यारे, गोडसे को
तो क्या वह मरा?
क्या गांधी की हत्या की मंशा वाले
और गांधी की हत्या पर मिठाई बाँट कर खाने वाले
गोडसे-से खतम हो गये।
नहीं!
अभी कुछ दिनों पूर्व गुजरात में
नराधम गोडसे ही तो दिखा था,
हाँ! उसे फांसी दे दी जाय
बल्कि फांसी से गर कोई बड़ी सजा हो
वह दी जाय।
लेकिन/इससे
न गोडसे खतम होगा
न कसाब ही मरेगा
क्येांकि ये कोई हांड-मांस वाले आदमी नहीं है,
ये प्रायोजित अभियान हैं
और हैं संस्थागत जेहाद के विकृत संस्करण
ये देश-धर्म-इन्सान और इन्सानियत के खिलाफ
नफरत की कोख से पैदा हुए हैं,
और एक ही पाठ पढ़े हैं
दूसरे धर्म और कौम के लोग दुश्मन होते हैं
उन्हें मिटा देना चाहिए
स्वधर्म की रक्षा के लिए।
एक से शिक्षण शिविर से सीखा है
उन्होंने लाठियां भाजना
छूरा, भाला, गंड़ासा
यहां तक कि
बम और बन्दूकें चलाना
आदमी और आदमीयत को
मारकर मिटा देने के लिए।
इन्हें खतम करने के लिए
बंद करना होगा
उन शाखा शिविरों को
जो रोज-ब-रोज बना रहे हैं
आदमी की जेहनियत को
आदमी के खिलाफ
- प्रो. जे.के. सिंह
मौत के घाट उतार दो उसको
उसने हत्या की है
नृशंस हत्या-आदमी की,
एक नहीं सैकड़ों
निर्दोष लोगों की
जान ली है उसने
जिन्हें वह जानता भी नहीं था
न थी उनसे उसकी कोई अदावत ही
कुछ लेना-देना भी नहीं था
उसका उनसे।
फिर भी बेरहमी से मार डाला उसने
सैकड़ों निर्दोष लोगों को
उसे फांसी दे दे
मौत के घाट उतार दो उसको।
लेकिन मैं सोच रहा हूं,
शायद
बेवजह ही सोच रहा हूं
और मेरा सोचना
शायद गलत भी हो
बेहद गलत।
शायद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
के खिलाफ भी हो
मेरा सोचना
और मुझे कोई सजा भी सुना दें
वे लोग
लेकिन
सोच को रोक कौन सकता है?
शायद मैं भी नहीं।
इसलिए जो सोच है
उसे आप सब से कह देना चाहता हूं
उसकी सजा जो भी मिलेगी/देखूंगा!
हालांकि मैं चाहता हूँ
कि उस नर पिशाच को
हर हाल फांसी दे दी जाय।
उसने किया ही है
ऐसा अपराध,
देश-धर्म-प्राकृतिक न्याय, इन्सान
और इन्सानियत के खिलाफ
खुल्लम खुल्ला जूर्म किया है
उसने,
उसे फांसी दे दी जाय।
लेकिन क्या वह मरेगा
इस तरह सिर्फ फांसी देने से
(यही सोच रहा हूँ)
ऐसे ही एक फांसी दी गयी थी
गांधी के हत्यारे, गोडसे को
तो क्या वह मरा?
क्या गांधी की हत्या की मंशा वाले
और गांधी की हत्या पर मिठाई बाँट कर खाने वाले
गोडसे-से खतम हो गये।
नहीं!
अभी कुछ दिनों पूर्व गुजरात में
नराधम गोडसे ही तो दिखा था,
हाँ! उसे फांसी दे दी जाय
बल्कि फांसी से गर कोई बड़ी सजा हो
वह दी जाय।
लेकिन/इससे
न गोडसे खतम होगा
न कसाब ही मरेगा
क्येांकि ये कोई हांड-मांस वाले आदमी नहीं है,
ये प्रायोजित अभियान हैं
और हैं संस्थागत जेहाद के विकृत संस्करण
ये देश-धर्म-इन्सान और इन्सानियत के खिलाफ
नफरत की कोख से पैदा हुए हैं,
और एक ही पाठ पढ़े हैं
दूसरे धर्म और कौम के लोग दुश्मन होते हैं
उन्हें मिटा देना चाहिए
स्वधर्म की रक्षा के लिए।
एक से शिक्षण शिविर से सीखा है
उन्होंने लाठियां भाजना
छूरा, भाला, गंड़ासा
यहां तक कि
बम और बन्दूकें चलाना
आदमी और आदमीयत को
मारकर मिटा देने के लिए।
इन्हें खतम करने के लिए
बंद करना होगा
उन शाखा शिविरों को
जो रोज-ब-रोज बना रहे हैं
आदमी की जेहनियत को
आदमी के खिलाफ
- प्रो. जे.के. सिंह
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